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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

बसंत पंचमी का महत्त्व और सरस्वती उपासना

 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.co
भारतीय धर्मं शास्त्रों के अनुसार भगवन विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी   ने सृष्टि की रचना की |जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की और देखा तो चारो तरफ मौन देखकर उन्हें उदासी प्रतीत हुई |उन्हें लगा जैसे किसी के कोई वाणी ही नहीं हैं ,इसी उदासी को दूर करने के लिए कमंडल से जल लेकर छिड़का उन जल कणों के छिड़कने से एक दैवीय शक्ति उत्त्पन्न   हुई | जिसके एक हाथ में विणा और दूसरा   हाथ वरद  मुद्रा में था |अन्य दो हाथो में से एक में पुस्तक और एक  में माला थी |ब्रह्माजी ने तब देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया| इस पर देवी ने जैसे ही वीणा बजाना प्रारम्भ किया वैसे ही संसार  के समस्त जीव जन्तुओ को वाणी प्राप्त हो गयी| जिससे चारो तरफ आनंद का वातावरण   छा   गया  | तब ब्रह्माजी ने उसे  वाणी की देवी सरस्वती कहा|  इस दिन बसंत पंचमी अर्थात माघ   मास की शुक्ल पक्ष  की पंचमी थी तभी  से इसे सरस्वती जयंती  के रूप में मनाया  जाने लगा |
बसंत ऋतू  का प्रारम्भ इसी दिन होता  हैं इसके  प्रारंभ  होते  ही चारो तरफ  वृक्षों पर नई  कोपले  आना  प्रारंभ हो जाती  हैं प्रकृति  का नजारा  सुन्दर  लगने   लगता हैं भगवान्  श्री कृष्ण  ने इसी कारण   इसे ऋतुओ  का रजा कहा हैं इस उत्सव  के अधिदेवता  श्री कृष्ण हैं इसी कारण इस दिन राधा  कृष्ण    की पूजा की जाती हैं| बसंत पंचमी के दिन सरस्वती और विष्णु का पंचोपचार पूजन कर पितृ  तर्पण  और ब्राह्मण  भोजन  करना शुभ माना  जाता हैं| बसंत ऋतू कामोद्दीपक    होती  हैं |इसके प्रमुख  देवता  काम  और रति  हैं| इसलिए इनकी  पूजा करना  भी शुभ रहता  हैं विशेषतया  ऐसे जातक जिनके  विवाह  में विलम्ब  चल रहा हो दांपत्य  जीवन अच्छा  नही  हो उन्हें इस दिन का लाभ  अवश्य  उठाना  चाहिए |तंत्र  शास्त्रों के अनुसार इस ऋतू में वशीकरण,  मोहन  और आकर्षण कर्म सम्बंधित प्रयोगों  में सिद्धि मिलती  हैं| इसलिए ऐसे मंत्रो  की सिद्धि बसंत ऋतू में अवश्य करनी चाहिए ताकि  जन कल्याण में इनको  उपयोग  में लिया  जा सके |
 वाल्मीकि  रामायण  के उत्तर  कांड  के अनुसार कुम्भ  कर्ण  ने वर  प्राप्त करने के लिए गोवर्ण  में दस  हजार  वर्षो  तक  घोर  तपस्या की उसकी  तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी वर देने  को तैयार हुए | उस  समय  सभी देवो  को चिंता  होने लगी तब देवो ने ब्रह्माजी से कहा की यह  राक्षस  तो पहले  से ही हैं वर प्राप्त करने के पश्चात् तो और अधिक  उन्मत  हो जायेगा  |इस समस्या  से समाधान  पाने  हेतु ब्रह्माजी ने सरस्वती का स्मरण  किया जब कुम्भ कर्ण ने वर माँगा  उस समय सरस्वती उसकी जिह्वा  पर सवार  थी जिससे कुम्भ कर्ण   ने कहा " स्वपन  वर्षा व्यनेकानी  देव देव ममाप्सिंम"   तब ब्रह्माजी ने तथास्तु  कहा |इस प्रकार कुम्भ कर्ण को कई  वर्षो तक सोने  का वरदान  प्राप्त हुआ  और देवो की चिंता भी दूर हो गयी इसी कारण भी   इस दिन सरस्वती पूजा विशेषतया की जाती हैं |
इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी माना हैं |लोक व्यव्हार में भी इस दिन किसी भी कार्य को करना शुभ माना जाता हैं |सरस्वती कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन सरस्वती का पंचोपचार पूजन कर मन्त्र जप करना चाहिए| इस दिन सरस्वती कृपा प्राप्त करने हेतु कुछ विशेष प्रयोग .....
१...प्रातकाल  नहा धोकर पवित्र होकर सफ़ेद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजाघर में जाकर एक बाजोट पर हरा वस्त्र बिछाकर उस पर सरस्वती की तस्वीर को स्थापित कर धुप दीप जलाये मौसमी फल चढ़ाये और सफ़ेद मिष्ठान्न का भोग लगाकर निम्न मन्त्र का पञ्च माला जप करे इसके पश्चात् प्रतिदिन एक माला जप करे तो आप पर देवी सरस्वती की कृपा होने लगती हैं 
मन्त्र ...ॐ ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा 
२..देवी सरस्वती के चतुर्भुज रूप का ध्यान करते हुए इस मन्त्र का एक माला जप करे तो आप पर देवी की कृपा होने लगती हैं 
ॐ   ऐं महा सरस्वत्ये नमः 
३... सरस्वती जयंती के दिन माता सरस्वती को प्रसन्न करने हेतु धुप दीप जलाकर निम्न प्रार्थना मन्त्र का जितना संभव हो उतना जप करे फिर प्रतिदिन ११ ,२१ या ५१ बार इसका जप करे तो माता सरस्वती की कृपा होने लगती हैं 
सरस्वती महामाये विद्ये कमल लोचने |
विद्या रुपे विशालाक्षी विद्या देहि नमोस्तुते ||
४ अन्य मंत्र ...ॐ    ऐं  ह्रीं श्रीं वागदेव्ये नमः 
इस प्रकार बसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए बहुत महत्व रखता हैं
 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
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