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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

मंगली दोष और प्रेम विवाह.

मंगली दोष और प्रेम विवाह.
परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
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विवाह योग्य आयु होते ही युवक युवती सोचने लगते है कि उनका विवाह किन परिस्थियो मे एवं किसके साथ सम्पन्न होगा। वर्तमान समय मे अधिकांश युवक युवती अपनी पसंद के अनुसार ही विवाह करना चाहते है। कहते है। कि जोडियां स्वर्ग मे तय होती है। एंव अपने पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार ही यहा इस जन्म मे जीवन साथी कि प्राप्ति होती हैं। किसी जातक का जीवन साथी कैसा होगा । उसका विवाह प्रेम विवाह होगा या नही । इसके बारे मे भी जानकारी जन्म कुण्डली से प्राप्त कि जा सकती है। जन्मांग चक्र मे विवाह कारक भावो पर पाप ग्रहो का प्रभाव होने पर विवाह मे समस्या आती रहती है।
विवाह मे किसी प्रकार कि समस्या आने पर मंगल को दोषी ठहराया जाता है। परंतु मंगल कि तरह अन्य सभी ग्रह भी अपनी रिथति के अनुसार विवाह मे बांधा उत्पन्नं कर सकते है। नवग्रहो मे शुक्र को प्रेम का कारक माना जाता है।इसलिए प्रेम विवाह के लिए सप्तम भाव व सप्तमेश का शुक्र के साथ सम्बंध होना कुछ अनुकुलता प्रदान करता है। जन्मांग चक्र मे पंचम भाव को प्रेम का भाव माना जाता है। जब पंचम भाव भावेश का सप्तम भाव भावेश से सम्बधं होता है। तब प्रेम विवाह कि संभावना बनती है। अर्थात अन्तर्जातीय विवाह होता है। सुर्य एवं वृह को सात्विक ग्रह माना जाता है। जब जन्मंाग प्रेम मे विवाह का योग उपस्थित होता है तब इन योगकारक ग्रहो पर सूर्य एवं वृह का प्रभाव 
होने पर विवाह अपनी पंसद के अनुसार अपनी ही जाति मे सम्पन्न होता है। लेकिन ऐसा सुर्य एव वृह कें कमजोर होने पर संभव होता है। यदि बलवान हो तो घर वालो कि स्वीकृति नही मिल पाती है।
मंगल दोष होने पर भी प्रेम विवाह कि संभावना बनती है। मैने अनेक कुण्डलियो का अध्ययन करने के पश्चात पाया है। कि जब मंगल दोष उपस्थित होता है। एव जन्मांग मे मंगल बलवान होकर स्थित हो तो प्रेम विवाह कि इच्छा मन मे जागृत होने लगती है। मंगल दोष से ग्रसित जातक अधिकतर अपनी पसंद के अनुसार जीवन साथी का चयन करना चाहते है। लेकिन हरेक मंगली दोष से ग्रसित जातक का प्रेम विवाह हो जाए । ऐसा भी नही होता है। जब किसी के मन मे प्रेम विवाह भी इच्छा होने लगे एंव उसका प्रेम विवाह नही हो अर्थात अपने मन पसंद जीवन साथी कि प्राप्ति नही हो तो मंगल शत्रु राशि नीच राशि एव वक्री अवस्था मे देखा गया है। यदि मंगल कमजोर हो एव उस पर सूर्य वृह का प्रभाव भी बन रहा हो तो प्रेम विवाह मे अवश्य परेशानिया उपस्थित होती है।
मंगली दोष के कारण जब मन पंसंद जीवन साथी कि प्राप्ति मे बाधा उत्पन्न हो तो उन्हे किसी योग्य ज्योतिषि के मार्ग दर्शन मे वैदिक उपायो को करना चाहिए ताकि विवाह मे आने वाली बाधाए दुर हो सके । इसी प्रकार मंगल शुक्र भी प्रेम विवाह कि संभावना बनाता है। पंरतु मंगल शुक्र की युति होने पर प्रेम विवाह मे परेशानिया अवशय रहती हैं। इस युति के होने पर उसके चरित्र मे दोष कि संभावना भी बनती है। जब यह युति हो एव दोनो ग्रह कमजोर हो तो किसी के साथ कुछ समय तक प्रेम रहता है। लेकिन अंतत प्रेम विवाह नही हो पाता । मंगल शुक्र कि युति होने पर इनमे परस्पर अंतर जितना कम होता जाएगा उतना ही चरित्र का हनन होता जाएगा । यदि इस पर सूर्य वृह का प्रभाव नही हो तो चारित्र संबधी दोष अवश्य बढ जाता है। यदि इस युति पर राहु केतु का प्रभाव हो तो दोष बढ जाता है। एव उसके विवाह मे परेशानिया बढती हि जाती है। इस प्रकार कि स्थिति मे जातक को अपने चरित्र पर विशेष ध्यान रखना चाहिए । इसके साथ वैदिक उपायो को अवश्य करना चाहिए ।----

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