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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

मंगली दोष एंव संतान सुख


परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
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जिस प्रकार कोई ग्रह शुभ अवश्था मे स्थित होने पर जीवन मे शुभता लाता है। उसी प्रकार कोई ग्रह अशुभ होने पर पीडाकारक भी बनता है। मंगल को पापग्रह माना जाता है। यह   आक्समिकता का कारक ग्रह माना जाता है। जन्मंाग चक्र मे मंगल भाव विशेष मे स्थित होने पर मंगली दोष बनता है। मंगली दोष होने पर आमजन एव ज्योतिषि दाम्पत्य जीवन के लिए कष्टकारी मानते है। कोई भी पापग्रह जब किसी ग्रह या भाव  को पीडित करता है। तो उस ग्रह  या भाव सम्बंधी शुभफलो का नाश होता है। इसी प्रकार यदि मंगल दोष कि स्थिति मे संतान कारक ग्रह या भाव  भी मंगल से पीडित हो तो जातक को संतान सुख कमजोर रहता है।
मंगल को गर्भपात का कारक ग्रह माना जाता है। इसलिए मंगली दोष कि कुछ विशेष स्थिति मे गर्भपात के कारण संतान सुख नही मिल पाता । जब मंगली दोष द्वितिय या अष्टम भाव के कारक बन रहा हो तो ऐसे दम्पतियो को गर्भपात के कारण  विशेष परेशानी होती है। कई बार ऐसा भी देखा गया है। कि मंगली दोष कि स्थिति चिकित्सकिय उपचार के उपरांत भी संतान सुख मे परेशानी देती है। ऐसा भी नही होता कि मंगली दोष कि यह स्थिति गर्भपात करवाएगी । संभव है। जब शुभ ग्रह कि दशा मे शुभ ग्रह कि अन्तर्दशा हो तो गर्भपात कि स्थिति नही बनती । ऐसे समय मे कुछ परेशानी रहती है। वर्तमान समय मे किसी विशेष समस्या के लिए किसी विशेष ग्रह को ही उतर दायी मानते है। जब गर्भपात कि समस्या आए तो मंगल को उतर दायी न मानकर ग्रहो के  योग अवयोग कि जानकारी प्राप्त कर वैदिक उपायो के साथ चिकित्सकीय उपचार करना चाहिए ।
मंगल को रक्त का कारक ग्रह माना जाता है। जब किसी गर्भवती महिला को रक्त कि कमी के कारक संतान सुख मे बाधा आ रही हो तो मंगल कि स्थिति का अवलोकन अवश्य करे। मंगल के निर्बल होकर स्थित होने पर जातक को रक्त कि कमी रहती है। जब ऐसी महिला जातक गर्भवती होती है। तो उसका स्क्त स्क्त कम होने लगता है। रक्त कि कमी के कारण महिला एव बच्चे दोनो को परेशानी उठानी पडती है। जब प्रसव काल का समय आता है। तो ऐसे समय मे इन्हे विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।मंगली दोष के कारण जरुरी नही है। कि संतान सुख मे परेशानी आए।
मंगल जब रोग का कारण बनकर उपस्थित होता है। तो इन्हे गुप्त रोगो के कारण परेशानी उठानी पडती है। गुप्त रोगो के कारण जब संतान सुख मे बाधा उत्पन्न होती है। तो मंगल एव शुक्र ग्रह कि स्थिति अच्छी नहि कही जा सकती । संभव है। कि अकेला पीडित शुक्र या मंगल इस प्रकार कि समस्या उत्पन्न कर रहा हो । जब गुप्तांगो से किसी कारणवश स्क्त स्त्राव हो रहा हो तो ऐसी स्थिति मे मंगल पीडित होता है। मंगली दोष होने पर भी इस प्रकार कि स्थिति  पैदा होती है। अतः दम्पति को मंगली दोष के उपचार के साथ अन्य सावधानियाॅ भी बरतनी चाहिए। जिससे दम्पति को संतान सुख कि प्राप्ति सुगम हो सकें ।
वर्तमान मे सिजेरियन द्वारा संतान को जन्म देना बढता जा रहा है। प्राचीन काल मे सिजेरियन सुविधा नही होने पर प्रसव काल मे प्रसुता कि मूत्यु अधिक होती थी लेकिन सिजेरियन के कारण यह समस्या कम हो गई । कई बार यह भी देखा गया है। कि चिकित्सक पैसो कि खतिर तो कुछ आधुनिक महिला शारीरिक कारणो से सिजेरियन को उचित मनती है। सिजेरियन प्रसव कि स्थिति मंगल एव केतु ग्रह कि प्रतिकुलता का कारण है। कुजवत केतु, होने से जब यह संतान सुख कारण भाव पर अपना प्रभाव डालता है। तो सिजेरियन प्रसव होता है। जब मंगल एव केतु का प्रभाव पंचम एव अष्टम भाव पर होता है। तब यह समस्या अधिक आती है। इसलिए प्रसव काल से पूर्व ही वैदिक उपाय करना समझदारी कही जा सकती है।..

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