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शनिवार, 29 सितंबर 2012

कैसे मनाए विजयादशमी



परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
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       विजयादशमी का पर्व  प्राचीन  काल से ही पूरे भारत वर्ष मे धुमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व रावण पर राम की विजय के प्रतीक रूप  में  मुख्यतया मनाया जाता है। इस दिन रावण,मेघनाद व कुंभकर्ण का पुतला बनाकर उन्हे जलाने की परंपरा मुख्य रूप से सर्वत्र प्रचलित है। इस दिन अपराजिता पूजन व शमी पुजन विशेष रूप से कई स्थानो पर किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पुजन दशमी को उतर पूर्व दिशा में अपरान्ह के समय विजय एवं कल्याण की कामना के लिए किया जाना चाहिए।
     धर्मसिन्धु के अनुसार अपराजिता पूजन के लिए अपरान्ह में गांव के उतर पूर्व की ओर जाकर एक स्वच्छ स्थल को गोबर से लीपना चाहिए। फिर चंदन से आठ कोण दल बनाकर संकल्प करना चाहिए- ’ मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्धयर्थ अपराजिता  पूजन करिष्ये। इसके पश्चात उस आकृति के बीच मे अपराजिता का आह्वान करना चाहिए। इसके दाहिने एवं बाये जया एवं विजया का आह्वान करना चाहिए। एवं साथ ही क्रिया शक्ति को नमस्कार एवं उमा को नमस्कार करना चाहिए। इसके पश्चात  अपराजितायै नमः जयायै नमः, विजयायै नमः मंत्रो के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यह प्रार्थना करनी चाहिए। ’ हे देवी, यथाशक्ति मैने जो पुजा अपनी रक्षा के लिए की है। उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को जा सकती है।
      इस प्रकार अपराजिता पूजन के पश्चात उतर पूर्व की ओर शमी वृक्ष की तरफ जाकर पुजन करना चाहिए। शमी का अर्थ शत्रुओ का नाश करने वाला होता है। शमी पूजन के लिए इस मंत्र का पाठ करना चाहिए-
                  प्रार्थना मंत्र-
                           शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका।
                           धारिष्यर्जुन बाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।
                           करिष्यमाणयात्रायां  यथाकाल सुखं मया।
                           तत्र निर्विघ्नकत्र्रीत्वंभव श्रीरामपूजिते।।
अर्थ- शमी पापो का शमन करती है। शमी के कांटे तांबे के रंग के होते है। यह अर्जून के बाणो को धारण करती है। हे शमी,राम ने तुम्हारी पुजा की है। मै यथाकाल विजययात्रा पर निकलुंगा। तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्न कारक व सुखकारक करो।
        इसके पश्चात शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखते है। फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड के पास की मिट्टी व कुछ पते घर लेकर आते है।
       भगवान राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी सम्पूर्ण धन संपति दान कर पर्ण कुटिया  में रहने लगे। इसी समय  कौत्स  को चौदह  करोड स्वर्ण मुद्राओ की आवश्यकता गुरू दक्षिणा के लिए पडी। तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया तब कुबेर ने शमी एवं अश्मंतक पर स्वर्ण मुद्राओ   की वर्षा की थी तब से शमी व अश्मंतक की पुजा की जाती है। अश्मंतक के पत्र घर लाकर स्वर्ण मानकर लोगो मे बांटने का रिवाज प्रचलित हुआ।
        अश्मंतक पुजा समय निम्न मंत्र बोलना चाहिए-
                              अश्मंतक महावृक्ष महादोष निवारणम्।
                              इष्टानां दर्शनं देहि कुरू शत्रुविनाशनम्।।
अर्थात हे अश्मंतक महावृक्ष तुम महादोषो का निवारण करने वाले हो, मुझे मेरे मित्रो का दर्शन कराकर शत्रु का नाश करो।
     इस प्रकार विजयादशमी का पर्व मनाने से सुख समृद्धि प्राप्त होकर विजय की प्राप्ति होती है।
                                                                                 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
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