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रविवार, 7 अक्तूबर 2012

ईष्ट कृपा से प्राप्त होती है सुख शांति एवं समृद्धि


परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,09001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.com
        भारतीय संस्कृति में पूजा पाठ का विशेष महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक, परेशानियो के समय तो किसी देव की स्तुति प्रारंभ कर ही देता है। लेकिन फल कुछ ही लोगों को प्राप्त होता है। कई बार यह देखने में आता है। कि व्यक्ति प्रतिदिन 2,3 घंटे पूजा करता है। फिर भी उसे वह मान सम्मान नही मल पाता जो 10.15 मिनट पूजा करने वाले किसी व्यक्ति को सहज ही प्राप्त हो जाता है। इसका कारण व्यक्ति द्वारा ईष्ट देव का निर्णय सोच समझ कर नही किया गया है। प्रकृति भी कई बार संकेतों द्वारा किसी ईष्ट देव की पूजा करने हेतु जागृत करती है। फिर भी ऐसा अवसर हर किसी को प्राप्त नही होता। यदि प्राप्त हो भी जाता है तो भुल हो जाती है। अतः अपने ईष्ट निर्णय हेतु हम आपको उपर्युक्त मार्गदर्शन दे रहे है। जिससे आपको ईष्ट निर्णय एवं उनकी उपासना में कोई गलती न हो एवं आपको सुख शांति भी प्राप्त हो सके।
      जन्म कुण्डली में लग्न एवं लग्नेश पर जिस ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव है। उसी से व्यक्ति का तत्व निर्धारित होता है। हमारा शरीर पंचमहाभुतो से विचित्र संयोजन द्वारा निर्मित हैं। व्यक्ति पृथ्वी तत्व से प्रभावित हो तो शिव की अग्नि तत्व से प्रभावित हो तो दुर्गा या शक्ति की वायु तत्व से प्रभावित होने पर विष्णु की जल तत्वसे प्रभावित होने पर गणेश जी की एवं आकाश तत्व से प्रभावित होने पर विष्णु आराधना लाभदायक रहती है।
    पंचम भाव में सूर्य स्थित होने पर सूर्य आराधना या शिव उपासना, चंद स्थित  होने पर किसी देवी की या शिव उपासना, मंगल स्थित होने पर हनुमान जी या कार्तिकेय की आराधना, बुध स्थित होने पर गणपति या विष्णु उपासना वृहस्पति स्थित  होने पर सूर्य शुक्र  स्थित होने पर लक्ष्मी उपासना, शनि स्थित  होने पर हनुमान जी एवं भैरव उपासना राहु स्थित  होने पर सरस्वती उपासना एवं केतु  स्थित होने पर गणपति उपासना आपके लिए फलदायक रहती हैं।
      अपनी राशि के अनुसार भी ईष्ट उपासना करने पर आपको सुख शांति एवं समृद्धि अवश्य प्राप्त होती है। यदि आपकी राशि मेष या वृश्चिक है तो आपके ईष्ट देव हनुमान जी होंगें। इसलिए आपको हनुमान जी की उपासना लाभदायक रहेगी। आपकी राशि वृषभ या तुला हो तो लक्ष्मी जी की, मिथुन या कन्या हो तो गणेश जी की, कर्क राशि हो तो किसी देवी की , सिंह राशि हो तो  सूर्य की उपासना, धनु या मीन राशि हो तो विष्णु , मकर या कुंभ राशि हो तो भैरव उपासना करनी चाहिए।
   यदि आपकी जन्म पत्रिका में पचंम भाव कोई ग्रह नही हैं, तो आप देखे की पचंम भाव पर किसी ग्रह कि दृष्टि हैं।  पंचमेश पर किसी ग्रह कि दृष्टि हैं। इन दोनों दृष्टिकारक ग्रहों में से बलवान ग्रह के आधार पर ईष्ट का निर्णय करें यदि पंचम भाव एवं पंचमेश  पर कई ग्रहों की दृष्टि हैं, तो दोनो पर कौनसा ग्रह दृष्टि कर रहा है। उसमे से बलवान ग्रह कौनसा है। उसी के  आधार पर अपना ईष्ट देव जाने।
   यदि पंचम भाव एवं पंचमेश   पर किसी ग्रह की दृष्टि नही है। तो आप पंचम भाव एवं पंचमेश  मे से कौनसा बली है। यदि भाव बली है तो उसके तत्व के आधार पर एवं पंचमेश बली हो तो ग्रह के अनुसार ईष्ट निर्णय करें।
    यदि आपके पास जन्म पत्रिेका नही है। तो आप जिस देव कि सर्वाधिक पूजा अर्चना करने की चाहत रखते है। जिस देवी देवता के मंदिर के सामने जाते ही आपका मन श्रद्धा से झुक जाता है। आपको लगता है की अमुक देवी देवता की उपासना करने पर मुझे सुकुन मिलता है। तो आपके ईष्ट देव वही है। आप चाहे तो इनकी पूजा नित्य प्रति करें। आपको परिणाम भी उतम प्राप्त होगा।
     आपके जो ईष्ट देव है उनकी विशेष पूजा साल में एक बार अवश्य करे। उनको पूजा पाठ में जितना संभव हो व्यवस्था करे। पूजा करते समय पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव बनाए रखें।
   आप अपने ईष्ट की पूजा उपासना करते समय प्रतिदिन उनके विशेष स्त्रोत या चालिसा का पाठ अवश्य करे। यदि प्रतिदिन संभव न हो तो महिने मे उनके लिए निर्धारित तिथि या वार विशेष के दिन इसका पाठ अवश्य करे। अपने ईष्ट का यदि कोई प्रतिकात्मक यंत्र हो तो उसे भी आप अवश्य धारण करें।
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