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शनिवार, 24 अगस्त 2013

अक्ष्युपनिषद

         ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 
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नैत्र रोगो के निवारण के लिए अक्ष्युपनिषद का पाठ करना चाहिए । इसके लिए शुक्ल पक्ष के रविवार जो आपकी राशि के अनुकुल हो से प्रारंभ कर प्रतिदिन धुप दीप जलाकर सूर्य भगवान को अध्र्य देते हुए करना चाहिए
 हरिः ओम ।अथ ह सांगकृतिर्भगवानदित्यलोकंजगाम्।स आदित्यम नत्वाचक्षुष्मतीद्यया तमस्तुवत्।ओम नमो भगवते श्रीसूर्यायाक्षितेजसे नमः।ओम खेचराय नमः।ओम महासेनाय नमः।ओम तमसे नमः।ओम रजसे नमः।ओम सत्वाय नमः।ओम असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्माऽमृत ंगमय हंसो भगवांछुचिरूपः अप्रतिरूपः विश्वरूपं घृणिनंजातवेदसं हिरण्मयं ज्योतीरूपं तपन्तम्।सहस्त्ररश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः।ओम नमो भगवते श्रीसूर्यायादित्यायाक्षितेजसेऽहोऽहिवाहिनि वाहिनि स्वाहेति।एवं चक्षुष्मतीद्यया स्तुतः श्रीसूर्यनारायणः सूप्रीतोऽब्रवीच्चक्षुष्मतीद्यां ब्राह्मणो यो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति ।न तस्य कुलेऽन्धो भवति ।अष्टौ ब्राह्मणान ग्राहित्वाथ विद्यासिद्धिर्भवति।य एवं वेद स महान भवति।
  

नवग्रह स्तोत्रम

          ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
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जब किसी जातक को एक से अधिक ग्रहो के प्रकोप के कारण कोई रोग पीडा दे रहा हो तो ऐसे जातक को धुप दीप जलाकर निम्न स्तोत्र का पाठ करना रोग शांति मे सहायक होता है।इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की समस्या के समाधान हेतु इस स्तोत्र का पाठ लाभदायक होता है। महर्षि व्यास द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्रम
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्।।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्।।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणांप्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।
हिमकुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड सम्भूत तं नमामि शनैश्चरम्।।
अर्धकायं महावीर्यम् चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भ सम्भूतं तं राहूं प्रणमाम्यहम्।।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रत्मकंघोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।
इति व्यासमुखोद्रीतं यः पठेत सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति।।
नरनारीनृपाणां च भवेद्दुःस्वपननाशनम।
ऐश्वर्यंतुलमं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम्।।

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयोगी मंत्र

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       हमारे धर्मशास्त्रो मे स्वास्थ्य रक्षा हेतु विशष सिद्धांत एवं मंत्र दिए गए है जिनका नियमानुसार पालन एवं जाप करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है इन मंत्रो का जाप करने से हमे आत्मिक मानसिक एवं शारीरिक शांति प्राप्त होती है मंत्र जाप का प्रारंभ आप किसी शुक्ल पक्ष के अपनी राशि के अनुसार अनुकुल दिवस को प्रारंभ करे यहां पर विभिन्न  रोगो के निवारण के लिए कुछ उपयोगी मंत्र दिए जा रहे है इन मंत्रो को आप पूरक रूप मे प्रयोग कर अवश्य लाभ प्राप्त कर सकते है

1. यत्सर्वं प्रकाशयति तेन सर्वान् प्राणान् रश्मिषु संनिधते।
    अर्थात् जब आदित्रू प्रकाशमान होता है, तब वह समस्त प्राणों को अपनी किरणों में रखता है। इसमें भी एक रहस्य है। वह यह कि प्रातःकाल की सूर्य-किरणों में अस्वस्थता का नाश करने की जो अदभुत शक्ति है, वह मध्यान्ह तथा सायाह्न की सूर्य-रश्मियों में नहीं है।
           उद्यन्नादित्य रश्मिभिः शीष्र्णो रोगमनीनशः0।
     वेदभगवान् कहते हैं कि प्रातःकाल की आदित्य-किरणों से अनेक व्याधियों का नाश होता है। सूर्य-रश्मियों में विष दूर करने की भी शक्ति है। स्वस्थ शरीर से ही धर्म,अर्थ,काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है, अन्यथा नहीं ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’। एतदर्थ आरोग्य के इच्छुक साधकों को भगवान् सूर्य की शरण में रहना अत्यावश्यक है। सूर्य की किरणों में व्याप्त प्राणों को पोषण प्रदान करने वाली महती शक्ति का निम्नलिखित सहज साधन से आकर्षण करके साधक स्वस्थ,नीरोग और दीर्घजीवी होकर अन्त में दिव्य प्रकाश को प्राप्त करके परमपद को भी प्राप्त कर सकता है। आलस्य या अविश्वासवश इस साधन को न करना एक प्रकार से आत्मान्नति से विमुख रहना है।
     साधन- प्रातःकाल संध्या-वन्दनादि से निवृत होकर प्रथम प्रहर में, जब तक सूर्य की धूप विशेष तेज न हो, तब तक एकान्त में केवल एक वस्त्र पहनकर और मस्तक, हृदय,उदर आदि प्रायः सभी अंग खुले रखकर पूर्वाभिमुख भगवान् सूर्य के प्रकाश में खडा हो जाय। तदनन्तर हाथ-जोड, नेत्र बंद करके जगच्चक्ष्ज्ञु भगवान् भास्कर का ध्यान इस प्रकार करे-
            पùासनः पùकरो द्विबाहुः पùùुतिः सप्ततुरग्ङवाहनः।
            दिवाकरो लोकगुरूः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः।।    
यदि किसी साधक को नेत्रमान्द्यादि दोष हो तो वह ध्यान के बाद नेत्रोपनिषद् का पाठ भी कर ले। तदनन्तर वाल्मीकिरामायणोक्त आर्ष आदित्यहृदय का पाठ तथा ‘ ओम ह्नीं हंसः0’ इस बीजसमन्वित मंत्र का कम-से-कम पाँच माला जप करके मन में दृढ धारणा करे कि जो सूर्य-किरणे हमारे शरीर पर पड रही हैं और जो हमारे चारों ओर फैल रही हैं, उन सब में रहनेवाली आरोग्यदा प्राणशक्ति मेरे शरीर के रोम-रोम में प्रवेश कर रही है। नित्य नियमपूर्वक दस मिनट से बीस मिनट तक इस प्रकार करे। ऐसा करने से आपके अधिकांश रोगो का शमन हो जाता है
 2.             सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्।
              शान्तिदं सर्वरिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम्।।
हरिनाम संकीर्तन सभी रोगों का उपशमन करने वाला, सभी उपद्रवों का नाश करनेवाला और समस्त अरिष्टों की शान्ति करने वाला है।
3. नित्य अभिवादन- घर में माता-पिता, गुरू, बडे भाई आदि जो भी अपने से बडे हों, उनको नित्य नियमपूर्वक प्रणाम करे। नित्य बडों को प्रणाम करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है-
                      अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
                      चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
4. वेदवेताओं का कहना है कि गोविन्द, दामोदर और माधव- ये नाम मनुष्यों के समस्त रोगों को समूल उन्मूलन करनेवाले भेषज हैं और संसार के आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक इन विविध तापों का नाश करने के लिये बीज मन्त्र के समान है। वेदो मे कहा भी गया है .
                आत्यन्तिकं व्याधिहरं जनानां चिकित्सिकं वेदविदोे वदन्ति।
               संसारतापत्रयनाशबीजं गोविन्द दामोदर माधवेति।।


  5. ऋग्वेद के निम्न मंत्र का जाप भी रोग शांति मे सहायक होता है
              अपामीवामप स्त्रिधमप सेधत दुर्मतिम्।
               आदित्यासो युयोतना नो अंहसः।।
                                   
‘ हे दृढव्रती देवगणो आदित्यासः! हमारे रोगों का निवारण कीजिये। हमारी दुर्मति तथा पापों को दूर हटा दीजिये।’
  6. अथर्ववेद के निम्न मंत्र का जाप भी रोग शांति मे सहायक होता है
            त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्तां मरूतां गणाः।
              त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत्।।
 ‘हे देवो! इस रोगी की रक्षा कीजिये। हे मरूतों के समूहो! रक्षा करो। सब प्राणी रक्षा करें। जिससे यह रोगी नीरोग हो जाय।’
7. वेद में भी दीर्घ जीवन की प्राप्ति के लिये वेदमाता गायत्री की स्तुति करने के लिए बार-बार कहा गया है-
         स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
         आयुः प्राणं प्रजां पशंु कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। 
         महृं दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्।। 
   ‘ब्राह्मणों को पवित्र करने वाली, वरदान देनेवाली वेदमाता गायत्री की हम स्तुति करते हैं। वे हमें आयु,प्राण,प्रजा,पशु,कीर्ति,धन और ब्रह्मतेज प्रदान करके ब्रह्मलोक में जायें।’
      इस मंत्र में सबसे प्रथम आयु का उल्लेख किया गया है। आयु के बिना प्रजा, कीर्ति, धन आदि का कुछ भी मूल्य नहीं हैं। आत्मा के बिना देह का कोई मूल्य नहीं।
8. किसी भी प्रकार की ग्रह पीडा ज्वर एवं भूत प्रेतादि बाधा के निवारण के लिए अपराजिता मंत्र का जाप उपयोगी माना गया है अपराजिता मंत्र.
             ओम नमो भगवती वज्रश्रृंखले हन हन ओम भक्ष भक्ष ओम खाद ओम अरे रक्तम पिब कपालेन रक्ताक्षि रक्तपटे भस्मांगि भस्मलिप्तशरीरे वज्रायुधे वज्रप्राकारनिचिते पूर्वां दिशं बन्ध बन्ध ओम दक्षिणां दिशं बन्ध बन्ध ओम पश्चिमां दिशं बन्ध बन्ध ओम उत्तरां दिशं बन्ध बन्ध नागान बन्ध बन्ध नागपत्नीर्बन्ध बन्ध ओम असूरान बन्ध बन्ध ओम यक्षराक्षसपिशाचान बन्ध बन्ध ओम प्रेत भूतगन्धर्वादयो ये केचिदुपद्रवास्तेभ्यो रक्ष रक्ष ओम उध्र्वं रक्ष रक्ष ओम अधो रक्ष रक्ष ओम क्षुरिकं बन्ध बन्ध ओम ज्वल महाबले घटि घटि ओम मोटि मोटि सटावलिवज्राग्नि वज्रप्राकारे हुं फट ही्रं हु्रं श्रीं फट ही्रं हः फूं फें फःसर्वग्रहेभ्य सर्वव्याधिभ्य सर्वदुष्टोपद्रवेभ्यो ही्रं अशेषेभ्यो रक्ष रक्ष

सुर्य किरन चिकित्सा


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सूर्य किरणों के सेवन से हमारे देह के कौन.कौनए कैसे.कैसे रोगों का निवारण होता है और अन्य क्या.क्या लाभ मिलते हैंए उसके विषय में कहा गया हैं कि.
सूर्यतापः स्वेदवहः सर्वरोगविनाशकः।
मेदच्छेदकरश्चैव बलोत्साहविवर्धनः।।
दद्रुविस्फोटकुष्ठघ्रः कामलाशोथनाशकः।
ज्वरातिसारशूलानां हारको नात्र संशयः।।
कफपितोöवान् रोगान् वातरोगांस्तथैव च।
तत्सेवनान्नरो जित्वा जीवेच्च शरदां शतम्।।
अर्थात् सूर्य का ताप स्वेदको बढानेवाला और सभी प्रकार के रोगों को नष्ट करनेवाला मेदका छेदन करनेवालाए बल तथा उत्साह को बढाने वाला है। यह दद्रु  विस्फोटक कुष्ठ  कामला  शोथ   ज्वर   अतिसार शूल तथा कफ एवं वात और पित.इन त्रिदोषों से उत्पन्न रोगों को दूर करनेवाला है। इसके सेवन से मनुष्य रोगों पर विजय प्राप्त करके दीर्घायु प्राप्त करता है।
सारांश यह है कि सभी प्रकार के रोगों का निवारण सूर्य.किरणों के सेवन से होता है। शक्ति एवं उत्साह में वृद्धि होती है और शतायु की प्राप्ति होती हैं।
सूर्य के प्रकाश से हमें प्राण.तत्व तथा उष्णता ये दोनों प्राप्त होते हैंए जो हमारे जीवन को स्वस्थ तथा दीर्घजीवी बनाते हैं। सूर्यकिरण द्वारा ष्ओजोन वायुष् उत्पन्न होती हैए जो हमें और हमारी पृथ्वी को सुरक्षित रखती है। यह ओजोन हमारी शक्ति को बढाती है तथा रक्त को विशुद्ध करती है  हृदय को शक्तिशाली बनाती है और हड्डी तथा नाडी इत्यादि को सक्षम बनाती है।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

रोग निवारण- सूक्त

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रोगो के बारे मे अधिक जानकारी हेतु आप मेरे द्वारा लिखित व्याधि विधान निदान एवं समाधान का अध्ययन करे 
अथर्ववेद के चतुर्थ काण्ड का 13 वाँ सूक्त तथा ऋ़ग्वेद के दशम मण्डल का 137 वाँ सूक्त ‘रोग निवारण-सूक्त’ - के नाम से प्रसिद्ध है। अथर्ववेद में अनुष्टप् छंद के इस सूक्त के ऋषि शंताति तथा देवता चन्द्रमा एवं विश्वेदेवा है। जब कि ऋग्वेद में प्रथम मन्त्र ऋषि भारद्वाज, द्वितीय के कश्यप, तृतीय के गौतम, चतुर्थ के अत्रि, पंचम के विश्वामित्र, षष्ठ के जमदग्रि तथा सप्तम  मन्त्र के ऋषि वसिष्ठजी है और देवता विश्वेदेवा है। इस सूक्त के जप-पाठ से रोगों से मुक्ति अर्थात् आरोग्यता प्राप्त होती है। ऋषि ने रोग मुक्ति के लिये ही प्रार्थना की हैं इसलिए किसी भी रोग के निदान के लिए इस सुक्त का पाठ रोग शांति मे सहायक होता है.
                             उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः।
                             उतागश्चकु्रषं देवा देवा जीवयथा पुनः।।1।।
हे देवो! हे देवो! आप नीचे गिरे हुए को फिर निश्चयपूर्वक ऊपर उठाएँ। हे देवो! हे देवो! और पाप करने वालों को भी फिर जीवित करें, जीवित करें।
                            द्वाविमौ वातौ वात आ सिन्धोरा परावतः।
                            दक्षं ते अन्य आवातु व्यन्यो वातु यद्रपः।।2।।
 ये दो वायु हैं। समुद्र से आने वाला पहला वायु है और दूर भूमि पर से आनेवाला दूसरा वायु है। इनमें से एक वायु तेरे पास बल ले आये और दूसरा वायु जो दोष है, उसे दूर करे।
                           आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः।
                           त्वं हि विश्वभेषज देवानां दूत ईयसे।।3।।
हे वायु! ओषधि यहाँ ले आ! हे वायु! जो दोष है, वह दूर कर। हे सम्पूर्ण ओषधियों को साथ रखने वाले वायु! निःसंदेह तु देवों का दूत-जैसा होकर चलता है, जाता है, प्रवाहित है।
                         त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्तां मरूतां गणाः।
                         त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत्।।4।।
हे देवो! इस रोगी की रक्षा करें। हे मरूतों के समूहो! रक्षा करें। सब प्राणी रक्षा करें। जिससे यह रोगी रोग-दोषरहित हो जाये।
                         आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिष्टतातिभिः।
                         दक्षं त उग्रमाभारिषं परा यक्ष्मं सुवामि ते।।5।।
आप के पास शान्ति फैलाने वाले तथा अविनाशी साधनों के साथ आया हूँ। तेरे लिये प्रचण्ड बल भर देता हूँ। तेरे रोग को दूर भगा देता हूँ।
                        अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः।
                        अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः।।6।।
मेरा यह हाथ भाग्यवान् है। मेरा यह हाथ अधिक भाग्यशाली है। मेरा यह हाथ सब ओषधियों से युक्त है और मेरा यह हाथ शुभ-स्पर्श देनेवाला है।
                        हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिहृा वाचः पुरोगवी।
                        अनामयित्नुभ्यां हस्ताभ्यां ताभ्यां त्वाभि मृशामसि।।7।।
दस शाखा वाले दोनों हाथों के साथ वाणी को आगे प्रेरणा करने वाली मेरी जीभ है। उन नीरोग करने वाले दोनो हाथों से तुझे हम स्पर्श करते हैं।
ऋग्वेद मे ’अयं मे हस्तो ’छठे मंत्र के स्थान पर यह दूसरा मंत्र आया है आप अपनी सुविधानुसार प्रयोग कर लाभ उठा सकते है।
           आप  इद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः।
           आपःसर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम्।।
जल ही निसंदेह औषधि है।जल रोग दूर करने वाला है।जल सब रोगो की औषधि है।वह जल तेरे लिए औषधि बनाए।

                         


बुधवार, 7 अगस्त 2013

मानस मंत्रो से करे अपनी मनोकामना पूर्ति

  ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 
मो.09001742766
तुलसीदास ने भगवत शिव की कृपा से रामचरित मानस की रचना की थी। रामचरित मानस के प्रत्येक दोहा स्वयं एक सम्पूर्ण मंत्र है। संस्कृत मंत्रो का शुद्ध उच्चारण एवं उनकी साधना विधि को हर कोई नही कर सकता है। इसी कारण इन मानस मंत्रो का साधको के लिए उच्चारण हिन्दी भाषा के कारण सरल है। ये मंत्र कभी अशुभ फल नही देते। इसी कारण आमजन भी इसका पाठ कर अनुकूल लाभ प्राप्त करते है। इप मंत्रो को आप स्वंय करे एवं संभव होने पर जप का दशांश हवन भी किसी के मार्गदर्शन में कर सकते है। मानस मंत्र स्त्रियां भी अपनी मनोकामना के अनुसार कर सकती है। केवल रजस्वला अवधि में इन्हे मंत्रो का जाप नही करना चाहिए।

    किसी भी मानस मंत्र का जाप जैसे-जैसे बढता जाता है। वैसे-वैसे उसकी फल प्राप्ति भी बढती जाती है। मंत्र जाप का प्रारंभ आप अपनी मनोकामना के अनुसार सिद्ध दिवस का चयन करे। इसके लिए आप स्वंय पंचांग देखकर दिवस एवं समय का निर्धारण करे। ऐसा न हो सके तो किसी ज्योतिष की सलाहलेकर मंत्र जाप प्रारंभ करे। जिस प्रकार अन्य मंत्रों का जाप करते है। उसी प्रकार इन मंत्रो का जाप भी पूर्णत पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर करना चाहिए। अन्य मंत्रों का जाप करने से पूर्व जिस प्रकार विलोचन या विनियोग किया जाता है। उसी प्रकार मानस मंत्र का जाप करने से पहले रक्षा मंत्र का ग्यारह बार जाप करना चाहिए है। मंत्र इस प्रकार है-
            मामभिरक्षय रघुकूल नायक।
           घृत वर चाप रूचिर कर सायक।।
इसके पश्चात अपने अनुकूल मंत्र का जाप प्रारंभ करना चाहिए। मंत्र जाप करते समय श्री राम पंचायत का चित्र अपने घर में लगाए। उन्हे धुप दिप,पुष्प,गंध अर्पित करे एवं कोई मिष्ठान का भोग लगाए। इसके पश्चात मंत्र का जाप प्रारंभ करना चाहिए। अन्य मंत्रों की भांति इन मंत्रों को भी सिद्ध करके जाप किया जाए तो इसका परिणाम भी अच्छा रहता है। जिस मंत्र को आप सिद्धा करना चाहते है। उस मंत्र को किसी शुभ समय में ग्यारह माला जाप करना चाहिए। अन्तिम माला जाप करते समय मंत्र के अन्त में स्वाहा लगाकर आहुति देनी चाहिए। मानस मंत्रों की सिद्धि करते समय हवन में पिपल या आम समिधा का प्रयोग किया जाता है। इनके उपलब्ध न होने की स्थिति में जंगल में से अर्थात ऐसे उपले जो थेपे हुए ना हो। हवन सामग्री में गाय का घी, शक्कर, कपुर, केसर, चंदन, तिन, अगर, तगर, चावल, जौ, नागरमोथा एवं नारियल का प्रयोग किया जाता इन सभी हवन सामग्री को एक पात्र में मिलाकर हवन करने से पूर्व तैयार करे। सामग्री कम या अधिक कोई को तो इनकी कोई चिंता नही करे। सभी सामग्री का अंश हवन करते समय आहुति में आना चाहिए। मंत्र जाप एवं हवन करते समय आप उतर की और मुंह करके पाठ करे तो अच्छा। अन्यथा पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके भी आप ईशान में पूजा धर होने पर कर सकते है। मंत्र का इस प्रकार जाप करने के पश्चात मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर प्रतिदिन नियत समय स्थान पर एक माला जाप करना चाहिए ताकि आपको दिन प्रतिदिन शुभ फलों की प्राप्ति भी बढती रहें।

आपकी मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष मानस मंत्र दिए जा रहे है। जिसमे से आप भी अपनी ईच्छा के अनुसार मानस मंत्र का चयन कर प्रयोग कर सकते है।

शीघ्र विवाह के लिए
तब जनक पाई बसिष्ठ आयसु,ब्याह साज संवारि कै।
मांडवी श्रृत किरति उर्मिला, कुंअरि लई हंकारि कैं।।

विद्या प्राप्ति के लिए
गुरू ग्रह गये पढन रघुराई।
अलप काल विद्या सब आई।।

ग्रह प्रवेश या किसी अन्य प्रदेश में व्यापार प्रारंभ करते समय
प्रबिसि नगर कीजे सग काज।
हृदय राखि कौसलपुर राजा।।

सुख सम्पति प्राप्ति हेतु
जे सकाम नर सेनहि जे गावहिं।
सुख सम्पति नाना विधि पावहि।।

आपसी प्रेम बढाने के लिए
सब नर करहि परस्पर प्रीति।
चलाहि स्वधर्म निरत श्रति नीति।।

रोगनाशः उपद्वनाश हेतु
देहिक दैविक भौतिकता तापा।
राम राज लही काहुीि व्यापा।।

वशीकरण के लिए
करतल बान धनुष अति सोहा।
देखत रूप चराचर सोहा।।

सभी विपतियों के नाश के लिए
राजिव नयन धरें धनु सायक।
भगत बिपति भजन सुखदायक।।

भागयोदय के लिए
मंत्र महामनि विषय ब्याल के लिए।
मेटत कठिन कुअंक भाल के।।

संतान प्राप्ति के लिए
एहि विधि गर्भ सहित सब नारी।
भई हृदय हरषित सुख भारी।।
बा दिन ते हरि गर्भहि आये।
सकल लोक सुख संयति छायें।।

निर्धनता निवारण हेेतु
अतिथि पुज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद दवारी के।।

शत्रुता निवारण हेतु
गरल सुधा रिपु करहि मिताई।
मोपद सिंधु अनल सितलाई।।

ज्वर नाश के लिए
स्ुानु खगपति यह कथा पावनी।
त्रिविध ताप भव भय दावनी।।

अकाल मृत्यु दोष दूर करनें हेतु
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हारा कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

कोर्ट केस में विजय प्राप्ति हेतु
पवन तनय बल पवन समाना।
जेहि पर कृपा करहि जनु जानी।
कबि उर अजिर न चावहि बानी।।

व्यक्तित्व में निखार हेतु
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहूं।
सो तेहि मिलई न कछु संदेहूं।।

मोक्ष प्राप्ति हेतु
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुवीर।
अस विचारि रघुवीर मनि हरहु विषय भव भीर।।


जन्मांग चक्र और भवन सुख

 ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 
मो.09001742766
सुंदर सा एक बंगला बने न्यारा ऐसी प्रायः व्यक्ति की इच्छा रहती है। कुछ भाग्यवानो को यह सुख कम आयु में ही प्राप्त हो जाता है। तो कुछेक लोग पूरी जिंदगी किरायेदार होकर ही व्यतीत कर देते है। पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मो के अनुसार ही सुख की प्राप्ति होती है। भवन सुख हेतु कुण्डली मे चतुर्थ भाव व चतुर्थेश का महत्वपूर्ण स्थान है। जातक तत्व के अनुसार ’ग्रह ग्राम चतुष्टपद मित्र क्षेत्रो...... । अर्थात भवन सुख हेतु चतुर्थ भाव, चतुर्थेश की कुण्डली में शुभ एवं बलवान होकर स्थित होना जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है तो निर्बल होकर स्थित होना लाख चाहने पर भी उचित भवन की व्यवस्था नहीं करवा पाता। चतुर्थ भाव में चतुर्थेश होना व लग्न में लग्नेश होने से या दोनों में परस्पर व्यत्यय हाने से एवं शुभ ग्रहो के पूर्ण दृष्टि प्रभाव का होना भी जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है। भवन सुख के कुछ ज्योतिषिय योग -
1, लग्नेश से युक्त होकर चतुर्थेश सर्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो भवन सुख उत्तम होता है।

2, तृतीय स्थान में यदि बुध हो तथा चतुर्थेश का नंवाश बलवान हो, तो जातक विशाल परकोट से युक्त भवन स्वामी होता है।

3, नवमेश केन्द्र में हो, चतुर्थेश स्र्वोश राशि में या स्वक्षेत्री हो, चतुर्थ भाव में भी स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो जातक को आधुनिक साज-सज्जा से युक्त भवन की प्राप्ति होगी

4, चतुर्थेश व दशमेश, चन्द्र व शनि से युति करके स्थित हो तो अक्समात ही भव्य बंगले की प्राप्ति होती है।

5, कारकांश लग्न में यदि चतुर्थ स्थान में राहु व शनि हो या चन्द्र व शुक्र हो तो भव्य महल की प्राप्ति होनी है।

6, कारकांश लग्न में चतुर्थ में उच्चराशिगत ग्रह हो या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में स्थित हो तो जातक विशाल महल का सुख भोगता है।

7,यदि कारकांश कुण्डली में चतुर्थ में मंगल व केतु हो तो भी पक्के मकान का सुख मिलता है।

8, यदि चतुर्थेश पारवतांश में हो, चन्द्रमा गोपुरांश में हो, तथा बृहस्पति उसे देखता हो तो जातक को बहुत ही सुन्दर स्वर्गीय सुखों जैसे घरो की प्राप्ति होती है।

9,यदि चतुर्थेश व लग्नेश दोनों चतुर्थ में हो तो अक्समात ही उत्तम भवन सुख प्राप्त होता है।

10,भवन सुखकारक ग्रहो की दशान्तर्दशा में शुभ गोचर आने पर सुख प्राप्त होता है।

11,चतुर्थेश स्थान, चतुर्थेश व चतुर्थ कारक, तीनों चर राशि में शुभ होकर स्थित हों या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में हो या लग्नेश, चतुर्थेश व द्वितीयेश तीनांे केन्द्र त्रिकोण में, शुभ राशि में हों, तो अनेक मकानांे का सुख प्राप्त होता है। यदि भवन कारक भाव-चतुर्थ हो, तो जातक को भवन का सुख नही मिल पाता ।

इन कारकों पर जितना प्रभाव बढ़ता जाएगा या कारक ग्रह निर्बल होेते जाएंगे उतना ही भवन सुख कमजोर रहेगा। पूर्णयता निर्बल या नीच होने पर आसमरन तले भी जीवन गुजारना पड़ सकता है। किसी स्थिति में जातक को भवन का सुख कमजोर रहता है, या नहीं मिल पाता इसके कुछ प्रमुख ज्योतिषीय योगों की और ध्यान आकृष्ट करें तो पाते हैं कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश का रहना प्रमुख है। इसके अतिरिक्त -
कारकांश कुण्डली में चतुर्थ स्थान में बृहस्पति हो तो लकड़ी से बने घर की प्राप्ति होती है। यदि सूर्य हो तो घास फूस से बने मकान की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश, लग्नेश व द्वितीयेश पर पापग्रहों का प्रभाव अधिक होने पर जातक को अपने भवन का नाश देखना पडता है।
चतुर्थेश अधिष्ठित नवांशेष षष्ठ भाव में हो तो जातक को भवन सुख नही मिलता। चतुर्थेश व चतुर्थ कारक यदि त्रिक भावो में स्थित हो तो जातक को भवन सुख की प्राप्ति नही होती। शनि यदि चतुर्थ भाव मे स्थित हो तो जातक को परदेश में ऐसे भवन की प्राप्ति होगी, जो टुटा-फूटा एवं जीर्ण-शीर्ण पुराना हो।
द्वितीय, चतुर्थ, दशम व द्वादश का स्वामी, पापग्रहो के साथ त्रिक स्थान में हो, तो भवन का नाश होता है।
चतुर्थ भावस्थ पापग्रह की दशा में भवन की हानि होती है। भवन सुख हेतु कुण्डली में इसके अतिरिक्त नवम, दशम, एकादश, पुचम भाव का बल भी परखना चाहिए। क्यांेकि इन भावांे के बली होने पर जातक को अनायाश ही भवन की प्राप्ति होते देखी गई है। इन भावों में स्थित ग्रह, यदि शुभ होकर बली हो व भावेश भी बली होकर स्थित हो तो निश्चयात्मक रूप से उत्तम भवन सुख मिलता है।




                   

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

मंगली दोष एंव दहेज

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वर्तमान मे मंगली दोष एंव चिर परिचित शब्द है। विवाह वार्ता के समय इन दो शब्दो का मायाजाल या आंतक आपने कई बार देखा होगा । यदि कहा जाए कि 50 प्रतिशत रिश्ते इन दो दोषो के कारण अपने अंतिम चरण मे जाकर टुटते है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी ! कई बार युवती के माता -पिता अपनी लाडली के योग्य रिश्ते की चाह मे अपना सुख -चैन खो बेठते है परंतु दहेज रूपी शेषनाग उन्हे जीवन भर डसने की कोशिस करता रहता है ! दहेज ईच्छा पुरी न करने पर अपनी संतान के साथ ससुराल पक्ष का व्यवहार बिगड जाता है ! कई बार कन्या को शारीरिक यातनाएं भी दी जाती है !

        मंगली दोष एवं दहेज का परस्पर घनिष्ठ संबंध है ! मंगल को ऋण का अचल संपन्ति का कारक ग्रह माना जाता है ! जब किसी युवक के जन्मांग मे मंगल धन -लाभ का कारक होकर ससुराल भाव से संबंध बनाए तो उसे ससुराल से धन की प्राप्ति कम हो जाती है। यहि मंगल जब कमजोर हो तो उसे ससुराल से धन कि प्राप्ति कम हो जाती है। आजकल धन कि इच्छा प्रत्येक व्यक्ति को रहती है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से धन कि प्राप्ति करना चाहता है। ज्योतिष मे इसी कारण धन भाव को मारक भाव माना गया है। जीवन साथी का धन भाव अर्थात अष्टम भाव भी मारक भाव माना गया है। मंगल एक पाप ग्रह है। इसलिए धन प्राप्ति के लिए पाप कार्य भी करवा सकता है। जब मंगली दोष धन भाव या अष्टम भाव मे स्थिति के कारण बनता हो तो ऐसी स्थिति मे दहेज कि पूर्ति नही कर पाने के कारण उसके साथ मारपीट भी कि जाती है। इस समय अल्पायु योग वाली कन्याओ को दहेज हत्या का सामना भी करना पडता है।

आपने समाचार पत्रो मे कई बार पढा होगा कि विवाह कि रस्म या पाणिग्रहण संस्कार के समय दहेज इच्छा पुरी नही होने के कारण बारात वापिस लौट गयी । दहेज मे मारुति न मिलने कारण बारात लौट जाना अब आम बात हो गई है। दहेज लेते समय व्यक्ति विशेष का उदाहरण देकर अपनी लालसा को सही बताने कि कोशिस करते है। दहेज के कारण कई बार युवति द्वारा पुलिस केस कर दिया जाता है। तो कई बार विवाह समारोह स्थल पर तोडफोड भी कर दी जाती है। अर्थात मंगली दोष कि ऐसी स्थिति विवाह मे कोई न कोई बाधा अवश्य उत्पन्न करती है। विवाह के पश्चात भी इनका जीवन परेशानियो भरा रहता है। ससुराल पक्ष द्वारा ताने मारकर परेशान किया जाना एक सामान्य बात है। इलेक्ट्कि करट देना ,गर्म चिमटे द्वारा शरीर को दागना जैसी कई अमानवीय यातना दि जाती है। कई बार ऐसा भी होता है। कि रसोई घर मे खाना बनाते समय आगे लगने से जलकर मृत्यु हो जाती है। इसका कारण दहेज हत्या न होने पर भी दहेज हत्या का आरोप लगा दिया जाता है। तो कई बार जानबुझकर केरोसीन डालकर हत्या कर दी जाती है। अर्थात दहेज न मिलने से ससुराल पक्ष द्वारा घृणित कार्य को अंजाम दे दिया जाता है।

जिस प्रकार किसी कन्या कि कुण्डली मे दहेल कि स्थिति बनती है। उस प्रकार का किसी पुरुष कि कुंडली मे होने पर कन्या पक्ष को धन देना पडता है। वर्तमान मे कई राज्यो मे स्त्री पुरुष अनुपात अर्थात लिंगानुपात समस्या बनता जा रहा है। एक हजार पुरुषो के मुकाबलो  आढ सौ स्त्रिया होने क कारण दुसरे राज्यो से युवतिया खरीद कर विवाह किया जा रहा है। तो कई लोगो द्वारा युवती के पिता को धन देकर विवाह सम्बंध तय किया जाता है। विवाह सम्बंध के पश्चात भी जब युवती के माता पिता को आवश्यकता पडने पर धन नही दिया जाता तो उसे घर पर बैढा दिया जाता है। उसे ससुराल नही भेजा जाता । अर्थात पुरुष कि कुंडली मे दहेज जिसे दापा भी कहते है। योग होने पर दाम्पत्य जीवन मे परेशानी होती रहती है।
जब किसी जन्मंाग चक्र मे मंगली दोष के साथ दहेज योग भी निर्मित हो रहा हो तो उसे किसी योग्य ज्योतिषि का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करना चाहिए । विशेष रुप से लग्न, द्वितिय एंव अष्टम भाव मे मंगल स्थिति बनाकर किसी पापग्रह से सम्बंध बनाए एंव वह पाप ग्रह धनेश या लाभेश बन रहा हो तो उन्हे इस प्रकार कि पीडा सहन करनी पड सकती है।