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बुधवार, 6 नवंबर 2013

कमला स्तोत्र

लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं कमला स्तोत्र पाठ से
ऋषि अगस्त्यकृत माँ कमला स्तोत्र अत्यधिक चामत्कारिक हैं। इसमें माँ लक्ष्मी की विशेष उपासना की गयी हैं। प्रस्तुत लेख में इसे संस्कृत और हिन्दी दोनों रूपों में दिया जा रहा हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से लक्ष्मीजी की विशेष कृपा प्राप्त होगी। कमला स्तोत्र इस प्रकार है:-
    मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि
   श्रीविष्णुहत्कमलवासिनि विश्वमात्ः।
   क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भगौरि
   लक्ष्मी प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।
श्री अगस्त्य ऋषि बोले कि कमल के समान विशाल नेत्रों वाली माता लक्ष्मी! मै आपको प्रणाम करता हूँ। आप भगवान विष्णु के हदय कमल में निवास करने वाली तथा समस्त संसार की जननी हैं। कमल के कोमल गर्भ के सदृश गौर वर्ण वाली क्षीरसागर की पुत्री महालक्ष्मी! आप अपनी शरण में आये हुए भक्तजनों का पालन करने वाली हैं। आप सदा मुझ पर प्रसन्न हों।।1।।
      त्वं श्रीरूपेप्द्रसदने मदनैकमात-
      ज्र्योत्स्नासि चन्द्रमसि चन्द्रमनोहरास्ये।
     सूर्ये प्रभासि च जगत्रितयें प्रभासि
     लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।2।।
प्रद्युम्न की एकमात्र जननी रूक्मिणीरूपधारिणी माता! आप भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में ‘श्री’ नाम से प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा के समान मनोहर मुख वाली देवी! आप ही चन्द्रमा में चाँदनी हैं,सूर्य में प्रभा हैं और तीनों लोकों में आप ही प्रभावित होती हैं। भक्तजनों को आश्रय देने वाली माता लक्ष्मी! आप सदा मुझ पर प्रसन्न हों।।2।।
        त्वं जातवेदसि सदा दहनात्मशक्ति-
       वेंधास्त्वया जगदिंदं विविधं विदध्यात्।
       विश्वम्भरोपि बिभृयादखिलं भवत्या
       लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।3।।
आप ही अग्नि में दाहिका शक्ति हैं। ब्रह्माजी आपकी ही सहायता से विविध प्रकार के जगत् की रचना करते हैं। सम्पूर्ण संसार का भरण-पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी आपके ही भरोसे सबका पालन करते हैं। शरण में आकर चरण में मस्तक झुकाने वाले पुरूषों की निरन्तर रक्षा करने वाली माता महालक्ष्मी! आप मुझ पर प्रसन्न हों।।3।।
       त्वत्यक्तमेतदमले हरते हरोपि
      त्वं पासि हंसि विदधासि परावरासि।
     ईढयों बभूव हरिरप्यमले त्व्दाप्त्या
    लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।4।।
निर्मल स्वरूपवाली देवी! जिनको आपने त्याग दिया हैं, उन्ही का भगवान् रूद्र संहार करते हैं। आप ही जगत् का पालन, संहार और सुष्टि करने वाली हैं। आप ही कार्य-कारण रूप जगत् हैं। निर्मल स्वरूपा लक्ष्मी! आपको प्राप्त करके ही भगवान श्रीहरि सबके पूज्य बन गये। माँ! आप भक्तजनों का हमेशा पालन करने वाली हैं,मुझ पर प्रसन्न हों।।4।।
        शूरः स एव स गुणी स बुधः स धन्यो
        मान्यः स एव कुलशीलकमलाकलापैः।
        एकः शुचिः स हि पुमान् सकलेपि लोके
        यत्रापतेत्व शुभे करूणाकटाक्षः।।5।।
 शुभे! जिस पुरूष पर आपका करूणापूर्ण कटाक्षपात होता है, संसार में एकमात्र वही शूरवीर,गुणवान,विद्वान,धन्य,मान्य,कुलीन,शीलवान,अनेक कलाओं का ज्ञाता और परम पवित्र माना जाता हैं।।5।।
         यस्मिन्वसेः क्षणमहो पुरूषे गजेश्वचे
        स्त्रैणे तुणे सरसि देवकले गृहेत्रे।
        रत्ने पतत्रिणि पशौ शयने धरायां।
       सश्रीकमेव सकले तदिहास्ति नान्यत्।।6।।
देवि! आप जिस किसी पुरूष,हाथी,घोडा,स्त्रैण,तृण,सरोवर,देव,मंदिर,गृह,अन्न,रंज,पशु-पक्षी,शयया अथवा भूमि में क्षण भर भी निवास करती हैं,समस्त संसार में केवल वही शोभा सम्पन्न होता हैं,दूसरा नहीं।।6।।
          त्व्त्स्पृष्टेमेव सकलं शुचितां लभेत
         त्वत्यक्तमेव सकलं त्वशुचीह लक्ष्मि।
         त्वन्नाम यत्र च सुमंगलमेव तत्र
         श्रीविष्णुपत्नि कमले कमलालयेपि।।7।।
हे श्रीविष्णुपत्नि! हे कमले! ळे कमलालये!हे माता लक्ष्मी! आपने जिसका स्पर्श किया है,वह पवित्र हो जाता है और आपने जिसे त्याग दिया हैं, वही सब इस जगत् में अपवित्र हैं। जहाँ आपका नाम हैं, वहीं उतम मंगल हैं।।7।।
            लक्ष्मीं श्रियं च कमलां कमलालयां च
           पद्यां रमां नलिनयुग्मकरां च मां च।
              क्षीरोदजाममृतकुम्भकरामिरां च
          विष्णुप्रियामिति सदा जपतां क्व दुःखम्।।8।।
जो लक्ष्मी, श्री, कमला,कमलालया, पद्या,रमा, दोनो हाथों में कमल धारण करने वाली,माँ क्षीरोदजा,हाथों में अमृत का कलश धारण करने वाली,इरा और विष्णुप्रिया,इन नामों का सदा जप करते हैं, उनके लिये कहीं दुःख नहीं हैं।।8।।
          ये पठिष्यन्ति च स्तोत्रं त्वद्धक्त्या मत्कृतं सदा
         तेषां कदाचित् संतापों मास्तु मास्तु दरिद्रता।।9।।
         मास्तु चेष्टज्ञवियोगश्वच मास्तु सम्पतिसंक्षयः।
         सर्वत्र विजयश्चातस्तु विच्छेदों मास्तु सन्ततेः।।10।।
इस स्तुति से प्रसन्न हो देवी के द्वारा वर मांगने के लिये कहने पर अगस्त्य मुनि बोले हे देवी! मेरे द्वारा की गयी इस स्तुति का जो भक्तिपूर्वक पाठ करेंगे,उन्हें कभी संताप न हो और न कभी दरिद्रता हो, अपने इष्ट से कभी उनका वियोग न हो और न कभी धन का नाश ही हो। उन्हें सर्वत्र विजय प्राप्त हो और उनकी संतान का कभी विच्छेद न हो।।9.10।।
                                     श्रीरूवाच
             एवमस्तु मुने सर्व यत्वया परिभाषितम्।
            एतत् स्तोत्रस्य पठनं मम सांनिध्यकारणम्।।11।।
श्री लक्ष्मी जी बोलीं- हे मुने! जैसा आपने कहा है, वैसा ही होगा। इस स्तोत्र का पाठ मेरी संनिधि प्राप्त कराने वाला हैं।।11।।
                     ।।इति श्रीस्कंदमहापुराणे काशीखंडे अगस्तिकृपा महालक्ष्मीस्तुतिः संपूर्णा।।
   उपरोक्त स्तोत्र पाठ करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर साधक को धन-धान्य से पूरित कर देती हैं,साधक का जीवन धन्य हो जाता हैं। इसके बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता का अनुभव नहीं होता हैं।









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