परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-27 6626
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वन्तरी हाथ में अमृत कलश लेकर ,ऊपर की दोनों भुजाओ में शंख और चक्र ,निचे की एक भुजा में जलूका और औषध लेकर समुद्र मंथन से .प्रकट हुए थे | इन्हे आरोग्य का देवता कहा जाता हैं | जिन्होंने अमृतमय औषधियों की खोज की थी समुद्र से निकलने के पश्चात् जब भगवान धनवंतरी ने अपना स्थान और भाग निश्चित करने को कहा तब भगवान श्री विष्णु ने कहा की यह कार्य तो पहले ही निश्चित हो चूका हैं | तुम देवताओ के बाद अवतरित हुए हो इसीलिए तुम्हे देवत्व प्राप्त नही होगा परन्तु अगले जन्म में पृथ्वी पर अवतार लोगे जिसमे तुम्हे देवत्व प्राप्त होगा और द्विज जाति गण तुम्हारी पूजा भी करेंगे इसके पश्चात् काशिराज धन्व के यहाँ पुत्र रूप में जन्म लेकर धन्वन्तरी नाम धारण किया | इन्होने भारद्वाज से आयुर्वेद ग्रहण कर उसे अष्टांग में बाँट दिया |
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-27
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वन्तरी हाथ में अमृत कलश लेकर ,ऊपर की दोनों भुजाओ में शंख और चक्र ,निचे की एक भुजा में जलूका और औषध लेकर समुद्र मंथन से .प्रकट हुए थे | इन्हे आरोग्य का देवता कहा जाता हैं | जिन्होंने अमृतमय औषधियों की खोज की थी समुद्र से निकलने के पश्चात् जब भगवान धनवंतरी ने अपना स्थान और भाग निश्चित करने को कहा तब भगवान श्री विष्णु ने कहा की यह कार्य तो पहले ही निश्चित हो चूका हैं | तुम देवताओ के बाद अवतरित हुए हो इसीलिए तुम्हे देवत्व प्राप्त नही होगा परन्तु अगले जन्म में पृथ्वी पर अवतार लोगे जिसमे तुम्हे देवत्व प्राप्त होगा और द्विज जाति गण तुम्हारी पूजा भी करेंगे इसके पश्चात् काशिराज धन्व के यहाँ पुत्र रूप में जन्म लेकर धन्वन्तरी नाम धारण किया | इन्होने भारद्वाज से आयुर्वेद ग्रहण कर उसे अष्टांग में बाँट दिया |
धनवंतरी के बारे में कहा जाता हैं की वे सभी रोगों के निवारण में सिद्ध हस्त थे | बाह्य रोगों में उनकी दृष्टि ही रोग का नाश कर देती थी जब इस कारण से सभी लोग स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने लगे तब श्री हरी को चिंता हुई क्योकि इस प्रकार बिना जरा व्याधि के मृत्यु असंभव लग रही थी तब श्री हरी ने धन्वन्तरी की पीठ पर फोड़ा कर दिया जो धीरे धीरे दवाइया करने के उपरांत भी विकराल होता जा रहा था | धन्वन्तरी की दृष्टि भी उस फोड़े पर नही पहुँच पा रही थी | जिससे उनके शिष्यों को भी चिंता होने लगी | इसी कारण उनकी मृत्यु हो गयी और पुनः सृष्टि कर्म व्यवस्थित होने लगा | भगवान धन्वन्तरी जयंती जिस कार्तिक कृष्ण पक्ष में सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि हो उस दिन धन्वन्तरी की पूजा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग विशेष रूप से करते हैं | इस दिन निम्न में से किसी एक मन्त्र का जाप विशेष रूप से करना चाहिए .......
ॐ शंख चक्र जलौकाम दधि अमृत घटम चारुदोर्मिश्चतुर्मी |
सूक्ष्म स्वच्छाती हृद्ध्यांशुक परिविलसंमौलिम्म भोज नेत्रं ||
कालाम्भोदोज्जवलांग कटी तट विलसच्चा रुपितामब्राध्यम |
वन्दे धनवंत्रिम तं निखिल गद्वन प्रौढ़ दावाग्नि लीलम ||
२..ॐ धन्वन्तरये नमः
३..ॐ धनवंत्रिने नमः
४..इसके पश्चात् निम्न मन्त्र का जप करे
ॐ नमो भवगते वासुदेवाय
इसके पश्चात् पुरुष सूक्त का पाठ करना चाहिए जिससे भगवान धनवंतरी की शीघ्र कृपा आप पर हो सके |
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