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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

मंगला गौरी व्रत


परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.coयुवावस्था में प्रवेश  करते ही अभिभावक उसके विवाह के प्रति चिंतित होने लगते है।कुछ जातको का विवाह समय पर संपन्न   हो जाता है।तो कुछ जातको का विवाह अत्यंत विलंब से होता है।इसी प्रकार दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने के पश्चात कुछ समय तक तो दाम्पत्य जीवन अच्छा रहता है।परंतु कुछ समयावधि पश्चात उनमें वैचारिक मतभेद उत्पन्न होने लगता है।ज्योतिष में किसी जातक के जीवन में सबसे अधिक अशुभ प्रभाव आमजन शनि के तो दाम्पत्य जीवन में अशुभ प्रभाव के लिए मंगल को कारण मानते है। मंगल रक्त काम वासना का कारक होकर अपने अष्टक में शनि जितनी शुभ रेखा ही प्राप्त करता है। इसलिए दाम्पत्य जीपन में परेशानी होने पर दम्पति द्वारा जब जन्मकुण्डली का विश्लेशण कराया जाता है।तब मंगल दोष कंे कारण समस्या आने पर वे आशंकित हो जाते है।ऐसे दम्पति मंगल का सटीक उपाय करते नजर आते है।इसलिए दाम्पत्य जीवन में मंगल यदि बाधाकारक बने तो स्त्रियो को मंगला  गौरी व्रत करना चाहिए।मंगला  गौरी व्रत के कारण उसका दम्पतय जीवन सुखद बनता है।कहा भी है
विवाहात प्रथम वर्षमारभ्य पंचवत्सरम
श्रावणे मासे भौमेषु चतुत्र्रुव्रतमाचरेत
प्रथमें वत्सरे मातुग्र्रहे कर्तव्यमेंव
ततौ मर्तृगृहे कार्यमवंष्यं स्त्रीभिराददात
अर्थात मंगला गौरी व्रत विवाह के प्रथम श्रावण के प्रथम मंगलवार सें प्रारंभ कर पांच वर्ष तक इस मास में करना चाहिए प्रथम श्रावण मास में यह व्रत नवविवाहिता को अपने मातृ गृह अथवा पीहर एंव इसके पश्चात चार वर्ष तक यह पति गृह में  व्रत किया जाता हैं इस व्रत को करने से स्त्री का दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है।इसलिए सभी स्त्रियो को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
जिस दिन व्रत प्रारंभ करे उस दिन प्रातकाल नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारणकरे ।इसके पश्चात अपने पुजा धर में जाए।वहां जाकर लालरंग के उनी आसन पर बैठे।अपने सामने एक बाजोट रखे ।फिर रोली का तिलक लगाए अपना मुहं पुजा करते समय ईशान दिशा या पूर्व दिशा की तरफ हो फिर एक ताम्र पात्र से जल अपने हाथ मे लेकर संकल्प करे एवं संकल्प के पश्चात जल को जमीन पर छोडे।
संकल्प मंत्र
मम पुत्र पौत्र सौभाग्य वृद्धये श्री मंगला गौरी प्रीत्यर्थ पंचवर्ष पर्यत मंगला गौरी व्रतमहं करिष्ये।
संकल्प करने के पश्चात एक बाजोट पर लाल वस्त्र विछाकर मंगलागौरी की मुर्ति को स्थापित करे  मुर्ति को  स्थापित करने के पश्चात उसके सामने सोलह मुख वाला  आटे का दीपक बनाकर उसमें बतिया बनाकर धी से दीपक को प्रज्वलित करें।दीपक जलाने के पश्चात गौरी का ध्यान कर पवित्रिकरण करे पवित्रिकरन के समय निम्न मंत्र का ग्यारह बार जाप करना चाहिए      मंत्र
      ऊॅ अपवित्रं पवित्रो र्वा सर्वावस्था गतोपि वा
य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः  बा्रहयभ्यन्तर शुचिः
मंत्र पढने के पष्चात जल को अपने आसन स्वंम के उपर एवं आसपास  छिडके ।इसके पश्चात स्वास्तिवाचन कर गणेश पुजन करे । गणेश जी को दुर्वा चढाए एवं मानसिक रूप से ऊँ गणपते नमः का 108 बार जाप करे । फिर कलश स्थापित कर वरूण स्थापित करे। इसके पश्चात नवग्रह पुजन करे । नवग्रह पूजन में नवग्रह प्रतिमा या प्रतिक रूप का पुजन एवं मंत्रोच्चार करे। फिर षोडश मातृका पुजन करे । इसके पश्चात मंगला गौरी का ध्यान कर निम्न मंत्र का 108 बार जाप करे । मंत्र ’’ श्रीमंगलागौर्ये नमः’’ जाप करने के पश्चात सोलह फुल, सोलह दुर्वा, सोलह धतुरे के पत्ते, सोलह माला,  सोलह प्रकार के अनाज, सोलह वृक्ष के पत्ते, सोलह इलायची, सोलह सुपारी, जीरा एवं धनिया मंगला गौरी को अर्पित करे । अब मंगला गौरी ध्यान मंत्र !!बार जप करे-
           कुंकुमा गुरूलिप्तांगा सर्वाभरणभूषितां।
           नीलकंठ प्रियां गौरी वन्देअहं मंगलाद्वयाम !!
इस ध्यान मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात अपनी कामना करे एवं फिर तांबे के कलश में जल, फल, फुल, गंध, अक्षत, सवा रुपया, नारियल, रोली डालकर अध्र्य दे। अध्र्य देते समय निम्न मंत्र का ग्यारह बार जाप करे-
       पूजा सम्पूर्णतार्थ तु गंधपुष्पाक्षतैः सह।
  विशेषाध्र्यमभ्या दतो मम सौभाग्य हेतवे श्री मंगलागौर्ये नमः।।    
इसके पश्चात बांस की टोकरी में वस्त्र, मेहंदी, काजल, चुडिया, बिंदिया, इत्र एवं अन्य सौभाग्य सामग्री के साथ फल फूल मिठाई रखकर टोकरी को हाथ में लेकर इसका एक बार जाप कर किसी बा्रह्मण को दान करे।

        अन्न कंचुकिसंयुक्तम् सवस्त्र फलपुष्प दक्षिणाम्।
        वायनं गौरि विप्राय ददामि प्रीतये तव ।।
       सौभाग्य आरोग्य कामनां सर्वसम्पत्समृद्धये।
      गौरी गिरिश तृष्टयर्थम् वायनं ते ददाम्यहम्।।
ब्राह्मण को दान करने के पष्चात व्रती महिला अपनी सास के चरण स्पर्श कर सोलह लड्डुओ का वामन दे। इसके पश्चात सास की सोलह मुख्वाले दीपक से पुजा करे । व्रत वाले दिन नमक का सेवन नही करे एवं रात्रि जागरण कर प्रातः काल किसी पवित्र जल में गौरी प्रतिमा का विसर्जन करे । जब इसी प्रकार श्रावण मास के मंगलवार का व्रत करते हुए बीस मंगलवार पुरे हो जाए तब अंतिम मंगलवार को व्रत का उद्यापन करे । इस दिन पूर्व की भांति मंगलगौरी, एवं सास का पुजन करे। इसके पश्चात सोलह ब्राह्मणों को सपत्नीक भोजन कराकर उन्हे पूर्ववत सौभाग्य सामग्री का दान करे । इस  प्रकार मंगला गौरी का व्रत करने से मंगल दोष समाप्त होकर दाम्पत्य जीवन सुखद होने लगता है। व्रत वाले दिन पुजन समय मंगला गौरी व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए । व्रत कथा-
प्राचीन काल कुण्डिन नामक नगर में धर्मपाल नाम का एक धनवान सेठ रहता था। धर्मपाल की पत्नी भी धार्मिक प्रवृति थी एवं सती सध्वी थी । परन्तु सेठ दंपति के कोई संतान नही थी। इसके कारण दंपति दुःखी रहा करते थे। उनके घर एक भिक्षुक प्रतिदिन आया करता था। सेठ की पत्नी से सेठ से विचार  विमर्श कर भिक्षुक को स्वर्णदान देने का निष्चय किया। इसलिए सेठानी ने एक दिन भिक्षुक की झोली मे स्वर्ण डाल दिया लेकिन अपरिग्रही भिक्षुक ने अपना व्रत भंग जानकर उसे संतानहीनता का शाप दे दिया परन्तु सेठ दंपति को अंत में गौरी की कृपा से एक संतान की प्राप्ति हुइ। परन्तु संतान अल्पायु  थी एंव उसे सोलहवे वंर्ष में सर्पदश का शाप प्राप्त था। इस   शापग्रस्त अल्पायु बालक का विवाह एक ऐसी कन्या से हुआ जिसकी माता ने भी मंगला गौरी का व्रत किया था। इस कारण वह वधवा का दुःख नही झेल सकती थी इस कारण बालक अल्पायु होकर भी शतायु हो गया । उसे न तो सर्प डस सकता था एंव न ही उसे सोलहवे वर्ष मे यम
प्राण हरण कर सकते थे । इसी कारण उसे शतायु प्राप्त हुई। इसलिए यह व्रत प्रत्येक नवविवाहिता को अवश्य करना चाहिए।
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