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मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

कहा होता हैं लक्ष्मी का वास

ज्योतिषाचार्य वागा   राम परिहार 

9001742766 ,9001846274  
धन  सब कुछ तो नहीं परन्तु बहुत कुछ अवश्य कहा जा सकता हैं | आज हरेक व्यक्ति को धन की आवश्यकता बहुत अधिक रहती हैं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें पता ही नहीं रहता की उनके पास कितना धन हैं परन्तु कुछ लोगो को अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए भी आवश्यक धन प्राप्त नहीं होता आखिर लक्ष्मी की कृपा कुछ जातको पर ही क्यों रहती हैं | आज कुछ ऐसी सामान्य जानकरिया दी जा रही हैं जो लक्ष्मी कृपा हेतु आवश्यक हैं | हमें किस प्रकार का व्यव्हार करना चाहिए, कैसे रहना चाहिए जिससे हम पर लक्ष्मी कृपा बनी रहे |
कहा होता हैं लक्ष्मी वास ..........
१...जो व्यक्ति बुद्धिमान ,दयावान ,उदार, धर्म  कर्म में रूचि रखने वाला ,ईमानदार और सदाचारी हो उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी वास रहता हैं |
२...जो सत्य भाषी हो ,दुसरो के दुःख में उनकी सहायता करता हो ,परोपकारी हो ,प्रेम भाव रखता हो वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं 
३...जो पूजा पाठ करता हो ,भगवान का उपासक हो ,धार्मिक कार्यो में रूचि रखता हैं उसके घर में लक्ष्मी का वास रहता हैं |
४..जो नित्य स्नान कर स्वच्छ   वस्त्र धारण करता हैं वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं |
५..जहा स्त्री का सम्मान होता हो ,जिस घर में झगडा नहीं होता हो वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं |
६..जो परस्त्री पर कुदृष्टि नहीं रखे ,त्यौहार के दिनों में मैथुन का त्याग करता हैं वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं |
७..जो सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर पूजा पाठ करता हैं वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं |
८..जो लोग साधू ,ब्राहमण ,घर आये मेहमान का आदर सत्कार करता हैं वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं |
९..जो धर्म ,निति और न्याय का पालन करे वहा लक्ष्मी का वास रहता हैं | 
१०..जहा माता लक्ष्मी की पूजा आराधना की जाती हैं वहा लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं |
कहा वास नहीं होता लक्ष्मी का ...........
१..जो व्यक्ति गुरु और ब्राह्मण का अनादर करता हैं वहा लक्ष्मी की कृपा नही होती 
२..जो व्यक्ति खाते समय बोलता हो या हँसता हो वहा लक्ष्मी का वास नही रहता 
३...जो अपने घर की नित्य सफाई नही करता ,जहा कूड़ा करकट पड़ा रहता हो वहा लक्ष्मी का वास नही रहता |
४..जो देवी देवताओ की पूजा नहीं करता ,जहा कोई धार्मिक आयोजन नही होता हो वहा लक्ष्मी का वास नहीं रहता |
५..जो लोग बुद्धिमान नही होते ,मेहनत नही करते ,आलसी होते हैं वहा लक्ष्मी की कृपा नही रहती   
६..जो इश्वर में विश्वास नहीं करता ,चोरी करता हो वहा लक्ष्मी का   वास नही रहता |
७..जो स्त्री दिन में सोती रहती हैं ,सास ससुर और पति का सम्मान नहीं करती उस घर में लक्ष्मी का वास नहीं रहता |
८..जिसके घर में नित्य कलह रहता हो ,स्त्रियों का सम्मान नहीं करता वहा उस घर में लक्षी का वास नही होता 
९..जहा असत्य भाषण होता हो ,लड़ाई झगडे करते हो, दुसरो को परेशान करते हो उनके घर में लक्ष्मी का वास नही होता |
१०..जो मांसाहारी हो ,नशीले पदार्थो का सेवन करते हो उसके घर में लक्ष्मी का वास नहीं रहता | यदि किसी ऐसे अधर्मी को लक्ष्मी की कृपा पूर्वजन्म के शुभ कर्मो के कारण हो जाये तो उसका जीवन परेशानियों भरा रहता हैं उसे आत्मिक शांति नही होती और उसे जीवन के अंतिम क्षण में बहुत दुखी होना पड़ता हैं |

ज्योतिष और कार्य व्यवसाय

ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 

९००१७४२७६६,9001846274
प्राचीन काल में किसी व्यक्ति के लिए कार्य उसका पैतृक  व्यवसाय ही ज्यादातर होता था परन्तु समय चक्र के साथ साथ आज कार्य व्यवसाय में भी अनेक परेशानिया कठिन प्रतिस्प्रद्धा के कारण हो रही हैं | आज कोई व्यक्ति किस कार्य व्यवसाय को करेगा कुछ कहा नही जा सकता परन्तु ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से जाना जा सकता हैं की किसी व्यक्ति को कार्य व्यवसाय  करना ठीक रहेगा या उसे कही नौकरी करना शुभ रहेगा | आज लोगो में राजकीय सेवा का अवसर पाने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करने पड़ते हैं परन्तु राजकीय सेवा किसी किस्मत वाले को ही मिलती हैं |...
ज्योतिष शास्त्र के आधार पर किसी जातक के जन्म समय में लग्न, चन्द्र और सूर्य में से जो ग्रह बलि हो उससे दशमेश जिस ग्रह के नवमांश   में होता हैं उसी ग्रह के आधार पर कोई जातक कार्य व्यवसाय को करता हैं उसमे  उसे सफलता भी प्राप्त  होती हैं ......
१ ..यदि दशमेश सूर्य के नवांश में हो तो जातक लकड़ी ,औषधि, फल फूलो वाले वृक्ष ,अनाज ,चिकित्सा ,राजकार्य करके जीविका पाता हैं |
२..यदि दशमेश चन्द्र के नवांश में हो तो जातक जलीय वस्तुओ का व्यापार यथा मोती, शंख ,  सिंघाड़ा ,किसी महिला के यहाँ कार्य कर आजीविका पाता हैं | ऐसे जातक सब्जी, खेती, पशुपालन, शक्कर, शहद, चावल, मिनरल जल और पेय पदार्थो का कार्य व्यवसाय कर आजीविका पाता हैं 
३...यदि दशमेश मंगल के नवांश में हो तो जातक बिजली विभाग, होटल, अस्त्र शस्त्र निर्माण और विक्रय ,शल्य चिकित्सक,पुलिस, सेना ,मारपीट, वसूली और अग्नि सम्बंधित कार्य कर रोजगार पाता हैं |
४...यदि दशमेश बुध के नवमांश में हो तो ज्योतिष कार्य ,लेखा -जोखा ,दूरसंचार सेवा ,लेखन ,प्रकाशन ,कारीगरी ,शिल्प कार्य, उधार कार्य ,बैंकिंग ,बीमा कार्य कर रोजगार पाता हैं |
५..यदि दशमेश वृहस्पति के नवांश में हो तो अध्यापन ,कर्मकांड ,धार्मिक कार्य ,पूजा पाठ कर रोजगार पाता हैं 
६यदि दशमेश शुक्र के नवांश में हो तो जातक फ़िल्मी लाइन ,एक्टर, डांसर ,कोस्मेटिक्स, हीरे -जवाहरात ,नाटक ,गायन ,दवाई विक्रय ,सफ़ेद वस्तुओ का कार्य कर रोजगार पाता हैं |
७..यदि दशमेश शनि के नवांश में हो तो जातक मजदूरी ,न्यायिक कार्य ,वकालात ,खेती ,पेट्रो पदार्थो का विक्रय ,पत्थर कार्य कर आजीविका पाता हैं   |
यदि इस प्रकार से दशमेश नवांशेश बलवान हो तो जातक को कार्य व्यवसाय में कोई परेशानी नहीं रहती परन्तु कमजोर होने पर उसे कई प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ता हैं | इसी प्रकार जन्मांग चक्र में दशमेश का बलवान होना भी जातक को कार्य व्यवसाय में अनुकूलता प्रदान करता हैं | नौकरी के लिए दशमेश और स्वयम के रोजगार कार्य हेतु सप्तमेश का बलवान होना जरुरी हैं | साझेदारी के कार्य में भी सप्तमेश की बलि स्थिति और उसका स्थिर राशी में होना साझेदारी को लम्बे समय तक बनाये रखता हैं |

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

सूर्य दोष निवारक औषधि स्नान


ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 
मोब ..९००१७४२७६६,९००१८४६२७४ 
आयुर्वेद में जिस प्रकार किसी रोग को दूर करने हेतु विभिन्न प्रकार की औषधियों का सेवन कराया जाता हैं ,कुछ विशेष तेलों की मालिश  की जाती हैं उसी प्रकार ज्योतिष में भी सूर्य कृत दोषों को दूर करने हेतु औषधि स्नान करवाया जाता हैं | आयुर्वेद में रोगों को त्रि दोषज  मानकर किसी रोग की चिकित्सा की जाती हैं तो ज्योतिष में इन्ही त्रिदोषज का कारण ग्रहों को माना जाता हैं | इससे  भी अधिक सभी प्रकार के दुखो का कारण भी इन्ही ग्रहों को माना जाता हैं | जब सूर्य जन्मांग में अशुभ होकर स्थित हो और उससे  आपको कई प्रकार की समस्याओ का सामना भी करना पड़ रहा हो तो आपको सूर्य औषध स्नान करना चाहिए जिससे सूर्य कृत अरिष्ट का शमन हो सके ......
औषध स्नान हेतु आवश्यक सामग्री ....इलायची ,खस, मधु ,लाल रंग के पुष्प, मेनसिल, देवदार 
सर्व प्रथम आप औषधि स्नान का निश्चय करने हेतु अपने लिए शुभ दिन यथा रविपुष्य ,रविवार के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का चयन करे जो आपके नाम के अनुसार भी शुभ हो |इस दिन से आपको स्नान प्रारम्भ करना  हैं |सबसे पहले   इस सामग्री को आप कूट पिछ्कर किसी बोतल में डाल देवे | फिर स्नान करने से एक घंटे पूर्व इसे जल में भिगो देवे इसके बाद स्नान करे इस प्रकार फिर प्रतिदिन स्नान करने से कुछ ही समय पश्चात् आपको सूर्य देव की कृपा प्राप्त होने लगती हैं 
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 
मोब ..९००१७४२७६६,९००१८४६२७४ 

सूर्य की जन्मांग में स्थिति के अनुसार उपाय


ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
९००१७४२७६६ ,९००१८४६२७४ 
सूर्य को क्रूर ग्रह माना जाता हैं | इसकी जन्मांग में अशुभ स्थिति हो तो जातक का जीवन कठिनाइयों भरा रहता हैं | यदि आपके जन्मांग में सूर्य अशुभ होकर स्थित हो तो आपको सूर्य की भाव स्थिति के अनुसार निम्न उपाय करने पर सूर्य शुभ फल देने लगता हैं ......
१...पहले भाव में अशुभ होकर स्थित होने पर अपने मकान में जल का कोई स्तोत्र अवश्य रखे 
२...दुसरे भाव में अशुभ होकर स्थित होने पर बादाम नारियल को दान में देते रहे 
३..तीसरे भाव में अशुभ होकर स्थित होने पर मित्रो की यथासंभव सहायता करे और बुरे कर्मो से दूर रहे 
४..चतुर्थ भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर अंधे व्यक्तियों की सहायता करे और सफ़ेद वस्तुओ का दान करे 
५..पांचवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर लाल मुंह वाले बंदरो को गुड और चना खिलाये और धरम स्थान में केले दान में देवे 
६..छठे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर पूजा स्थान में गंगा जल रखे और हरी वस्तुओ का दान करे 
७..सातवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर ताम्बे का चौकोर टुकड़ा जमीं में दबाये और कलि गाय को तेल में चुपड़ी हुई रोटी खिलाये 
८..आठवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर गाय की सेवा करे और धर्म स्थान में गेंहू और मक्का दान में देवे 
९..नवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर सफ़ेद वस्तुओ का दान करे और पिता से मधुर सम्बन्ध बनाये 
१०..दसवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर तीर्थ स्थान का जल पूजा घर में रखे और ताम्बे का सिक्का सिर पर से सात बार उतारकर जल में प्रवाहित करे 
११..ग्यारहवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर ईमानदारी से काम करे और मांस मदिरा का प्रयोग नहीं करे 
१२..बारहवे भाव में सूर्य अशुभ होकर स्थित होने पर धार्मिक कार्यो को संपन्न करने में सहायता करे और बंदरो को गुड और चने खिलाये 
इस प्रकार अपनी जन्म पत्री में सूर्य की स्थिति को देखकर उपाय करने पर सूर्य शुभ फल देने लगता हैं 
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
९००१७४२७६६ ,९००१८४६२७४ 

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

व्यापार वृद्धि के कुछ अनुभूत उपाय

 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274
Email-pariharastro444@gmail.co
प्रतिस्पर्द्धा के इस युग  में अपने कार्य व्यवसाय को सफलता के शिखर तक ले जाना एक कड़ी चुनोती हैं | आज हरेक व्यक्ति किसी न किसी कारण से कार्य व्यवसाय को लेकर परेशान हैं | कोई कम बिक्री के कारण तो कोई कम मुनाफे के कारण और कोई कार्य व्यवसाय में आकस्मिक घाटे के कारण परेशान हैं | इस प्रकार कार्य व्यापर में कोई न कोई समस्या बनी रहती हैं | ऐसा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपने पूर्व जन्मो के शुभाशुभ कर्मो के कारण होता हैं वर्तमान जन्म के कुछ दोषों ,नजर दोष ,वास्तु दोष या अन्य किसी दोष के कारण भी कार्य व्यवसाय में परेशानी आती हैं | यदि आपको भी किसी कार्य व्यापार में कोई परेशानी आ रही हैं तो आप निम्न में से कोई उपाय करके भी अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं .............
१....आपके कार्य व्यवसाय में किसी प्रकार की समस्या हो तो आप रविवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो तब यह प्रयोग प्रारंभ करे लकड़ी के एक बाजोट पर लाल कपडा रखे उसके ऊपर तीन गोमती चक्र ,काली मिर्च रखे फिर उड़द के कुछ दाने लेकर उनके ऊपर तेल का एक दिया रखे | दुकान पर गंगा जल का छिडकाव करे | फिर धुप दीप अगरबत्ती जलाते हुए मन्त्र का एक माला जाप करे इसके पश्चात् जब जाप पुरे हो जाये तब गोमती चक्र और काली मिर्च को दरवाजे के ऊपर बांध दे | फिर उड़द के दानो को दुकान में बिखेर दे इसके अगले दिन इन उड़द के दानो को दुकान पर से उठाकर चौराहे पर डाल दे | इस प्रकार मन्त्र का जाप प्रतिदिन करे और उड़द के दानो का प्रयोग केवल रविवार को करे | ऐसा ११ रविवार तक प्रयोग करने से आपका कार्य व्यापार प्रगति करने लगता हैं 
मन्त्र ...भंवर वीर तू चेला मेरा ,खोल दुकान कहा कर मेरा
 उठे जो डंडी बीके जो माल ,भंवर वीर सोखे नहीं जाय 
२...यदि आपके कार्य   व्यापार में प्रगति नही हो पा रही ,संघर्ष हमेशा अधिक रहता हैं तो इसके लिए सर्वप्रथम काली तुलसी के पौधे की व्यवस्था करे यदि यह पौधा कही आपके आस पास उपलब्ध हैं तो ठीक हैं अन्यथा इसकी आप व्यवस्था करे फिर गमले में इसे रोप देवे | जब काली तुलसी के आस पास खरपतवार उग आये तब शुक्ल पक्ष में अपनी राशी के अनुसार किसी सिद्धि योग का चयन करे उस दिन खरपतवार को लेकर किसी कपडे में बांध देवे इसे धुप दीप दिखाए  फिर गणेश जी के मन्त्र ॐ गं  गणपतये नमः का जाप करे फिर इसे अपनी तिजोरी में रख देवे फिर प्रतिदिन धुप दीप दिखाते रहने से आपका कार्य व्यवसाय बढ़ने लगता हैं |
३...अगर आप अकेले व्यापर करने में असमर्थ हैं और साझेदारी में बार बार परेशानी आ रही हो तो होली या दीपावली की रात्रि में कच्चा सूत लेकर रोली से रँगे | फिर माता लक्ष्मी की तस्वीर के आगे रखकर धुप दीप दिखाकर प्रार्थना करे की हे ,माते ! मेरा कार्य व्यापर अच्छा चले और मुझे साझेदारी में किसी प्रकार की कोई समस्या नही   आए ऐसी प्रार्थना कर सूत अपने पास रख ले तो इसके प्रभाव से आपका कार्य व्यापर और साझेदारी अच्छी चलती रहती हैं |
४...यदि आपके व्यापर में कोई प्रगति नही हो पा  रही तो आप   इस प्रयोग को ग्रहण  काल  , होली या दीपावली की रात  को संपन्न  करे इसके लिए पवित्र   होकर स्वच्छ वस्त्र  धारण  करे फिर बाजोट पर लाल कपडा बिछाए  उस पर काले  तिलों  की ढेरी  बनाये  उस पर तेल का एक दिया रखे फिर इसके सामने  ११ लौंग  ,११ इलायची ,११ काली मिर्च रखे   | तेल के दिए  में पाँच  गोमती चक्र डाल दे फिर इसके पश्चात्   अपने इष्ट  से प्रार्थना  करे की मेरा व्यापार प्रगति करता  रहे  यदि किसी ने  बंधन  किया  हैं तो बंधन दूर  हो जाये इसके पश्चात् इस पोटली  को उठाकर चौराहे पर आजाये  यहाँ  पर पोटली को छोड़कर  बिना  पीछे  देखे  घर  आ जाये फिर हाथ  पैर  धो  ले ऐसा करने से भी आपका व्यापर प्रगति करने लगता हैं 
5..आपके व्यापर पर किसी की बुरी  नजर लग  गयी  हैं या किसी ने कुछ तंत्र  प्रयोग किया हैं तो आप शनिवार  के दिन काले घोड़े  की नाल  लाकर  अपने दरवाजे के ऊपर लगा  देवे इसके करने से भी आपके कार्य व्यापर में प्रगति होने  लगती हैं  |

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

भाई बहिन के अनोखे प्यार का प्रतिक हैं भाई दूज पर्व

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
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सूर्य भगवान की पत्नी का नाम संज्ञा देवी था | इनकी दो संतान पुत्र यमराज और पुत्री यमुना [यमी]  थी | संज्ञा देवी अपने पति का तेज सहन न कर सकने के कारण अपनी छाया को वहा पर पत्नी रूप में रखकर दूर चली गयी | इस छाया से तापी और शनि का जन्म हुआ | इसके बाद छाया का यम और यमुना से अच्छा व्यवहार नही था | इससे परेशान होकर यम यमपुरी चले गए | इसके पश्चात् यमुना भी गोलोक चली गयी | इस प्रकार भाई बहिन अलग अलग रहते हुए बहुत समय व्यतीत हो गया | यमुना अपने भाई यम को बहुत प्यार करती थी और मिलने के लिए  भी हमेशा बुलाता रहती थी ,पर काम की व्यस्तता के कारण यम अपनी बहिन से मिलने नहीं आ सके | इस पर बहुत दिनों बाद एक दिन यमराज अपनी बहिन को मिलने के लिए आये यह दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया थी | अपने भाई को अचानक अपने घर देखकर यमुना बहुत खुश हुई ,उसने अपने भाई को आदर सत्कार से बिठाकर उसकी पूजा कर भोजन कराया इससे प्रसन होकर यम ने अपनी बहिन से वर मांगने को कहा | इस पर यमुना ने कहा की "मेरे जल में स्नान करने वालो को यमपुर नही जाना पड़े " इस पर यमराज चिंतित हो गये क्योंकि इससे तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा | तब यमुना ने कहा की जो भाई आज के दिन अपनी बहिन के घर जाकर इस प्रकार पूजा कराकर भोजन करे और मेरे घाट पर स्नान करे उसे यमपुर नही जाना पड़े इसे यमराज ने मान लिया | तभी से इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाकर भोजन कर उपहार देते  हैं | जिससे उन्हें यमलोक का भय नही रहता | तभी से इसे यम द्वितीया के नाम से जाना जाता हैं और बहने अपने भाई की रक्षा के लिए और दीर्घ आयु की कामना के लिए वर मांगती हैं इसीलिए इसे भाई बहिन के अनोखे प्रेम के प्रतिक रूप में इसे भाई दूज कहा जाता हैं | इस दिन बहाने अपने भाई को तिलक लगाकर उसके दीर्घ आयु की कामना करती हैं और भोजन कराकर उससे उपहार प्राप्त करती हैं 
इस दिन चित्र गुप्त का पूजन दोपहर के समय ध्यान करते हुए करना चाहिए | चित्र गुप्त ब्रह्माजी के पुत्र हैं जो धर्म राजा की सभा में पृथ्वी वासियों के पाप पुण्य का लेखा जोखा रखते हैं | इनकी पूजा करना भी शुभ माना गया हैं  |

नरक चतुर्दशी का महत्त्व

नरक चतुर्दशी का महत्त्व 
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मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
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नरक चतुर्दशी का  त्यौहार जिसे नरक चौदस ,रूप चौदस और नरका पूजा के नाम से भी जाना जाता हैं |  यह त्यौहार दीपावली के एक दिन पूर्व आता हैं इसीलिए इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता हैं | यह त्यौहार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता हैं | इस दिन प्रातः काल तेल लगाकर अपामार्ग की पत्तिया जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती हैं |
इस दिन सायकाल में यमराज के निमित्त दीपदान करने से नरक का भय नही रहता ,ऐसी पौराणिक मान्यता हैं |
छोटी  दीपावली ............पौराणिक कथाओ के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण  ने नरकासुर नाम के बलशाली दैत्य का वध कर समस्त पृथ्वी वासियों और देवगणों की रक्षा की थी | नरकासुर ने प्राग ज्योतिष्पुर के निवासियों को अपने अत्याचार से परेशान कर रखा था और उसे इस काम में मुर और हयग्रीव नमक बलशाली दैत्य सहायता कर रहे थे | उसके अत्याचारों से पृथ्वी वासी तो क्या स्वयं देवराज इन्द्र भी चिंतित हो गये थे | तब समस्त देवगण एकत्रित होकर भगवान विष्णु के पास जाकर अपनी समस्या बताई, तो भगवान विष्णु ने बताया की इस समय मेरा पूर्णावतार भगवान कृष्ण के रूप में पृथ्वी लोक पर हुआ हैं | इसीलिए आपकी सहायता भगवान कृष्ण करेंगे इस पर देवराज इन्द्र भगवान कृष्ण  के पास आये और नरकासुर के अत्याचारों  से अवगत कराया और कहा की हे ! भगवान अब आप ही हमे इस समस्या से मुक्ति दिला सकते हैं |ऐसा सुनकर भगवान ने उनकी सहायता करने का आश्वासन दिया और भगवान उसी समय अपने दिव्य गरुड़ पर सवार होकर वहा पर पहुँच गए | वहा जाकर उन्होंने पहले रक्षा कवच के रूप में उपस्थित मुर और हयग्रीव दैत्य का वध किया | उनके बाद नरकासुर को स्वयं आना पड़ा | तब नरकासुर और भगवान श्री कृष्ण के मध्य भयंकर युद्ध हुआ | अंत में श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर के दो टुकड़े कर दिए |नरकासुर के  मरते ही सभी जगह भगवान श्री कृष्ण की जय जयकार होने लगी | इसके पश्चात् श्री कृष्ण ने सभी बंदियों को कारागार से मुक्त किया | इसी समय राजाओ की १६१०० कन्याओ को भी समाज में मान सम्मान दिलाने हेतु स्वयं ने विवाह कर दिया | एस प्रकार नरकासुर   के आतंक से मुक्त कराया | इस ख़ुशी में लोगो ने दीपक जलाये | तभी से इसे छोटी  दीपावली कहा जाने लगा |
नरक चतुर्दशी .....................नरक चतुर्दशीके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं की रन्ति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे | उन्होंने अनजाने में भी कभी कोई पाप नही किया | वे अपने प्रजाजनों को अपनी संतान के सामान समझते थे इसी प्रकार राज करते हुए उनका पूरा जीवन व्यतीत हुआ और जब अंत समय नजदीक आया तो उन्हें लेने के लिए यमदूत आ गए | इस प्रकार अपने मृत्यु समय में यमदूत को सामने देखकर राजा को आश्चर्य हुआ और कहा की मैंने कोई पाप नही किया फिर मुझे नरक में जाना क्यों पड़ रहा हैं | आप मुझे कृपा कर बताये की मुझे किस अपराध के कारण नरक का भागी बनना पड़ रहा हैं | राजा की ऐसी वाणी सुनकर यमदूतो   ने कहा की एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था | यह उसी पाप कर्म का फल हैं | तब राजा के अनुनय विनय करने पर यमदूतो ने एक वर्ष का समय दिया जिसमे वे प्रायश्चित कर सके | राजा अपनी इन परेशानियों को लेकर ऋषि मुनियों के पास गए तब उनके बताये अनुसार राजा ने कृष्ण पक्ष कार्तिक मास की चतुर्दशी को व्रत कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने अपराध की क्षमा मांगी | ऐसा करने से राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिला तभी से इसे नरक चतुर्दशी का नाम देकर व्रत किया जाता हैं |
रूप चतुर्दशी ..............पौराणिक कथाओ के अनुसार हिरण्य गर्भ नगरी में एक योगिराज अपनी तपस्या कर रहे थे परन्तु कुछ ही दिनों के बाद उनके शरीर में कीड़े पड़ गये और उनके शरीर से दुर्गन्ध आने लगी | इससे उनकी तपस्या भंग हो गयी जिससे वे बहुत व्याकुल रहने लगे | संयोगवश एक बार देवर्षि नारद उधर से गुजरे और मुनि को अपनी इस दशा का कारण पूछा और साथ में उपाय भी बताया की यदि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन व्रत कर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान और पूजन किया जाये तो आपको आपका रूप पुनः प्राप्त हो सकता हैं ,तब मुनि ने ऐसा ही किया जिससे उनको पुनः अपने रूप और सौन्दर्य की प्राप्ति हो सकी | तभी से इसे रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा और इस दिन लोग प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर जल में तिल मिलकर स्नान   करते हैं और कृष्ण का पूजन करते हैं | तभी से इसे रूप चतुर्दशी कहा जाने लगा |

बुधवार, 7 नवंबर 2012

दीपावली पर कैसे करे महा लक्ष्मी पूजन

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
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हिन्दुओ के लिए दीपावली पर्व का बहुत अधिक महत्त्व हैं |समस्त भारत में और विदेशो में भी जहा भारतीय मूल के लोग रहते हैं |वहा यह त्यौहार हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता हैं |इस दिन लोग श्रद्धा और विश्वास के साथ लक्ष्मी ,गणेश और सरस्वती का पूजन करते हैं |महा लक्ष्मी पूजन के बारे में तंत्र शास्त्रों में बताया गया हैं की कार्तिक अमावस्या अर्थात दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी विश्व भ्रमण पर भगवान विष्णु के साथ निकलती हैं इस यात्रा में वे जहा -जहा पर अपनी पूजा अर्चना और दीप प्रज्वलन देखती हैं ,वहा -वहा पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाती जाती हैं | रूद्र यामल तंत्र के अनुसार जब सूर्य और चन्द्र तुला राशी में गोचर वश  भ्रमण करते हैं तब लक्ष्मी साधना करना बहुत ही लाभदायक होता हैं और यह समय दीपावली काल ही होता हैं .................इस वर्ष १३ नवम्बर २०१२ को ७ बजकर १३ मिनट के पश्चात् अमावस्या रहेगी | दीपावली पूजन के लिए प्रदोष काल और स्थिर लग्न विशेष रूप से शुभ माने गए हैं ......
प्रदोष काल स्थानीय सूर्यास्त काल से २ घंटा ४० मिनट तक होता हैं और वृष और सिंह लग्न स्थिर लग्न होने से दीपावली पूजन में सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं |इसमे वृषभ लग्न सायकाल में और सिंह लग्न  निशीथ काल में आता हैं |आप अपनी राशी के अनुसार किसी एक लग्न में पूजन करे जो लग्न आपकी राशी से ६ ,८ ,१२ हो वह लग्न आपके लिए अशुभ हैं | मिथुन तुला और धनु राशी वाले .............लक्ष्मी पूजा सिंह लग्न में ही करे तभी इन्हे लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होगी | कन्या ,मकर और मीन  राशी वाले .............वृषभ लग्न में ही लक्ष्मी पूजन करे तभी इन्हे महा लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होगी | शेष राशियों वाले किसी भी लग्न में अपनी स्थिति अनुसार पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं | जिनकी राशी और लग्न दोनों से कोई लग्न ६ , ८, १२ वा लग्न बन रहा हो उन्हें विशेष रूप से इस समय अर्थात लग्न का ध्यान रखना चाहिए | दीपावली की रात्रि को महा निशा काल की संज्ञा दी गयी हैं | इसीलिए तंत्र साधक इस दिन का विशेष इंतजार करते हैं परन्तु वर्तमान में आमजन भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना चाहता हैं इसीलिए इस दिन का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता हैं 
महा लक्ष्मी पूजन ........
सर्व प्रथम आप अपने लिए शुभ लग्न का चयन करे | इस समय से पूर्व नहा धोकर पवित्र होकर शुद्ध स्वच्छ वस्त्र धारण करे | आजकल लक्ष्मी पूजन सामग्री पैकेज उपलब्ध रहते हैं, इनकी व्यवस्था करे और शेष सामग्री आप स्वयं एकत्रित करे | आपको पूजन में निम्न सामग्री की आवश्यकता रहेगी .........
सामग्री ...........लक्ष्मी ,गणेश और सरस्वती का संयुक्त चित्र ,कलश ,बाजोट ,लाल कपडा , पान , सुपारी ,नारियल ,एकांक्षी  नारियल ,रौली ,मौली ,साबुत अक्षत ,रुई ,घी ,तेल ,अगर बत्ती ,बताशे ,सफ़ेद मिष्ठान्न ,स्फटिक श्री यंत्र ,दक्षिण वर्ती शंख  ,पंचामृत ,सिंदूर ,पुष्प ,पुष्प माला ,कमल फुल ,कुमकुम, ऋतुफल ,इलायची ,चन्दन ,कपूर 
सर्वप्रथम आपको अपने पूजा घर में जाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर लक्ष्मी गणेश सरस्वती का संयुक्त चित्र स्थापित करे | फिर स्फटिक श्री यंत्र ,दक्षिणा वर्ती शंख और एकांक्षी  नारियल को स्थापित करे अब आप किसी आसन पर सपरिवार पूर्व या उत्तर की तरफ मुख कर बैठ जाये | सारी सामग्री को अपने पास ही व्यवस्थित रख ले अब धुप दीप जलाये .....
अब आप सर्व प्रथम शरीर की शुद्धता के लिए निम्न मन्त्र बोलकर आचमन करे--ॐ केशवाय नमः ,ॐ नारायणाय नमः ,ॐ माधवाय नमः,अब हाथ धोकर निम्न मन्त्र बोले ..ॐ हृषीकेशाय   नमः
आचमनी में जल लेकर निम्न विनियोग बोले --
ॐ अपवित्र पवित्रो वा वेत्यस्य वामदेव ऋषि विष्णुर्देवता गायत्री छन्दः हृदि पवित्रिकरने विनियोग  | अब जल को छोड़ देवे 
अब निम्न मन्त्र बोलकर अपने शरीर और पूजा सामग्री पर जल छिडके --
ॐ अपवित्र पवित्रोर्वा सर्वावस्था गतोअपी वा 
यः स्मरेत पुन्दरिकाक्ष्म स  ब्राह्याभ्यंत्र   शुचिः
     आसन शुद्धि के लिए धरती का स्पर्श कर विनियोग बोले --
ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरु पृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कुर्मो देवता आसने विनियोगः 
अब निम्न मन्त्र बोलकर आसन पर जल छिड़के ...
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी 
त्वं विष्णुना धृता त्वं च धारय मां देवी  
पवित्रं कुरु चासनम |
इसके पश्चात् प्राणायाम करे --
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम ॐ तत्स वितुर्वरेन्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात ॐ आपो ज्योति रसो अमृतं ब्रह्म भूभुर्वः स्वरों 
अब कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधकर निम्न मन्त्र बोलकर तिलक लगाये    
     ॐ चन्दनस्य महतपुण्यम पवित्रं पाप नाशनम 
आपदम हरते नित्यम लक्ष्मिस्तिष्ठ्ती सर्वदः
अब दाये हाथ में जल ,अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प करे ......
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्री मद भगवतो महापुरुषस्य विश्नोराज्ञा प्रवर्त मानस्य ब्रम्हानोअहिं द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्ट विंशति तमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे जम्बू द्वीपे भारत वर्षे आर्या वर्तेक देशे अमुक नगरे २०६९ विक्रमाब्दे विश्वावसुनाम संवत्सरे कार्तिक मासे अमावस्या तिथो मंगल वासरे  अमुक लग्ने शुभ मुहूर्ते  अमुक गोत्र अहम् श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलवाप्ती कामनाया ज्ञाता ज्ञात  कायिक वाचिक मानसिक सकल पाप निवृति पूर्वकं मां सर्व पाप शांति पूर्वकं दीर्घायुष्य बल पुष्टि नैरुज्यादी सकल शुभ फल प्राप्त यर्थमगृहे सुख शांति प्राप्त यर्थम श्री महा लक्ष्मी पूजन कुबेरादी पूजनम करिष्ये 
संकल्प बोलने के पश्चात् जल ,पुष्प और अक्षत को जमीन पर छोड़ देवे   अब अक्षत और पुष्प लेकर भगवान गणपति का ध्यान करे--
सुमुखश्चैक दंतश्च कपिलो गज कर्नकः
लम्बोदरश्च विकटो विघ्न नाशो विनायकः 
धूम्र केतुर्गना ध्यक्शोभालचन्द्रो  गजाननः 
द्वादशे तानी नामानि यः पठेच्छ्रुनुयादापी 
यह बोलकर पुष्प और अक्षत गणेशजी के सामने अर्पित करे अब निम्न मन्त्र बोलकर आह्वान करे --
ॐ गणानाम तवं गणपतिमःहवामहे प्रियाणाम  त्वं प्रियपतिः हवामह निधीनाम त्वं निधिपतिमः हवामहे वसो मम अहम् जानि गर्भधमा त्वंजासी गर्भधम 
ॐ भूभुर्वः स्वः सिद्धि बुद्धि सहितायगणपतये नमः गंपतिमा वह्यामी स्थापयामि पूजयामि च 
इसके पश्चात् निम्न मन्त्र बोले --
अस्यै प्राणाःप्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाक्षरन्तु च 
अस्यै देव त्वंचार्ये मामहेति च किंचन 
गजाननम सुप्रतिष्ठ्ते वरदे भवेताम     
प्रतिष्ठा पूर्वकं आसनार्थे अक्षतान समर्पयामि 
गज़ाननाभ्यम   नमः अक्षत छोड़ देवे 
अब जल के छींटे देते हुए पाद्यं ,अर्ध्यम ,आचमनीयम समर्पयामि बोले
सर्वांगे स्नानम समर्पयामि बोलकर जल के छींटे देवे 
सर्वांगे शुद्धोदक  स्नानम समर्पयामि बोलकर शुद्ध जल से स्नान कराये
   सर्वांगे पंचामृत  स्नानम समर्पयामि बोलकर पंचामृत  से स्नान कराये
सुवासितम इत्रं समर्पयामि बोलकर इत्र अर्पित करे 
वस्त्रम समर्पयामि बोलकर वस्त्र अर्पित करे 
गंधं समर्पयामि बोलकर गंध अर्पित करे 
पुष्पानी समर्पयामि बोलकर पुष्प अर्पित करे 
दुर्वं समर्पयामि बोलकर गणेशजी को दूर्वा अर्पित करे 
अक्षतं समर्पयामि बोलकर गणेशजी को अक्षत अर्पित करे 
सिंदुरम समर्पयामि बोलकर सिंदूर अर्पित करे 
 दीपकम दर्शयामि बोलकर दीपक दिखाए 
नैवैध्य्म समर्पयामि बोलकर नैवैध्य चढ़ाये 
ऋतू फलम समर्पयामि बोलकर ऋतुफल चढ़ाये 
आचमनीयम जलम समर्पयामि बोलकर जल के छींटे देवे 
ताम्बूलं  समर्पयामि बोलकर पान सुपारी चढ़ाये  
दक्षिणाम समर्पयामि बोलकर दक्षिणा चढ़ाये   
अब गणपति को प्रणाम कर चतुर्दश  देवताओ को प्रणाम करे--
रिद्धि सिद्धि सहिताय महा गणपतये नमः ,श्री लक्ष्मी विष्णुभ्याम  नमः,श्री उमा महेश्वरभ्याम नमः,ॐ शची पुरन्दराभ्याम नमः,श्री कुल देवता भ्याम नमः,श्री इष्ट देवतायाम नमः,श्री ग्राम देवतायाम नमः ,श्री स्थान देवतायाम नमः ,श्री माता पिता नमः,श्री सर्व ब्राह्मनायाम  नमः,श्री महा लक्ष्मी ,महा काली ,महा सरस्वत्ये   नमः 
इसके पश्चात् दक्षिणावर्ती शंख पूजन गणेश पूजन के जैसे ही करे --
त्वं पूरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृत करे 
निर्मितः सर्व देवाश्च पांचजन्य नमो अस्तुते 
इसके पश्चात् एकंक्षी नारियल पूजन करे --
ध्यान मन्त्र ...
द्विजत्श्चैक नेत्रस्तु नारिकेलो महीतले 
चिंतामणि समः प्रोक्तो वान्चितार्थ प्रदानतः
आधि भुतादी व्यधिनाम रोगादि भय हारिणी
  विधिवत क्रियते पूजाः संपत्ति  सिद्धि दायकं
मन्त्र --
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीम ऐं महा लक्ष्मी स्वरूपायएकंक्षी नारिकेलाय नमः सर्व सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा 
इसके पश्चात् निम्न मन्त्र बोलकर कलश का पूजन करे --
कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रूद्र समाश्रितः 
मुले तस्य स्थितो ब्रह्म मध्ये मात्र  गण स्मृताः   
कुक्षौ तू सागराः सर्वे सप्त द्वीपा वसुंधरा
ऋग वेदोअथ यजुर्वेदः सामवेदो अथर्वनमः 
अंगेश्च सहितासर्वे कलशम तू समाश्रिता 
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा 
सर्वे समुद्रः सरित स्तिर्थानी जलदा नदाः
आयान्तु देव पूजार्थ दुरित क्षय कारकाः
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती 
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन सन्निधिम कुरूम
अब नव ग्रहों का ध्यान कर नव ग्रह पूजन करे ----
ब्रह्मा मुरारी स्त्रिपुरान्त्कारी भानुः शशि भूमि सुतो बुधश्च 
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः  सर्वे ग्रह शान्तिकरा  भवन्तु   
इसके पश्चात् षोडश मातृका पूजन करे ---
गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातरः 
धृतिः पुष्टिस्था तुष्टिरा तमन कुलदेवता 
गनेशेनाधिका ह्रोता वृद्धो पूज्यश्च षोडशः 
अब लक्ष्मी पूजन करे --
महा लक्ष्मी का ध्यान ---
या सा पद्मासन स्था विपुल कट तटी पदम् पत्राय ताक्षी
गंभीरा वर्तना भिश्तनभरन मिता शुभ वस्त्रोत्तरिया
या लक्ष्मी दिव्य रुपैर्मणि गण खाचिते स्नापिता हेमकुम्भे
सा नित्यम पदम् हस्ता मम गृहे वसतु सर्व मांगल्यथूकता 
ॐ महा लक्ष्म्ये नमः ध्यानार्थे पुष्पानी समर्पयामि   
फुल अर्पित कर आह्वान करे 
सर्व लोकस्य जननीम सर्व सौख्य प्रदायिनिम
सर्व देव मयि मिशाम देविमा वाहयाभ्यम
ॐ महा लक्ष्म्ये नमः महा लक्ष्मीमावाह्यामी आवाहनार्थे पुष्पानी समर्पयामि 
इसके पश्चात् लक्ष्मीजी को सामग्री अर्पित कर पूजा करे ---
अब अष्ट सिद्धियों का पूजन करे ---
महा लक्ष्मी के पास पूर्वादी क्रम से ... १..ॐ अनिमने नमः पूर्व में २..ॐमहिम्ने नमः अग्नि कोण में ३..ॐ गरिम्ने नमः दक्षिण में ४..ॐ लघिम्ने नमः नैरित्य  में ५..ॐ प्राप्तये नमः पश्चिम में ६..ॐ प्रकाम्ये नमः वायव्य में ७..ॐ इशिताये नमः उत्तर में ८..ॐ वशिताये नमः ईशान में
इसके पश्चात् अष्ट लक्ष्मी का पूजन करे --
अब पूर्वादी क्रम से महा लक्ष्मी के पास कुमकुम युक्त अक्षत और फूलो से पूजा करे --
   १..ॐ अध्य लक्ष्म्ये नमः २..ॐ विद्या लक्ष्म्ये नमः ३..ॐ सौभाग्य लक्ष्म्ये नमः ४..ॐ अमृत लक्ष्म्ये नमः ५..ॐ काम लक्ष्म्ये नमः ६..ॐ सत्य लक्ष्म्ये नमः ७..ॐ भोग लक्ष्म्ये नमः ८..ॐ योग लक्ष्म्ये नमः 
इसके पश्चात् देहली विनायक पूजन करे --
ॐ देहली विनायकाय नमः बोलकर पूजन करे 
अब पैन पर मौली बंधकर निम्न मन्त्र बोलते हुए पुष्पदी चढाते हुए पूजा करे --
लेखनी निर्मित पूर्वं ब्रह्मानाम  परमेष्ठिना  लोकानाम च हितार्थाय तस्मात्तम पूज्या मह्यम ॐ लेखनी दैव्ये नमः  
शास्त्रानाम व्यव्हारानाम विद्या नामा म्नुयाध्यतः अत्स्त्वाम पुज्यश्यामी मम हस्ते स्थिरा भव  
अब लेखा पुस्तिका पर स्वस्तिक बनाये और निम्न मन्त्र बोलकर --सरस्वती का पूजन क रे --
ॐ वीणा पुस्तक धरिन्ये श्री सरस्व्त्ये नमः 
इसके पश्चात् कुबेर का आह्वान कर पूजन करे ---
आवाहयामि देव त्वमिहायाही कृपाम कुरूम कोशम वर्दय नित्यम तवम परिरक्ष सुरेश्वरः इसके बाद ॐ कुबेराय नमः बोलकर कुबेर देव का पूजन करे 
दीपक पूजन ----
त्वं ज्योतिस्तव्म रविश्चंद्रो विध्यु दग्निश्च तारकाः सर्वेषाम ज्योतिषं ज्योतिर्दीपवल्ये नमो नमः  
इसके बाद आरती कर महा लक्ष्मी से अपने घर में रहने की प्रार्थना करे इस प्रकार लक्ष्मी पूजन करने से आप पर माता लक्ष्मी की कृपा अवश्य होगी           

सर्व सुख प्राप्ति के लिए दीपावली पर करे अष्ट लक्ष्मी आराधना

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274
Email-pariharastro444@gmail.co
प्रत्येक व्यक्ति को धन के साथ -साथ और भी सुखो की जरुरत बहुत अधिक आवश्यक होती हैं |कहते हैं धन सब कुछ नही पर बहुत कुछ अवश्य हैं |इसलिए दीपावली पर यदि इन सुखो की प्राप्ति के लिए भी कुछ उपाय कर लिए जाये तो  आपका तन -मन हर्षित हो जायेगा  आप जीवन के प्रति पूर्ण  रूप से न सही पर फिर भी संतुष्ट हो जाते हैं परन्तु इन सबके लिए आप पर अष्ट लक्ष्मी की कृपा होनी जरुरी हैं तभी आप  संतुष्ट रह सकते हैं दीपावली के दिन अष्ट लक्ष्मी की पूजा अर्चना से धन के साथ यश ,विद्या , ऐश्वर्य ,तेज ,सौन्दर्य ,भाग्य और धैर्य की प्राप्ति होकर आप अष्ट लक्ष्मी की कृपा से  इन सब सुखो का भोग भी कर सकते हैं | शास्त्रों में ८ प्रकार के लक्ष्मी के रूप बताये गए हैं ........इन सब रूपों की पूजा आप भी करे ...........
इसके लिए आप दीपावली के दिन एक बाजोट पर लाल कपडा बिछाकर उस पर केसर और लाल चन्दन से अष्ट दल बनाये  | इसके पास में ही सवा मुट्ठी चावल रखकर उस पर कलश रखे पास में ही लाल कपडे पर माता अष्ट लक्ष्मी की तस्वीर को स्थान दे | अब फल ,मिठाई ,धुप दीप जलाकर अष्ट लक्ष्मी पर कुमकुम,फुल चढाते हुए पूजा करे यदि संभव हो तो मन्त्र जप में कमल गट्टे की माला का उपयोग करे पूजा करते हुए आप इन मंत्रो का जप करे .......
ॐ आध्य लक्ष्म्ये नमः ,
ॐ विद्या लक्ष्म्ये नमः,
 ॐ सौभाग्य लक्ष्म्ये नमः ,
ॐ अमृत लक्ष्म्ये नमः ,
ॐ काम लक्ष्म्ये नमः ,
ॐ सत्य लक्ष्म्ये नमः ,
ॐ भोग  लक्ष्म्ये  नमः,
 ॐ योग लक्ष्म्ये नमः 
इस प्रकार अष्ट लक्ष्मी की पूजा से आपको सुख शांति और समृद्धि प्राप्त होगी .................

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

मंगली दोष का प्रभाव कब तक

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
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मंगल दोष के बारे में अधिक जानकारी हेतु आप मेरे द्वारा लिखित मंगल दोष पीड़ा और परिहार पुस्तक का अध्धयन करे ............ 
प्राचीन काल से मंगली दोष के प्रभाव काल के बारे मे विद्वानो  मे मतभेद रहा है । कुछ विद्वान मंगली दोष का प्रभाव काल 28 वर्ष की आयु तक मानते है तो कुछ जीवनभर । देखा भी जाए तो जिस प्रकार किसी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । उसी प्रकार किसी विषय वस्तु पर एकाधिक विचारधाराए भी अवश्य मिलती है । शास्त्रो के अनुसार मंगल को युवावस्था का कारक माना जाता है । इसलिए अधिकांश विद्वान तर्क देते है कि मंगली दोष का प्रभाव युवावस्था मे ही रहती है तो अन्य विद्वान विंशोतरी दशा को ध्यान मे रखकर कहते है कि कोई भी ग्रह अपना शुभाशुभ फल अपने दशाकाल मे ही विशेषतया देते है । प्राचीन काल मे जब विवाह 12-13 वर्ष की आयु मे ही हो जाता था तब मंगली दोष का प्रभाव 28 वर्ष की आयु तक माना जा सकता था लेकिन वर्तमान मे युवा वर्ग अपने कैरियर को विवाह की बजाय अधिक ध्यान देते हे जिससे २८ वर्ष की आयु सीमा का महत्व कम हो जाता हैं । ऐसी स्थिति मे मंगली दोष का प्रभाव ऐसे जातको पर नही होना चाहिए परंतु वास्तव मे ऐसा संभव नही बन पाता ।
मंगली दोष का प्रभाव दाम्पत्य जीवन के अलावा शिक्षा ,कैरियर ,रिश्ते ,स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति ,संतान सुख आदि पर भी पडता है । वर्तमान मे मंगली दोष दाम्पत्य जीवन के लिए अशुभ मानते है। इस आधार पर देखा जाए तो मंगली दोष का प्रभाव दाम्पत्य जीवन को निराशामय बना देता है । पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव जैसे जैसे बढता जा रहा है वैसे वैसे दाम्पत्य जीवन भी निराशा भरा बनता जा रहा है । आज आपको कही भी ऐसी धटनाएॅ देखने या सुनने को मिल जाती है विवाह के 10-15 वर्ष पश्चात पति पत्नी मे परस्पर तर्क वितर्क ,मारपीट ,असहयोग , आत्माहत्या या हत्या जैसी स्थिति बन जाती है ।वूद्वावस्था मे भी दम्पति मे परस्पर कलह रहना , एकांतप्रियता आदि स्थिति देखी जा सकती है परंतु व्याहारिक रूप से देखा जाए तो वुद्वावस्था मे परिपक्पता के कारण ऐसी धटना नही होनी चाहिए । सामाजिकता के कारण ऐसे दम्पति साथ मे रहते जरुर हैं परंतु एक -दुसरे के सुख -दुख मे सहयोग नही दे पाते । पति का किसी अन्य स्त्री के साथ संबंध या पत्नी का किसी पर पुरूष के साथ संबंध होने कारण भी दाम्पत्य जीवन क्लेशमय बना रहता है। इसके कारण भी कई बार अनहोनी धटित हो जाती है । आए दिन समाचार पत्रो मे आपको पढने को मिल जाएगा कि अमुक स्त्री ने अपने प्रेमी के संग मिलकर अपने पति कि हत्या कर दी । क्या यह मंगली दोष का प्रभाव नही । इस बारे मे मेरा कहना है कि मंगली दोष का प्रभाव है लेकिन ऐसा प्रभाव एकाध कुण्डलियों मे ही देखने को मिलता है। आज आपको 80 %कुण्डलिया मंगली दोष से ग्रसित मिलेगी ।जिसमे से 20 प्रतिशत कुण्डलियो मे मंगली दोष भंग कि स्थिति मिलेगी । 20 प्रतिशत कुण्डलियो वाले जातको का मंगल मिलप्न हो जाने से मंगली दोष का प्रभाव कम हो जाता है। शेष जातको को मंगली दोष का प्रभाव किसी न किसी रुप मे भुगतान पडता है। इन में से कुश जातक भाग्यशाली होते हे कि उनके जीवन में मंगल की महादशा आती ही नही तो कुछ जातक विवाह पूर्व ही मंगल की महादशा से गुजर चुके होते है। मंगली दोष का प्रभाव मैने  अपने अनुभव मे पाया है कि जीवन भर इसका प्रभाव रहता है। परंतु युवावस्था में विशेष रूप प्रभाव विधमान रहता है। जैसे जैसे उम्र बढती जाती है। वैसे वैसे इसका उग्र प्रभाव  कम होता जाता है। मंगली दोष हाने पर यदि मंगल के साथ पापग्रह स्थित हो तो इसका नकारात्मक प्रभाव बड़ जाता है।यदि  युवावस्था मे ही इसकी दशा भी प्रारंभ हो जाए तो दाम्पत्य जीवन नरक बन जाता है। परंतु शुभग्रहो का मंगल पर प्रभाव हाने पर मंगली दोष कम होकर दाम्पत्थ जीवन में अनबन रहती है। वैचारिक मतभेद एवं क्लेश की स्थिति बनने पर भी पारिवारिक सहयोग एवं सामाजिक बंधन के कारण मंगली दोष का प्रभाव दम्पत्य जीवन को बनाए रखता है । कई बार ऐसा भी होता कि मंगली दोष के कारण दम्पति मे परस्पर सहयोग एवं समर्पण दिखाई देता है परंतु उसके स्वास्थ्य संबध पीडा होती है। मंगली दोष कि स्थिति मे स्त्री को मासिक स्त्राव कम या अधिक होने ,पुरुष गुप्त रोग का प्रकोप एव आक्समिक दुर्घटना के कारण अंग भग कि स्थिति बनती है। युवावस्था मे इस प्रकार कि समस्या अधिक देखने को मिलती है। लेकिन निश्चित समयावधी पश्चात ऐसी समस्याएं कम होने लगती है। अर्थात मंगली दोष का प्रभाव युवावस्था पर अधिक घातक रुप  से पडता है। आपने भी कई बार देखा या सुना होगा कि उस व्यक्ति कि शादी के तुरंत पश्चात बारात लैाटते समय आक्समिक दुर्धटना के कारण मृत्यु हो गई । तो कुछ आक्समिक दुर्धटना के कारण अपाहिज हो जाते है।ऐसे  मामलो मे देखा गया हें। की मगल पर केतु का अशुभ दृष्टि प्रभाव पड रहा होता है। मंगल केतु कि युति होने पर भी इस प्रकार कि दृर्धटना होते देखी गई है। ऐसे जातक जिसमे जन्मांग मे मंगल शनि, मंगल केतु- सूर्य या मंगल राहु कि युति होकर मगंली दोष बन रहा हो तो उन्हे विवाह से पूर्व किसी ज्योतिषि का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करना चाहिए । ऐसी  स्थिति मे भाग्य के भरोसे रहना समझदारी नहि कही जा सकती । यदि आपका विवाह होने वाला है एव आपको छोटी छोटी दुर्धटनाए होती रहती है। ’तो भी आप किसी योग्य ज्योतिषि का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करे । मंगली दोष का सबसे अधिक प्रभाव विवाह के पश्चात पांच वर्ष  तक रहता है। ऐसी स्थिति मे मंगली दोष जब मारक बन रहा हो तो जीवन साथी द्वारा हत्या या हत्या का प्रयास करना, दुर्घटना मे अंग भंग होना ,आक्समिक दुर्घटना के कारण मृत्यु तक हो जाती है। इसलिए मंगली दोष से ग्रस्त ऐसे जातक दाम्पत्य जीवन अच्छा होने पर भी भावी अनिष्ट कि आशंक के निवारण के लिए मंगल को शुभ बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए । हो सकता है आपके द्वारा किए गए उपायो से मंगली दोष कि तीव्रता कम होकर आपको सामान्य पीडा ही दे सके अर्थात उपाय करते रहने पर आपकि पीडा अवश्य कम होती है।
मंगली दोष का प्रभाव आजीवन रहने पर भी इसकि तीव्रता युवावस्था के पश्चात कम हो जाने से दम्पति सामंजस्य स्थापित कर लेते है। परंतु जब मगल पाप ग्रहो से युति कर स्थित हो तो मंगली दोष कि तीव्रता आजीवन बनी रहती है। ऐसे जातको को विशेषतया मंगल या संबधित पापग्रह जब गोचर मे अशुभ बन रहे हो, नीच राशि से गुजर रहे हो,मंगल कि दशा -अन्तर्दशा, प्रत्यान्तर दशा चल रही हो या संबधित पापग्रह कि दशा- अन्तर्दशा ,प्रत्यन्तर दशा चल रही हो तब इन्हे विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। दम्पति मे परस्पर मंगल का मिलान हो जाने पर पीडा कम हो जाती है। परन्तु सामान्य परेशानी समय विशेष पर अवश्य बनी रहती है।मंगल दोष के बारे में अधिक जानकारी हेतु आप मेरे द्वारा लिखित मंगल दोष पीड़ा और परिहार पुस्तक का अध्धयन करे

सोमवार, 5 नवंबर 2012

दीपावली पर ऐसे करे माँ लक्ष्मी को प्रसन्न


परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.co
धार्मिक ग्रंथो और तंत्र शास्त्रों में दीपावली पर माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के अनेक उपाय बताये गए हैं | माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए साधक इस दिन विशेष साधनाए भी करते हैं | इस रात् को भगवती लक्ष्मी भगवन विष्णु के साथ विश्व भ्रमण पर निकलती हैं | कहा जाता हैं की जो साधक श्रद्धा ,भक्ति और विश्वास से माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना करता हैं तो देवी लक्ष्मी उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उसके घर में निवास करने लगती हैं |
माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कालरात्रि का विशेष महत्त्व हैं | तंत्र शास्त्रों में इस रात्रि को महाशक्ति माना गया हैं |कालरात्रि को महाशक्ति के श्री विद्या का अंग माना गया हैं | श्री विद्या की उपासना से सुख ,सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति स्वतः ही होने लगती हैं | इस समय सूर्य और चन्द्र तुला  राशी  में भ्रमण करे  रहे होते हैं | इसीलिए  तंत्र शास्त्रों के अनुसार इसमे साधना करने से सुख -समृद्धि और धन -धान्य की प्राप्ति होती हैं |माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए यहाँ पर कुछ शास्त्रोक्त अनुभूत उपाय बताते जा रहे हैं |  जिनको करके आप माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं ....
..दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी पूजनोपरांत निम्न मन्त्र का १० माला जप करे | १०८ आहुति खीर से इस  मन्त्र की देवे | फिर अगले वर्ष तक प्रतिदिन एक माला निम्न मन्त्र का जप करे | भगवती लक्ष्मी की कृपा से दिन -प्रतिदिन धन धान्य और सुख समृद्धि में वृद्द्धि होती रहेगी  | मन्त्र इस  प्रकार हैं ...
श्री शुक्ले महा शुक्ले कमल दल निवासे श्री महा लक्ष्मी नमो  नमः लक्ष्मी माई सत  की सवाई आओ सेतो करो भलाई भलाई  करो तो सात  समुद्रो की दुहाई रिद्धि सिद्धि उख्गे तो नो नाथ चौरासी सिद्धो गुरु गोरखनाथ की दुहाई |
...शाबर मंत्रो के बारे में कहा जाता हैं की इन  मंत्रो का साधक द्वारा जितनी अधिक संख्या में जप किया जाता हैं | उतना ही अधिक फल प्राप्त होने लगता हैं | दीपावली की रात्रि से प्रारंभ कर इस  मन्त्र का नित्य प्रति १०८ बार जप करना चाहिए |इस  मन्त्र जप के प्रभाव से आपके ऊपर लक्ष्मी की कृपा बनाने लगती हैं |मन्त्र जप के समय घी का दीपक ,धुप और सुगन्धित अगरबत्ती अवश्य जलती रहनी चाहिए फिर आसन लगाकर मन्त्र जप प्रारंभ करे मन्त्र इस  प्रकार हैं .....
विष्णु प्रिय लक्ष्मी शिव प्रिया सती से प्रकट हुई  कामाक्ष  भगवती आदि शक्ति युगल मूर्ति महिमा अपार  दोनों की प्रीति   अमर जाने संसार  दुहाई कामाक्षा की आय बढा  ,व्यय घटा ,दया कर माई  नमः विष्णु प्रिये  नमः शिव प्रिये  नमः कामाक्षाय  ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं  फट स्वाहा |
....पद्मावती देवी की साधना दीपावली पर करना अत्यंत शुभ माना गया हैं |इस  दिन से पद्मावती देवी की साधना प्रारंभ कर वर्ष भर करते रहने पर साधक को सभी क्षेत्रो में सफलता प्राप्त होती हैं |इसके जप से लाक्ष्मी प्राप्ति ,शत्रु नाश ,कष्टों से छुटकारा और व्याधि में भी राहत  प्राप्त होती हैं दीपावली की रात  में गुलाल ,गेरू ,छबीला ,चन्दन ,कपूर का चूरन लेकर गंगा जल मिलाकर १०८ गोलिया बनाये | हरे रंग के वस्त्र पहने और हरे रंग के आसन का प्रयोग करे आसन उपलब्ध नही हो तो आसन की जगह दरी का प्रयोग करे | इसके पश्चात् मन्त्र जप करते हुए अंत में स्वाहा लगाकर १०८ गोलियों की आहुति देवे ऐसा महीने में एक बार आहुति अवश्य दे जिससे आप पर देवी पद्मावती की कृपा होने लगाती हैं | मन्त्र इस  प्रकार हैं ...
 पद्मावती पदम् नेत्रे पदमासन लक्ष्मी दायिनी वान्क्षा  भुत प्रेत निग्रहानी सर्व शत्रु संहारिणी दुर्जन मोहिनी रिद्धि वृद्धिम कुरु कुरु स्वाहा  ह्रीं  श्रीं पदमाव्त्ये नमः |
..दीपावली की रात  को स्फटिक श्री यंत्र और एक स्फटिक माला डायमंड कट  प्राप्त कर पहले रख ले | दीपावली की रात  को पहले लक्ष्मी पूजा करते समय इन्हे पूजा स्थान में रखे उस पर चन्दन और पुष्पादी  चढ़ाये फिर घी का दीपक जलाये सुगन्धित धुप और अगरबत्ती जलाये | इसके पश्चात् निम्न मन्त्र का १९८ बार जप करे मन्त्र इस प्रकार हैं ..
 श्री ह्रीं  श्रीं  कमले कमलालये प्रसिद प्रसिद श्रीं  ह्रीं  श्रीं   महा लक्ष्म्ये नमः |
उपरोक्त मन्त्र की दस माला जप करे तत्पश्चात खीर से १०८ बार आहुति देवे |इस  मन्त्र के प्रभाव से जातक का कार्य व्यवसाय सुधरने लगता हैं |उसकी आर्थिक स्थिति में भी दिन प्रतिदिन प्रगति होती रहती हैं उसके बाद दीपावली के अगले दिन से एक माला जप करे शुक्रवार के दिन खीर से आहुति देता रहे तो आपकी आर्थिक स्थिति अवश्य सुधरेगी |
..दीपावली की रात्रि को हल्दी की ११ गांठे ले |इन  गांठो को पीले कपडे में बांध ले फिर लक्ष्मी गणेश का संयुक्त फोटो अपने पूजा स्थान में रखे घी का दीपक जलाकर तस्वीर पर चन्दन पुष्प चढ़ाये इसके बाद निम्न  मन्त्र का ११ माला  जप करे मन्त्र इस  प्रकार हैं ..
 वक्र तुन्डाय हुम | 
मन्त्र जप पूरा करने के पश्चात् हल्दी की गांठे जो पीले कपडे में बंधी हुई हैं उस कपडे को हाथ में लेकर श्रीं  श्रीं  का जप करते हुए अपनी तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दे  | फिर प्रतिदिन इसे धुप दीप अगरबत्ती जलाकर दिखाते रहे | इससे आप पर लक्ष्मी कृपा के साथ साथ आपके  कार्यो में आने वाली विघ्न बाधाये भी दूर होती हैं |
६..यदि आपके कार्य व्यवसाय में प्रगति नही हो प़ा  रही हैं कार्य व्यवसाय पर ग्राहकों की संख्या कम रहती हैं तो दीपावली की रात को एक व्यापार वृद्धि यंत्र प्राप्त करे इसके पश्चात् इसे पंचामृत स्नान कराये |इसके बाद गंगा जल से स्नान कराये | उस पर फल ,फुल ,नाग केसर चढ़ाये सुगन्धित धुप ,दीप ,अगरबत्ती जलाते हुए मूंगा माला से निम्न मन्त्र की ११ माला जप करे | जाप के पश्चात् प्रणाम करे और यंत्र को दुकान के पूजा घर में स्थापित करे | फिर प्रतिदिन धुप दीप दिखाते रहने से आपका कार्य   व्यवसाय दिन -प्रतिदिन प्रगति करता रहेगा 
मन्त्र...ॐ श्रीं सर्व विघ्न हरस्तस्मै गणधिपत्ये नमः |
७...दीपावली के दिन ११ गोमती चक्र ,११ कौड़िया ,५ साबुत सुपारी और काली हल्दी ले | अब काली हल्दी पर पिली हल्दी के छींटे लगावे छींटे लगते समय श्रीं श्रीं का उच्चारण करते रहे | फिर इसके बाद इस सामग्री को पीले कपडे में बांधकर और पोटली बनाकर अपनी तिजोरी में रख दे ऐसा करने से लक्ष्मी आप पर हमेशा प्रसन्न रहेगी |
८...दीपावली की रात में श्री सूक्त का पाठ अवश्य करे | सर्व प्रथम स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे फिर लाल आसन पर बैठकर लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक और धुप अगरबत्ती जलाये इसके पश्चात् श्री सूक्त के ११ पाठ करे | हवन कुंड में अग्नि जलाकर श्री सूक्त की प्रत्येक ऋचा के साथ खीर की आहुति दे | इसके पश्चात् दीपक को घर के प्रत्येक भाग में घुमाते हुए माता लक्ष्मी से प्रार्थना करे इसे पुनः पूजा स्थल पर रख दे ऐसा करने से आप पर देवी लक्ष्मी की कृपा होने लगती हैं |
९..दीपावली के दिन हत्था जोड़ी को शुद्ध जल से स्नान कराकर लाल वस्त्र पर रखे | फिर एक कटोरी में तेल भरकर उसमे हत्था जोड़ी को डुबो दे | इसके पश्चात् प्रार्थना करते हुए इसे एकांत स्थान में २१ दिनों के लिए रख दे | २१ दिन के पश्चात् इसे तेल में से निकालकर सिंदूर ,चन्दन और अक्षत चढ़ाये फिर धुप दिखाकर निम्न मन्त्र की २१ माला जप करे इसके पश्चात् चाँदी की एक डिब्बी में रखकर अपने पूजा स्थान  में रख दे |इसको स्थापित करने से माता लक्ष्मी के साथ दुर्गा कृपा भी होने लगती हैं | मन्त्र इस प्रकार हैं ...
ऐं ह्रीं क्लीम चामुन्दाये विच्चे 
१० ...दीपावली की रात में एक कलश में केसर से स्वस्तिक बनाये फिर उसमे पानी भरे उसके पश्चात् चावल ,दूर्वा और एक रूपये का सिक्का उसमे डाले | कलश के ऊपर एक प्लेट  रखे उसे चावल से भर दे |इसके ऊपर स्फटिक श्री यंत्र रखे फिर घी का दीपक जलाकर कुमकुम ,अक्षत चढ़ाये अब निम्न मन्त्र की ११ माला जप करे | जप करते समय भगवती लक्ष्मी का ध्यान रखे और अपने घर में निवास की प्रार्थना करे इसके प्रभाव से आप पर देवी लक्ष्मी की कृपा होने लगती हैं 
मन्त्र..ॐ महा लक्ष्म्ये नमः 
आप भी माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इनमे से कोई उपाय इस दीपावली पर अवश्य करे आप पर भी माता लक्ष्मी की कृपा अवश्य होगी ....