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शनिवार, 18 अगस्त 2012

विवाह मिलान मे नाड़ी दोष


विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कार मे बंधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलान करके की परिपाटी है। गुण मिलान नही होने पर सर्वगुण सम्पन्न कन्या भी अच्छी जीवनसाथी सिद्व नही होगी। गुण मिलाने हेतु मुख्य रुप से अष्टकूटों का मिला न किया जाता है। ये अष्टकुट है 1,वर्ण 2,वैश्य 3,तारा 4,योनी 5,ग्रहमैत्री 6गण 7,राशि 8,नाड़ी। इस अष्टकुट मे से नाड़ी विचार सर्वप्रथम विचारणीय है। इसी कारण नाड़ी के सर्वाधिक आठ अंक दिये जाते है। यदि वर एवं कन्या कि नाड़ी अलग -अलग हो तो नाड़ी शुद्धि मानी जाती है। यदि वर एवं कन्या दोनो का जन्म यदि एक ही नाड़ी मे हो तो नाड़ी दोष माना जाता है।
नाड़ी दोष होने पर यदि अधिक गुण प्राप्त हो रहे हो तो भी गुण मिलान को सही माना जा सकता अन्यता उनमे व्याभिचार का दोष पैदा होने की सभांवना रहती है। मध्य नाड़ी को पित स्वभाव की मानी गई है। इस लिए मध्य नाड़ी के वर का विवाह मध्य नाड़ी की कन्या से हो जाए तो उनमेे परस्पर अंह के कारण सम्बंन्ध अच्छे बन पाते। उनमे विकर्षण कि सभांवना बनती है। परस्पर लडाई -झगडे होकर तलाक की नौबत आ जाती है। विवाह के पश्चात् संतान सुख कम मिलता है। गर्भपात की समस्या ज्यादा बनती है। अन्त्य नाड़ी को कफ स्वभाव की मानी इस प्रकार की स्थिति मे प्रबल नाडी दोश होने के कारण विवाह करते समय अवश्य ध्यान रखे। सामान्य नाड़ी दोश होने पर किस प्रकार के उपाय दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने का प्रयास कर सकते है, आइएजाने                            
1,आदि नाड़ी - अश्विनी ,आद्र्रा पुनर्वसु ,उ,फा, हस्त ज्येष्ठा ,मुल ,शतभुशा, पुर्वाभाद्रनद
2,मध्य नाड़ी - भरणी ,मृगशिरा ,पुष्य, पुर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पुर्वाषाढा, धनिष्ठा, उत्तरासभाद्रपद
3, अन्त्य नाड़ी - कृतिका, रोहिणी, अश्लेशा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढा,श्रवण, रेवती,
आदि मध्य व अन्त्य नाड़ी का यह विचार सर्वत्र प्रचलित है लेकिन कुछ स्थानो पर चर्तुनाड़ी एवं पंचनाड़ी चक्र भी प्रचलित है। लेकिन व्यावहारिक रुप से त्रिनाडी चक्र ही सर्वथा उपयुक्त जान पडता है। नाड़ी दोष को इतना अधिक महत्व क्यो दिया गया है, इसके बारे मे जानकारी हेतु त्रिनाड़ी स्वभाव की जानकारी होनी आवष्यक है। आदि नाड़ी वात् स्वभाव की मानी गई है, मध्य नाड़ी पित स्वभाव की मानी गई है। एवं मध्य नाड़ी पित प्रति एवं अन्त्य नाड़ी कफ स्वभाव की। यदि वर एवं कन्या की नाड़ी एक ही हो तो नाड़ी दोष माना जाता है। इसका प्रमुख कारण यही है कि वात् स्वभाव के वर का विवाह यदि वात स्वभाव की कन्या से हो तो उनमे चंचलता की अधिकता के कारण समर्पण व आकर्षण की भावना विकसित नही हाती। विवाह के पष्चात   उत्पन्न संतान मे भी वात सभंावना रहती है। इसी आधार पर आद्य नाड़ी वाले वर का विवाह आद्य नाड़ी की कन्या से वर्जित माना गया है। अन्यथा उनमे व्याभिचार का दोष पैदा होने की संभावना रहती है। मध्य नाड़ी को पित स्वभाव की मानी गई है। इसलिए मध्य नाड़ी के वर का विवाह मध्य नाड़ी की कन्या से हो जाए तो उनमें परस्पर अह ंके कारण सम्बंन्ध अच्छे नही बन पाते। उनमें विकर्षण की सभंावना बनती है। परस्पर लडाई-झगडे होकर तलाक की नौबत आ जाती है। विवाह के पश्चात् संतान सुख कम मिलता है। गर्भपात की समस्या ज्यादा बनती है अन्त्य नाड़ी को कफ स्वभाव की मानी गई है। इसलिए अन्त्य नाड़ी के वर का विवाह यदि अन्त्य नाड़ी की महिला से हो तो उनमे कामभाव की कमी पैदा होने लगती है। शंात स्वभाव के कारण उनमे परस्पर सामंजस्य का अभाव रहता है। दाम्पत्य मे गलत फहमी होना भी स्वभाविक होती है। नाड़ी होने पर विवाह न करना ही उचित माना जाता है। लेकिन नाडी दोष परिहार की स्थिति मे यदि कुण्डली मिलान उत्तम बना रहा है तो विवाह किया जा सकता है।
नाड़ी दोष परिहार-
1, वर कन्या की एक राशि हो लेकिन जन्म नक्षत्र अलग-अलग हो या जन्म नक्षत्र एक ही हो परन्तु राशियां अलग हो तो नाड़ी नही होता है। यदि जन्म नक्षत्र एक ही हो लेकिन चरण भेद हो तो अति आवश्यकता अर्थात् सगाई हो गई हो, एक दुसरे को पंसद  करते हों तब इस स्थिति मे विवाह किया जा सकता है।
2, विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवति,  हस्त,  स्वाति,  आद्र्रा, पूर्वाभद्रपद इन 8 नक्षत्रो मे से किसी नक्षत्र मे वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नही रहता है।
3, उत्तराभाद्रपद, रेवती, रोहिणी, विषाख, आद्र्रा, श्रवण, पुष्य, मघा, इन नक्षत्र मे भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पडे तो नाड़ी दोष नही रहता है। उपरोक्त मत कालिदास का है।
4, वर एवं कन्या के राषिपति यदि बुध, गुरू, एवं शुक्र मे से कोई एक अथवा दोनो के राशिपति एक ही हो तो नाड़ी दोष नही रहता है।
5, आर्चाय सीताराम झा के अनुसार-नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है। यदि वर एवं कन्या दोनो जन्म से विप्र हो तो उनमे नाड़ी दोष प्रबल माना जाता है। अन्य वर्णो पर नाड़ी पूर्ण प्रभावी नही रहता। यदि विप्र वर्ण पर नाड़ी दोष प्रभावी माने तो नियम नं 4 का हनन होता हैं। क्योंकि बृहस्पती एवं शुक्र को विप्र वर्ण का माना गया हैं। यदि वर कन्या के राशिपति विप्र वर्ण ग्रह हों तो इसके अनुसार नाडी दोष नही रहता । विप्र वर्ण की राशियों में भी बुध व षुक्र राशिपति बनते हैं।
6 सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो एवं वर कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाडी दोष नही रहता हैं। इन परिहार वचनों के अलावा कुछ प्रबल नाडी दोष के योग भी बनते हैं जिनके होने पर विवाह न करना ही उचित हैं। यदि वर एवं कन्या की नाडी एक हो एवं निम्न में से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें।
1 आदि नाडी - अश्विनी-ज्येष्ठा, हस्त-शतभिषा, उ.फा.-पू.भा. अर्थात यदि वर का नक्षत्र अश्विनी हो तो कन्या नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाडी दोष होगा। इसी प्रकार कन्या नक्षत्र अश्विनी हो तो वर का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर भी प्रबल नाडी दोष होगा। इसी प्रकार आगे के युग्मों से भी अभिप्राय समझें।
2  मध्य नाडी- भरणी-अनुराधा, पूर्वाफाल्गुनी-उतराफाल्गुनी, पुष्य-पूर्वाषाढा, मृगशिरा-चित्रा, चित्रा-धनिष्ठा, मृगशिरा-धनिष्ठा।
3  अन्त्य नाडी- कृतिका-विशाखा, रोहिणी-स्वाति, मघा-रेवती; इस प्रकार की स्थिति में प्रबल नाडी दोष होने के कारण विवाह करते समय अवश्य ध्यान रखें। सामान्य नाडी दोष होने पर किस प्रकार के उपाय दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने का प्रयास कर सकते हैं, आइए जाने-          
नाड़ी दोष उपाय-
1, वर एवं कन्या दोनो मध्य नाड़ी मे उत्पन्न हो तो पुरुष को प्राण भय रहता है। इसी स्थिति मे पुरुष को महामृत्यंजय जाप करना यदि अतिआवश्यक है। यदि वर एवं कन्या दोनो की नाड़ी आदि या अन्त्य हो तो स्त्री को प्राणभय की सभंावना रहती है। इसलिए इस स्थिति मे कन्या महामृत्युजय अवश्य करे।
2, नाड़ी दोष होने संकल्प लेकर किसी ब्राह्यण को गोदान या स्वर्णदान करना चाहिए।
3, अपनी सालगिराह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान करे एवं साथ मे ब्राह्यण भोजन कराकर वस्त्र दान करे।
4, नाड़ी दोष के प्रभाव को दुर करने हेतु अनुकूल आहार दान करे। अर्थातृ आयुेर्वेद के मतानुसार जिस दोष की अधिकतम बने उस दोष को दुर करने वाले आंहार का सेवन करे।
5,वर एवं कन्या मे से जिसे मारकेश की दशा चल रही हो उसको दशानाथ का उपाय दशाकाल तक अवश्य करना चाहिए।
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1 टिप्पणी:

  1. एक बहुत ही सुन्दर लेख, अष्टकुट मिलान मे नाड़ी दोष की महत्ता पर सटीक जानकारी के लिए बहुत बहुत साधुवाद्। बारे

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