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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

विजयादशमी का महत्व

विजयादशमी का महत्व 
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मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
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भारतीय धर्म शास्त्रो के अनुसार-
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थ सिद्धये।।
अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है। इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है।
विजयादशमी का दुसरा नाम दशहरा भी है। भगवान श्री राम की पत्नी सीता को जब अहंकारी एवं अधर्मी रावण अपहरण कर ले गया। तब नारद मुनि के निर्देशानुसार भगवान श्री राम ने नवरात्र व्रत कर नौ दिन भगवती दुर्गा की अर्चना कर प्रसन्न कर वर प्राप्त कर रावण की लंका पर चढाई की। इसी आश्विन शुक्ल दशमी के दिन राम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। तब से इसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा।
भगवान राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ किया था। इस यज्ञ के पश्चात अपनी सम्पूर्ण सम्पति का दान कर एक पर्णकुटिया मे रहने लगे। इस समय रघु के पास कौत्स आया। जिसने रघु से चैदह करोड स्वर्ण मुद्राओ की मांग की। क्योकि कौत्स को गुरू दक्षिणा चुकाने हेतु चैदह करोड स्वर्ण मुद्राओ की आवश्यकता थी। तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया। इस पर कुबेर ने इसी दिन अश्मंतक व शमी के पौधो पर स्वर्ण मुद्राओ की वर्षा कर दी। जिसे लेकर कौत्स ने गुरू दक्षिणा चुकाई। शेष मुद्राए जनसामान्य ने अपने उपभोग के लिए ली। इसी उपलक्ष्य मे यह पर्व मनाया जाता है।
महाभारत में वर्णन है कि दुर्योधन ने पांडवो को जुएं मे हराकर बारह वर्ष का वनवास दिया था एवं तेरहवा वर्ष अज्ञातकाल का था। इस वर्ष मे यदि कौरव पांडवो को खोज निकालते तो पुनः बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास का सामना करना पडता। इस अज्ञात काल मे पांडवो ने राजा विराट के यहां नौकरी की थी। अर्जून इस काल मे वृहन्नला के वेष मे रह रहा था। जब गौ रक्षा के लिए घृष्टधुम्न ने कौरव सेना पर आक्रमण करने की योजना बनाई तब अर्जून ने शमी वृक्ष से अपने अस्त्र-शस्त्र उतारकर कौरव सेना पर विजय इसी दिन प्राप्त की थी। इसी कारण भी विजयादशमी का पर्व प्रचलित हो गया।
इस प्रकार से देखा जाए तो विजयादशमी का पर्व मुख्यतः विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। आश्विन मास के नवरात्र मे देश के अधिकांश भागो मे रामलीला का आयोजन होता है। रामलीला का अन्त रावण दहन के साथ ही हो जाता है। रावण दहन के साथ मेघनाद व कुंभकर्ण के भी पुतले बनाकर जलाए जाते है। गुजरात मे नवरात्र के अवसर पर गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है।
विजयादशमी का पर्व राज परिवार मे सीमा उल्लंघन कर मनाया जाता था। परंतु समय चक्र के साथ राजतांत्रिक व्यवस्था का स्थान लोकतंत्र ने ले लिया। अब यह उत्सव आमजन भी विशेष उत्साह एवं उल्लास के साथ मना रहा है। वास्तव मे यह उत्सव बुराई के अन्त स्वरूप मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है तो अन्याय पर न्याय की जीत,अधर्म पर धर्म की जीत, दुष्कर्मो पर सत्कर्मो की जीत का प्रमुख है। यह पर्व हमे सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सत्य चाहे कितना भी कडवा हो, हमेशा उसी का अनुसरण करना चाहिए। क्योकि यह सनातन सत्य है कि हमेशा शुभ कर्मो की ही जीत होती है। इसे विजय पर्व भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र मे इसे अबुझ मुर्हुत की संज्ञा दी गई है। इस दिन किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल रहता है। किसी भी प्रकार के शुभ कर्म के लिए इस पर्व का अवश्य उपयोग करना चाहिए।
परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
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