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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

कैसे हुआ माँ दुर्गा का प्राकट्य


         
 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
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 मार्कंडेय  पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म   में प्रजापति दक्ष की कन्या सती के रूप में उत्पन्न हुई थी। सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ था। शास्त्रों के अनुसार दक्ष भगवान शिव से प्रसन्न नही थे। एक बार दक्ष ने अपने यहां एक बहुत बडे यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में प्रजापति दक्ष ने सभी देवताओं को आमंत्रित किया परंतु भगवान शिव को आमंत्रण नही भेजा। माता सती अपने पिता का यज्ञ देखने की बहुत इच्छुक थी। इसलिए सती के अनुरोध पर भगवान शंकर ने सती को अपने पिता के घर जाकर देखने की अनुमति दे दी।
      जब माता सती अपने पिता दक्ष के घर पहुंची तो माता सती ने महसुस किया की उसे कोई भी आदर और प्रेमभाव से नही बुला रहा है। अपने पति भगवान शंकर का भी तिरस्कार किया जा रहा है। जब स्वयं अपने पिता दक्ष के मुंह से भगवान शंकर के लिए अपमान जनक शब्द कहे तो सती को बहुत क्रोध आया। उन्हे अपने       पति भगवान शंकर का अपमान सहन नही हुआ। इसी कारण उन्होने यज्ञ में कुदकर अपने आप को भस्म कर डाला। इस  के कुछ काल पश्चात दुर्गम नाम का अत्याचारी दैत्य ने  ब्रह्माजी की कठोर तपस्या कर उन्हे प्रसन्न कर दिया। जब ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर दुर्गम से इच्छित वर मांगने को कहा तो उसने मनचाहा वर प्राप्त कर लिया।
    दुर्गम ने इस मनचाहे वरदान के बल पर चारो वेदो को छुपा दिया। इसके पश्चात वह लोगो पर अत्याचार करने लगा। ऋषि-मुनियों के हवनादि कृत्यो में भी बाधाएं डालने लगा। इससे धार्मिक एवं याज्ञिक   क्रियाएं कमजोर होने लगीै। जिससे देवगणो को भी चिंता होने लगी। कई वर्षो तक ऐसा चलते रहने से अकाल पडने लगा। जल की धाराएं सुखने लगी तो कुछ धाराओं के जल को इसने अपने आसुरी शक्तियों के प्रभाव से सुखा दिया। इससे दुःखित होकर देवता और ऋर्षि मुनि एकत्रित होकर ब्रह्माजी के पास गए। एवं ब्रह्माजी से इन परेशानियो का अंत करने की प्रार्थना की। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि मैने ही दुर्गम को वरदान दिया है इसलिए मैं तो विवश हूँ। इसलिए आप सभी आद्या शक्ति स्वरूपा भगवती जी के पास जाओं। वही तुम्हे इस कष्ट से मुक्ति दिला सकती है। इस पर सभी देवगण और ऋर्षिमुनि भगवती के पास आकर अपने दुःखो का निवारण करने की प्रार्थना की। माता भगवती इनकी बातों को सुनकर करूणा से भर आई। मुनियो के दुःख से संतप्त होकर माता की आंखो से अश्रु जल की हजारो धाराए बहने लगी। जिससे नदियो और समुद्र में अथाह जल भर गया। उस जल से पृथ्वी के सभी प्राणी तृप्त हो गए। देवी भगवती ने सभी के लिए उचित भोजन की व्यवस्था की। भगवती ने शत नैत्रो से ऋर्षि मुनियो को देखा था। इसलिए वे शताक्षी भी कहलाई। ऋर्षि मुनियो ने भगवती से अनुरोध किया कि जिस प्रकार से माता आपने शुम्भ-निशुम्भ, चण्ड-मुण्ड, रक्तबीज का वध करके हमे संकट से बचाया था। उसी प्रकार आप दुर्गम असुर का वध करके हमारी रक्षा करें। तब भगवती ने कहा कि आप सभी निश्चिंत रहै। मैं आप सभी की रक्षा करूंगी एवं आपका कल्याण करूंगी। इस प्रकार के आश्वासन से सभी अपने अपने लोको को लौटकर आंनद से रहने लगे। सर्वत्र शांति एवं निर्भयता को देखकर दुर्गम को घोर आश्चर्य हुआ। जब दुर्गम ने इसका पता लगाया तो उसे ज्ञात हुआ कि यह सब भगवती के कारण हुआ है। इस पर उसने तत्काल अपनी विशाल सेना को एकत्रित कर देवलोक पर आक्रमण कर दिया।
       देवी भगवती ने देवलोक और समस्त सृष्टि को बचाने के लिए दुर्गमासुर से युद्ध करने लगी। उसी समय तेजबल से युक्त दस देवियां देवी के शरीर से निकली एवं असंख्य मात्रिकाये भी प्रकट हो गयी। ये सभी शक्तियां चमकवान एवं तेजबल से युक्त दिखाई दे रही थी जिन्होने देखते ही देखते दुर्गमासुर की विशाल सेना का नाश कर डाला। इसके बाद देवी ने अपने तीक्ष्ण नोंक वाले त्रिशुल से दुर्गमासुर का वध कर दिया। देवी भगवती ने महादैत्य दुर्गमासुर का वध किया। इसी कारण से वह दुर्गा रूप में पुजी जाने लगी। इसके पश्चात वेदों का उद्धार करके देवताओं को लौटा दिया।
     ऋर्षि मुनियों और देवताओं के स्मरण करने से देवी अयोनिजारूप में शक्ति प्रकट हुई। वे अपने हाथों में बाण कमल,पुष्प,शाक-मूल धारण किए हुए थी। इसी शाक-मूल से उन्होने संसार का भरण पोषण किया। इसीलिए इनका एक नाम शाकंभरी भी पडा। देवी भागवत के अनुसार जिससे ऐश्वर्य और पराक्रम की प्राप्ति होती है, वही शक्ति है। कहा भी है-
                            ऐश्वर्य च या शक्ति पराक्रम एव च।
                            तत्स्वरूपा तयोर्दात्री सा शक्ति प्रकीर्तिता।।
इस प्रकार देवी शक्ति अर्थात दुर्गा का प्राकट्य हुआ।
                                                                   परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
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