WIDGEO

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

पंचक कितना शुभ कितना अशुभ


 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.com

पंचक शब्द को सुनते ही  अज्ञान के कारण  पूर्ण अशुभ समय मानबैठते है परन्तु ऐसा नही हैA पंचको में शुभ कार्य भी किये जा सकते हैA ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचक तब लगते है जब  चन्द्र ग्रह धनिष्ठा नक्षत्र केतृतीय चरण में प्रवेश करता  हैA Aधनिष्ठा का उतरार्ध, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उतरा भाद्रपद व रेवती इन पांच नक्षत्रों  को पंचक कहते है. पंचक का अर्थ ही पांच का समूह है. सरल शब्दों में कहें तो कुम्भ व मीन में जब चन्द्रमा रहते है. तब तक की अवधि को पंचक कहते है.

पंचक में पांच वर्जित कार्य -
शास्त्रों ने  पंचक में इन पांच कार्य को  सर्वथा वर्जित माना गया   है| इसमें लकड़ी  एकत्र करना, दक्षिण  दिशा की यात्रा, शव का अन्तिम संस्कार,  छत डालना, चारपाई बनवाना शुभ नहीं माना  है| ऋषि गर्ग ने कहा है कि शुभ या अशुभ जो भी कार्य पंचकों में किया जाता है. वह पांच गुणा करना पडता है. इसलिये अगर किसी व्यक्ति की मृ्त्यु पंचक अवधि में हो जाती है. तो शव को शमशान में ले जाकर स्नान कराकर  पांच पुतले कुश के बनाकर फिर इनको कलावे के धागे से लपेटकर जौ के आटे से लेपकर पञ्च प्रेत के नाम १ प्रेतवाह  २.प्रेतसख ३. प्रेतप  ४.प्रेतभुमिप ५ प्रेत हर्ता  का नाम बोल चिता संस्कार करना चाहिए |
 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन नक्षत्र समय में इनमें से कोई भी कार्य करने पर, उक्त कार्य को पांच बार करना  पड सकता है.इसी कारण इन्हे पंचक कहा हैं इसमे कोई भी कार्य करते समय इसीलिए विशेष ध्यान रखने की बात कही हैं   घनिष्टा नक्षत्र में इनमें से कोई काम करने पर अग्नि का भय रहता है. शतभिषा नक्षत्र में कलह, पूर्वा भाद्रपद में रोग, उतरा भाद्रपद में जुर्माना, रेवती में धन हानि होती है.
ये पांचो नक्षत्र २७ दिनों में एक बार आते हैं एवम इनमे से भारतीय संस्कार में अधिकांश शुभ कर्मो में इनका प्रयोग होता हैं  इनमे से दो नक्षत्र उत्तर भाद्रपद एवम रेवती का तो अधिकांश शुभ एवम मांगलिक कार्यो में प्रयोग   होता हैं  इन पंचक नक्षत्रो का किसी वार को पड़ने पर भी शुभ योगो का निर्माण होता हैं
१ घनिष्ठा और योग
घनिष्ठा नक्षत्र रविवार को हो तो मातंग योग बनता हैं जो कुल की वृद्धि करता हैं
.सोमवार को होने पर अमृत योग
बुधवार को होने पर मैत्री योग
गुरुवार को होने पर श्री वत्स योग
शुक्रवार को होने पर प्रजापति योग
शनिवार को होने पर प्रवर्धमन योग
२...शतभिषा और योग
सोमवार को शतभिषा   होने पर अमृत योग
बुधवार को होने पर मानस योग
शुक्रवार को होने पर सुधाकर योग
शनिवार को होने पर आनंद योग
३..पूर्व भाद्रपद और योग
रविवार को होने पर चर योग होता हैं
सोमवार को अमृत योग
बुधवार को पदम् योग सभी चार कार्यो में अति लाभदायक हैं
शुक्रवार को अमृत योग
४.उत्तर भाद्रपद और योग
रविवार को होने पर सर्वार्थ   सिद्धि योग
सोमवार को अमृत योग
मंगलवार को सर्वार्थ सिद्धि योग
गुरुवार को छत्र योग
शुक्रवार को होने पर ध्वजा योग बनता हैं
५.रेवती और योग
रविवार को होने पर प्रवार्ध्मन योग
सोमवार को होने पर मातंग योग कुल वृद्धि कारक
मंगलवार को होने पर शुभ योग
गुरुवार को होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग शुक्रवार को होने पर श्री वत्स योग एवम शनिवार को होने पर प्रजापति योग बनता हैं जो सभी शुभ एवम मांगलिक कार्यो में शुभ रहते हैं  इस प्रकार देखा जाये तो पंचक कुछ कार्यो को छोड़कर अधिकांश कार्यो के लिए शुभ हैं ..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें