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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

दुर्गा सप्तशती से करे अपनी मनोकामना पूर्ति

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
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नवरात्र शक्ति आराधना का पर्व है। इस समय माता दुर्गा की पुजा उपासना करने से जातक को धर्म,अर्थ,काम की प्राप्ति होती है। चारों पुरूषार्थो की प्राप्ति के लिए दो सप्तशती का पाठ किया जाता है। मद्भागवत गीता से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शेष तीनो पुरूषार्थो की प्राप्ति दुर्गा सप्तशती के पाठ से संभव है। वर्तमान में देखा जाए तो आम जनमानस इन तीन पुरूषार्थ की प्राप्ति के लिए हमेशा प्रयत्न करता रहता है। इसलिए इनकी प्राप्ति के लिए नवरात्र काल से उतम समय ओर कोई नही है। इसलिए अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करे।
दुर्गा सप्तशती मार्कडेय पुराण का एक अंश है। इसमे 700 मंत्र है। जिसमे उच्चाटन के 200 मंत्र, स्तंभन के 200 मंत्र,मारण कर्म के 90, मोहन कर्म के 90,विद्वेषण के 60 और वशीकरण के 60मंत्र है। दुर्गा सप्तशती मे 535 श्लोक,57 उवाच, 42 अर्धश्लोक और पांचवे अध्याय के 66 अवदानो को एक-एक मंत्र मानकर कुल 700 मंत्र बनते है। इसी कारण इसे दुर्गा सप्तशती कहा जाता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ का प्रारंभ करने से पूर्व उचित मुर्हुत देखकर पाठ प्रारंभ करना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करे। यदि लाल रंग के वस्त्र एवं आसन हेतु लाल रंग का ऊनी कंबल मिल जाए तो उतम है। फिर आसन शुद्धि क्रिया कर आसन पर बैठ जाए। इसके लिए निम्न मंत्र का जाप कर जल हाथ में लेकर अपने चारो ओर जल छिडक दे। तिलक लगाना, शिखा बंधन कर पुर्वाभिमुख बैठ जाए। फिर चार बार आचमन कर इनका जाप करे।
ओम ऐं आत्मतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ओम ह्में विद्यातत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ओम क्लीं शिवतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ओम ऐं ह्में क्लीं सर्वतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
इसके पश्चात प्राणायाम, प्रणाम कर संकल्प लेकर देवी दुर्गा का ध्यान करके पुस्तक की पुजा करे। 
पुजा मंत्र-
ओम नमो दैव्ये महादैव्ये शिवाये सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्राय नियताः प्रणताः स्मृतामः।।
फिर योनि मुद्रा प्रदर्शन कर भगवती को प्रणाम करना चाहिए। इसके पश्चात मूल नवार्ण मंत्र से पीठादि में आधार शक्ति की स्थापना करके पुस्तक को विराजमान इसके बाद शापोद्धार करे। 
शापोद्धार मंत्र-
ओम ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरू कुरू स्वाहा।
इस मंत्र का पाठ प्रारंभ एवं अंत मे सात बार जाप करे। इसके बाद उत्कीलन मंत्र का जाप आदि एवं अंत मे इक्कीस बार करे। 
उत्कीलन मंत्र-
ओम श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशती चण्डिके उत्कीलनं कुरू कुरू स्वाहा।
इसके पश्चात मृतसंजीवनी मंत्र का जाप सात-सात बार करे। 
मंत्र-
ओम ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनी विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापयं क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा। 
इसके पश्चात माता दुर्गा का ध्यान करते हुए दुर्गासप्तशती का पाठ करने से आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
यदि आप किसी विशेष प्रयोजन हेतु दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहे तो अपने प्रयोजन से संबंधित अध्याय का पठन करे। इस अध्याय पठन के आदि एवं अन्त मे बटुक भैरव के अष्टोतरशत नाम का पाठ करे। क्योकि शास्त्रो के अनुसार शक्ति पूजन के साथ भैरव पूजन आवश्यक एवं शीघ्र फलदायक माना गया है। दुर्गा सप्तशती के अध्याय कामना पूर्ति के अनुसार-
ऽ प्रथम अध्याय का पाठ हर प्रकार की समस्या के समाधान के लिए।
ऽ दुसरे अध्याय का पाठ कोर्ट, कचहरी एवं शत्रुनाश हेतु।
ऽ तीसरे अध्याय का पाठ दुश्मनों से छुटकारे हेतु।
ऽ चतुर्थ अध्याय का पाठ शक्ति दर्शन हेतु।
पंचम अध्याय का पाठ भक्ति भावना, षठे अध्याय का पाठ दुःख,भय,शोक नाश हेतु, सप्तम अध्याय का पाठ किसी विशेष मनोकामना हेतु, अष्टम अध्याय का पाठ मोहन कर्म हेतु, नवम अध्याय का पाठ संतान सुख, गुमशुदा व्यक्ति या वस्तु की प्राप्ति हेतु, दशम अध्याय का पाठ भी नवम के समान ही फलदायक है। एकादश अध्याय का पाठ भौतिक सुख एवं कार्य व्यवसाय में प्रगति हेतु, द्वादश अध्याय का पाठ मान सम्मान एवं तेरहवे अध्याय का पाठ भक्ति भाव हेतु किया जाता है। आप भी अपनी इच्छानुसार पाठ कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति इस नवरात्र में अवश्य करे। 
परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
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