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बुधवार, 26 सितंबर 2012

नवरात्र में करे दुर्गा के नवरूपो की पूजा


     
 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,02972-276626,9001846274
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नवरात्र शब्द दो शब्दों नव़ + रात्र से मिलकर बना है। जिसका अर्थ नौ दिव्य अहोरात्र से है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्री का पर्व वर्ष में चार बार आता है। ये चार नवरात्रीयां बासंतिक,आषढीय,शारदीय व माघीय है जिसमें से दो नवरात्री शारदीय व बासंतिक जनमानस में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसी कारण शेष दो नवरात्री आषाढी व माघीय को गुप्त नवरात्री कहा जाता है। कल्कि पुराण के अनुसार चैत्र नवरात्र जनसामान्य के पुजन हेतु उतम मानी गई है। गुप्त नवरात्र साधको के लिए उतम मानी है। शारदीय नवरात्र राजवंश के लिए उतम मानी गई है।  भगवान श्री राम ने शारदीय नवरात्र का विधि विधान से पुजन कर लंका विजय प्राप्त की थी। लंकिन समय चक्र के साथ राजपरिवार प्रथा बंद होकर अब आमजन भी शारदीय नवरात्र को अति उत्साह से मनाता आ रहा है एवं माता दुर्गा को प्रसन्न करने के अनेक उपाय भी करता आ रहा है।
   नवरात्र में माता दुर्गा के नव स्वरूपो की पुजा करने का विशेष विधान है। ये नव स्वरूपो तीन देवियो पार्वती,लक्ष्मी और सरस्वती के तीन-तीन रूप है। जिसमे से प्रथम तीन दिनों में पार्वती के तीन रूपों की पुजा की जाती है। इससे अगले तीन दिनो में लक्ष्मी के तीनो रूपो की व शेष तीन दिनो में सरस्वती के तीन रूपो की पुजा की जाती है। इन तीन महाशक्तियों को संयुक्त रूप से दुर्गा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार ये नवस्वरूप-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघंटेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठ कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिती महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
उक्तन्येतानि नामानि ब्रह्मणैन महात्मना।।
अर्थात दुर्गा के इन स्वरूपो की नव दिन में क्रमशः पुजा कर नवदुर्गा की कृपा प्राप्ति की जाती है। आइये नवदुर्गा के इन नौ रूपो की क्रमशः पुजा विधान के बारे में जानकारी प्राप्त करे-
1 शैलपुत्री- प्रथम नवरात्री को दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पुजा की जाती है। दुर्गा के इस रूप का महत्व अधिक है। इस दिन उपासक अपने मन को मुलाधार चक्र में स्थित करते है। फिर इस वंदना मंत्र का 108 बार जाप करने से शैलपुत्री की कृपा प्राप्त होती है।
 मंत्र- वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम ।
           वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
दुर्गा का प्रथम रूप पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कही जाती है। इनकी साधना कर साधक मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है।
2 ब्रह्मचारिणी- द्वितीय नवरात्री को माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पुजा की जाती है। इस दिन साधक को अपना मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करना चाहिए। जिससे इन्हे अनंत फल की प्राप्ति होती है। इस दिन साधक को निम्न वंदना मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
        वंदना मंत्र-
                     दधाना करपदमाभ्यामक्षमाला कमण्डलु।
                     देवी प्रसीदमयि ब्रह्मचारिण्यनुतमा।।
दुर्गा के इस रूप ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया था। इसीलिए इन्हे तपश्चारिणी भी कहा जााता है। इनके कर कमलो में अक्षमाला एवं कमंडल रहता है।
3 श्री चंद्रघंटा- तृतीय नवरात्र के दिन माता के चंद्रघंटा स्वरूप की पुजा की जाती है। माता चंद्रघंटा की पुजा करने से समस्त सांसारिष्ठ कष्टो से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन साधक को निम्न मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
                    वंदना मंत्र-
                             पिण्डजप्रवरारूढा़ चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
                             प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचन्द्र होने से इन्हे चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। मणिपुर चक्र इनकी साधना से जाग्रत होकर अहंकार का नाश होता है एवं निरोगता प्रदान कर ऐश्वर्यदायक बनती है।
4 श्री कूष्मांडा देवी- नवरात्र के चतुर्थ दिन माता के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक को मन अनाहत चक्र में स्थित करने से मनुष्य त्रिविध तापो से मुक्त होता है। इस दिन साधक को निम्न वंदना मंत्र का जाप 108 बार अवश्य करना चाहिए।
                  वंदना मंत्र-
                             सूरासम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च ।
                            दधानां हस्त पदमाभ्यां कुष्मांडा शुभदाळस्तु में।।
माता के इस रूप के उदर से ब्रह्मण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हे कूष्मांडा कहा जाता है। मां कूष्मांडा अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखकर सुख संपति प्रदान करती है।
5 स्कंद माता- नवरात्र के पांचवे दिन स्कंद माता की पूजा की जाती है। इनकी पूजा से विशुद्ध चक के जाग्रत होने पर प्राप्त होने वाली सिद्धियाँ साधक को स्वत ही मिल जाती है। इस दिन साधक को निम्न मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
                 वंदना मंत्र-
                          सिंहासनागता नित्यं पदमाश्रितकरद्वयां।
                          शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।
श्री स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हे स्कंदमाता कहा जाता है। श्री स्कंद माता सिंहासन पर विराजमान वं कमल पुष्प् से सुशोभित है। इसकी पुजा सदा शुभ रहती है एवं साधक का कल्याण करती है।
6 श्री कात्यायनी- नवरात्र के छठे दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की पुजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। इस दिन साधक को निम्न मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
                   वंदना मंत्र-
                            चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।
                            कात्यायनी शुभं दद्यादेवि दानवघातिनी।।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया। इसलिए इन्हे कात्यायनी कहा जाती है। इनकी पुजा करने से श्रेष्ठ वर एवं सुख संपति की प्राप्ति होती है।
7 कालरात्रि- सातवे नवरात्र को माता के कालरात्रि स्वरूप की पुजा की जाती है। इनकी पुजा करके सहस्त्रार चक्र के जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धिया जातक को प्राप्त होती है। इस दिन निम्न वंदना मंत्र का 108 बार जाप करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
                  वंदना मंत्र-
                           एकवेणी जपाकर्ण पूरानग्ना खरास्थिता।
                          लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी।।
                          वामपादोल्ल सल्लोहलताकष्टक भूषणा।
                          वर्धनमुर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
काल का नाश करने के कारण इन्हे कालरात्रि कहा जाता है। इनकी उपासना से साणक के समस्त दुःखो का नाश हो जाता है।
8 महागौरी- नवरात्र के आठवे दिन माता के महागौरी स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। इस दिन निम्न मंत्र का 108 बार जाप कर माता को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए।
                  वंदना मंत्र-
                          श्वेत वृषे समारूढा श्वेताम्बर धरा शुचिः।
                          महागौरी शुभं दद्यान्त्र महादेव प्रमोददा।।
माता के इस स्वरूप का वर्ण अत्यंत गौर है। इसीलिए इन्हे महागौरी कहा जाता है। इनकी उपासना से साधक के असंभव कार्य भी संभव हो जाते है।
9 सिद्धिदात्री- नवरात्र के अंतिम नवे दिन माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। इस दिन निम्न मंत्र का 108 बार जाप करने से साधक को समस्त प्रकार की सिद्धिया प्राप्त हो जाती है। समस्त सिद्धियो को देने वाली होने से इन्हे सिद्धिदात्री कहा जाता है।
                   वंदना मंत्र-
                            सिद्धगंधर्वयक्षदौर सुरैरमरेरवि।
                            सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
इस स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र की समाप्ति होती है। शारदीय नवरात्र के इस दिन रामनवमी एवं दसवे दिन को विजयादशमी के रूप में मनाकर असत्य पर सत्य , अधर्म पर धर्म एवं बुराईयों पर अच्छाईयों की विजय के रूप में मनाया जाता है।                        
                                                                   परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
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