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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

मकर संक्रांति का महत्त्व

 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.co
सूर्य को जगत की आत्मा माना गया हैं | सूर्य का इसी कारण एक राशी से दूसरी राशी में प्रवेश महत्वपूर्ण  माना हैं | इस एक राशी से दूसरी राशी में किसी ग्रह का प्रवेश संक्रांति मानते हैं | सूर्य का धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश का नाम ही मकर संक्रांति हैं | धनु राशी वृहस्पति की राशी हैं | इसमे सूर्य रहने पर मल मास होता हैं | इस राशी से मकर राशी में प्रवेश करते ही मल मास समाप्त होता हैं और शुभ मांगलिक कार्य हम प्रारंभ करते हैं | मकर संक्रांति का दूसरा नाम उत्तरायण भी हैं क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना प्रारम्भ करता हैं | उत्तरायण के इन छः महीनो में सूर्य मकर से मिथुन  राशी में भ्रमण करने पर दिन बड़े होने लगते हैं और राते छोटी होने लगती हैं  |
मकर संक्रांति के दिन पूर्वजो को तर्पण और तीर्थ स्नान का अपना विशेष महत्त्व हैं | इससे देव और पितृ सभी संतुष्ट रहते हैं  | सूर्य पूजा से और दान से सूर्य देव की रश्मियों का शुभ प्रभाव मिलता हैं और अशुभ प्रभाव नष्ट होता हैं इस दिन स्नान करते समय स्नान के जल में तिल, आवला ,गंगा जल डालकर स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता हैं | इस दिन विशेषत तिल और गुड का दान किया जाता हैं |इसके आलावा खिचड़ी ,तेल से बने भोज्य पदार्थ भी किसी गरीब ब्राह्मण को खिलाना चाहिए | छाता, कम्बल ,जूता ,चप्पल ,वस्त्र अदि का दान भी किसी असहाय या जरुरत मंद व्यक्ति को करना चाहिए |
राजा सगर के ६०,००० पुत्रो को कपिल मुनि ने किसी बात पर क्रोधित होकर भस्म कर दिया था | इसके पश्चात् इन्हे मुक्ति दिलाने के लिए गंगा अवतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ | इसी क्रम में राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर लाया | स्वर्ग से उतरने में गंगा का वेग अतितीव्र था इसीलिए शिवजी ने इन्हे अपनी जटाओ में धारण किया | फिर शिव ने अपनी जटा में से एक धारा को मुक्त किया | अब भागीरथ उनके आगे आगे और गंगा उनके पीछे पीछे चलने लगी | इस प्रकार गंगा गंगोत्री से प्रारंभ होकर हरिद्वार ,प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के  आश्रम पहुंची यहाँ आकर सगर पुत्रो का उद्दार किया | यही आश्रम अब गंगा सागर तीर्थ के नाम से जाना जाता हैं मकर संक्रांति के दिन ही राजा भागीरथ ने अपने पुरखो का तर्पण कर तीर्थ स्नान किया था | इसी कारण गंगा सागर में मकर संक्रांति के दिन स्नान और दर्शन को मोक्ष दायक माना हैं |
भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था इसीलिए उन्होंने शर शैय्या पर लेटे हुए दक्षिणायन के बीतने का इंतजार किया और उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया | उत्तरायण कल में ही सभी देवी देवताओ की प्राण प्रतिष्ठा शुभ मानी जाती हैं |
धर्म सिन्धु के अनुसार -मकर संक्रांति का पुण्य काल संक्रांति समय से १६ घटी पहले और ४० घटी बाद तक माना गया हैं | मुहूर्त चिंतामणि ने पूर्व और पश्चात् की १६ घाटियों का ही पुण्य काल माना हैं |यदि संक्रांति अर्धरात्रि के पूर्व हो तो दिन का उत्तरार्द्ध  पुण्य काल होता हैं | अर्ध रात्रि के पश्चात् संक्रांति हो तो दुसरे दिन का पूर्वार्द्ध पुण्य काल होता हैं | यदि संक्रांति अर्द्ध रात्रि को हो तो दोनों दिन पुण्य काल होता हैं | देवी पुराण में संक्रांति के सम्बन्ध में कहा गया हैं की मनुष्य की एक बार पलक झपकने में लगने वाले समय का तीसवा भाग तत्पर कहलाता हैं | तत्पर का सौवा भाग त्रुटी कहलाता हैं और त्रुटी के सौवे भाग में संक्रांति होती है | इतने सूक्ष्म काल में संक्रांति कर्म को संपन्न करना संभव नहीं हैं इसीलिए ही उसके आसपास का काल शुभ माना जाता हैं | इनमे भी ३,४,५,७,८,९ और १२ घटी का समय पुण्य काल हेतु श्रेष्ठ माना हैं | मकर संक्रांति पर भगवान शिव की पूजा अर्चना भी शुभ मानी गयी हैं | इस दिन काले तिल मिलाकर स्नान करना और शिव मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाकर भगवान शिव का गंध , पुष्प, फल ,आक ,धतुरा ,बिल्व पत्र चढ़ाना शुभफल दायक हैं | कहा भी गया हैं की इस दिन घी और कम्बल का दान मोक्ष दायक हैं इस दिन ताम्बुल का दान करना भी श्रेष्ठ माना गया   हैं |
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