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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

महाशिवरात्रि व्रत एवम पूजा का महत्त्व

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.co
चतुर्दश्याम  तू कृष्णाय फाल्गुने शिवपुजनम
 तामुपोश्य प्रयत्नेन विषयां परिवर्जयेत 
 शिवरात्रि व्रतं नाम सर्व पाप प्रनाशनम 
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिव रात्रि का व्रत किया जाता हैं | यह व्रत सभी प्रकार के पापो का नाश करता हैं| इसी दिन भगवन शिव अर्धरात्रि के समय परम ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे | इशान संहिता के अनुसार ...
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशी 
शिवालिंग्त्योद्भुतः   कोटि सूर्य समप्रभः 
भगवन शिव की उत्त्पति के विषय में इशान संहिता में बताया गया हैं की एक बार ब्रह्मा और विष्णु को अपने कर्मो का अभिमान हो गया | जिससे वे अपने आप को एक दुसरे से श्रेष्ठ मानने  लगे | दोनों अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने का प्रयास करने लगे | तब शिव ने इन्हे विश्वास दिलाने के लिए की जीवन भौतिक आकार प्रकार से कही अधिक हैं |एक ज्योतिर्मय अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए इस स्तम्भ का आदि और अंत दिखाई नही दे रहा था | तब ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने इसके ओर-छोर   को जानने  का  निश्चय किया |  विष्णु निचे पाताल की और पता  लगाने  गए और ब्रह्मा  ऊपर  आकाश  की तरफ  छोर का पता लगाने गए | जब कई  वर्षो  के बाद  भी  पता नही लगा सके तो वे वापस  आ गए तब तक इनका  अहंकार और क्रोध नष्ट हो चूका था | तब भगवान् शिव ने प्रकट होकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया यह दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का था इसलिए इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता हैं | 
महाशिवरात्रि का व्रत जिस दिन अर्धरात्रि के समय चतुर्दशी तिथि हो उस दिन किया जाता हैं | इस दिन प्रात काल नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर शुभ मुहूर्त में व्रत का संकल्प करे और हाथ में जल चावल और फुल लेकर शिवलिंग पर अर्पित कर शिव को प्रणाम करे| इस दिन चारो प्रहरों  में शिव की पूजा करने से चारो पुरुषार्थो की प्राप्ति होती हैं | शिव पूजन करने से पूर्व निम्न प्रकार से संकल्प ले ...
ममखिल पाप क्षय  पूर्वक सकला भिष्ट सिध्ये शिव प्रीत्यर्थ च शिवपूजन महम करिष्ये 
प्रथम प्रहर में दुग्धाभिषेक कर ह्रीं ईशाने  नमः मन्त्र का जप कर संगीत और नृत्य का आयोजन करे | द्वितीय प्रहर में दही से अभिषेक कर ह्रीं अघोराय नमः से पूजा करे | तीसरे प्रहर में घृत से अभिषेक कर ह्रीं वामदेवाय नमः से पूजा करे | चतुर्थ प्रहर में मधु से अभिषेक कर ह्रीं   संजोजाताय नमः जप     कर कथा का वाचन और श्रवण करे | फिर आरती और परिक्रमा  कर इस प्रकार प्रार्थना करे 
नियमो यो महादेव क्रित्श्चैव त्व्दाज्ञा   
विसृत्यते मया स्वामिन व्रतं जातमनुत्त्मम    
व्रतोनानें देवेश यथाशक्ति कृतेन च 
संतुष्टो भव सर्वाध्य कृपाम कुरु ममोपरी 
फिर सूर्योदय के पश्चात् स्नान  कर भगवन शिव का पूजन और ॐ नमः शिवाय का जप कर व्रत खोल दे 
महाशिवरात्रि व्रत कथा .........
प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश के राजा चित्रभानु थे जिनका सम्पूर्ण  जम्बू द्वीप  पर राज था | इन्होने महाशिवरात्रि को पत्नी के साथ मिलकर उपवास किया | इस दिन   ऋषि अष्टावक्र इनके दरबार में आये इन्होने राजा से कहा की आपने आज क्यों व्रत किया हैं |तब राजा ने ऋषि से कहा ....मैं पूर्व जन्म में एक शिकारी था | मै वाराणसी में रहता था | मेरा नाम सुस्वर था | उस जन्म में मैं   बचपन से ही शिकार करता रहता था | उस जन्म में एक बार जंगल में शिकार के लिए घूमते घूमते बहुत देर हो गयी | मैंने मृग का शिकार कर लिया था परन्तु घना अंधकार हो जाने से और थका होने से शिकार को बांधकर जंगल में ही रात गुजरना उचित समझा | इस पर में एक बिल्व पत्र पर चढ़ गया | पूरा दिन भूखा और थका होने के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी | मैं बार बार अपने बच्चो और अपनी पत्नी का स्मरण कर रहा था जो मेरी वापसी का उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे | ऐसा सोचकर मेरी आँखे भर आई और मेरी आँखों से अक्षु बहने लगे |  दुखी  होने  और समय व्यतीत करने के उद्देश्य से में बिल्व पत्र निचे तोड़कर फेंकता रहा | संयोग से उस बिल्व वृक्ष के निचे शिवलिंग था | आंसुओ के द्वारा अभिषेक होता रहा और बिल्व पात्र शिवलिंग पर चढ़ते रहे  | संयोगवशत उस दिन महाशिवरात्रि का पर्व था  | सूर्योदय होते ही में शिकार लेकर घर आ गया | शिकार को बेचकर अपने परिवार जनों के लिए भोजन सामग्री लेकर आया | भोजन करने से पूर्व एक अजनबी आया और भोजन की मांग करने लगा उसे भोजन देकर हमने भोजन किया |
जब मृत्यु का समय नजदीक आया तो उस समय मेरी आत्मा को लेने के लिए भगवान् शिव के दो संदेशवाहक आये और मुझे उस शिवरात्रि व्रत और पूजन के बारे में सम्पूर्ण   घटना चक्र बताकार मुझे शिव लोक ले गए | वहा में लम्बे समय तक सुख शांति पूर्वक रहा और इस जन्म में मुझे ये जीवन मिला हैं अर्थात जब एक शिवरात्रि के व्रत से भगवन शिव इतने प्रसन्न हो गए तो मैंने हर शिवरात्रि का व्रत करने का निश्चय किया इसलिए महाशिवरात्रि का व्रत सभी लोगो को अवश्य करना चाहिए |
परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.co

2 टिप्‍पणियां:

  1. जीव कभी कोई पुरुष भगवान शिव के समीप वास करता है तब मन अथवा प्राण के समस्त रंग उनके सम्मुख धूमिल कर देता है!इसी घड़ी जीव कोई भी सूक्ष्म अथवा स्थूल आहार ग्रहण नहीं करता, एवं इसी को आहार तिव्रत्ति कहते हैं|

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  2. जीव कभी कोई पुरुष भगवान शिव के समीप वास करता है तब मन अथवा प्राण के समस्त रंग उनके सम्मुख धूमिल कर देता है!इसी घड़ी जीव कोई भी सूक्ष्म अथवा स्थूल आहार ग्रहण नहीं करता, एवं इसी को आहार तिव्रत्ति कहते हैं|

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