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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

नरक चतुर्दशी का महत्त्व

नरक चतुर्दशी का महत्त्व 
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नरक चतुर्दशी का  त्यौहार जिसे नरक चौदस ,रूप चौदस और नरका पूजा के नाम से भी जाना जाता हैं |  यह त्यौहार दीपावली के एक दिन पूर्व आता हैं इसीलिए इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता हैं | यह त्यौहार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता हैं | इस दिन प्रातः काल तेल लगाकर अपामार्ग की पत्तिया जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती हैं |
इस दिन सायकाल में यमराज के निमित्त दीपदान करने से नरक का भय नही रहता ,ऐसी पौराणिक मान्यता हैं |
छोटी  दीपावली ............पौराणिक कथाओ के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण  ने नरकासुर नाम के बलशाली दैत्य का वध कर समस्त पृथ्वी वासियों और देवगणों की रक्षा की थी | नरकासुर ने प्राग ज्योतिष्पुर के निवासियों को अपने अत्याचार से परेशान कर रखा था और उसे इस काम में मुर और हयग्रीव नमक बलशाली दैत्य सहायता कर रहे थे | उसके अत्याचारों से पृथ्वी वासी तो क्या स्वयं देवराज इन्द्र भी चिंतित हो गये थे | तब समस्त देवगण एकत्रित होकर भगवान विष्णु के पास जाकर अपनी समस्या बताई, तो भगवान विष्णु ने बताया की इस समय मेरा पूर्णावतार भगवान कृष्ण के रूप में पृथ्वी लोक पर हुआ हैं | इसीलिए आपकी सहायता भगवान कृष्ण करेंगे इस पर देवराज इन्द्र भगवान कृष्ण  के पास आये और नरकासुर के अत्याचारों  से अवगत कराया और कहा की हे ! भगवान अब आप ही हमे इस समस्या से मुक्ति दिला सकते हैं |ऐसा सुनकर भगवान ने उनकी सहायता करने का आश्वासन दिया और भगवान उसी समय अपने दिव्य गरुड़ पर सवार होकर वहा पर पहुँच गए | वहा जाकर उन्होंने पहले रक्षा कवच के रूप में उपस्थित मुर और हयग्रीव दैत्य का वध किया | उनके बाद नरकासुर को स्वयं आना पड़ा | तब नरकासुर और भगवान श्री कृष्ण के मध्य भयंकर युद्ध हुआ | अंत में श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर के दो टुकड़े कर दिए |नरकासुर के  मरते ही सभी जगह भगवान श्री कृष्ण की जय जयकार होने लगी | इसके पश्चात् श्री कृष्ण ने सभी बंदियों को कारागार से मुक्त किया | इसी समय राजाओ की १६१०० कन्याओ को भी समाज में मान सम्मान दिलाने हेतु स्वयं ने विवाह कर दिया | एस प्रकार नरकासुर   के आतंक से मुक्त कराया | इस ख़ुशी में लोगो ने दीपक जलाये | तभी से इसे छोटी  दीपावली कहा जाने लगा |
नरक चतुर्दशी .....................नरक चतुर्दशीके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं की रन्ति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे | उन्होंने अनजाने में भी कभी कोई पाप नही किया | वे अपने प्रजाजनों को अपनी संतान के सामान समझते थे इसी प्रकार राज करते हुए उनका पूरा जीवन व्यतीत हुआ और जब अंत समय नजदीक आया तो उन्हें लेने के लिए यमदूत आ गए | इस प्रकार अपने मृत्यु समय में यमदूत को सामने देखकर राजा को आश्चर्य हुआ और कहा की मैंने कोई पाप नही किया फिर मुझे नरक में जाना क्यों पड़ रहा हैं | आप मुझे कृपा कर बताये की मुझे किस अपराध के कारण नरक का भागी बनना पड़ रहा हैं | राजा की ऐसी वाणी सुनकर यमदूतो   ने कहा की एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था | यह उसी पाप कर्म का फल हैं | तब राजा के अनुनय विनय करने पर यमदूतो ने एक वर्ष का समय दिया जिसमे वे प्रायश्चित कर सके | राजा अपनी इन परेशानियों को लेकर ऋषि मुनियों के पास गए तब उनके बताये अनुसार राजा ने कृष्ण पक्ष कार्तिक मास की चतुर्दशी को व्रत कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने अपराध की क्षमा मांगी | ऐसा करने से राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिला तभी से इसे नरक चतुर्दशी का नाम देकर व्रत किया जाता हैं |
रूप चतुर्दशी ..............पौराणिक कथाओ के अनुसार हिरण्य गर्भ नगरी में एक योगिराज अपनी तपस्या कर रहे थे परन्तु कुछ ही दिनों के बाद उनके शरीर में कीड़े पड़ गये और उनके शरीर से दुर्गन्ध आने लगी | इससे उनकी तपस्या भंग हो गयी जिससे वे बहुत व्याकुल रहने लगे | संयोगवश एक बार देवर्षि नारद उधर से गुजरे और मुनि को अपनी इस दशा का कारण पूछा और साथ में उपाय भी बताया की यदि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन व्रत कर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान और पूजन किया जाये तो आपको आपका रूप पुनः प्राप्त हो सकता हैं ,तब मुनि ने ऐसा ही किया जिससे उनको पुनः अपने रूप और सौन्दर्य की प्राप्ति हो सकी | तभी से इसे रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा और इस दिन लोग प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर जल में तिल मिलकर स्नान   करते हैं और कृष्ण का पूजन करते हैं | तभी से इसे रूप चतुर्दशी कहा जाने लगा |

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