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मंगलवार, 23 जुलाई 2013

गण्डमूल नक्षत्र


अष्विनी, आष्लेशा, मघा, ज्येश्ठा, मूल व रेवती ये 6 नक्षत्र सम्पूर्ण मान के गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं। इनमेें जन्म होने पर अषुभ माना गया है। किस नक्षत्र के किस चरण में जन्म होने पर अषुभ फल किस रूप में प्राप्त होता हैं। इसकी जानकारी प्रस्तुत हैंः-
1 अष्विनी:- अष्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है। इसके प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक के पिता को कश्ट की सम्भावना रहती है। जन्म के पष्चात् पिता को कुछ न कुछ चिन्ता अवष्य रहती है।

       द्वितीय चरण में जन्म होने पर सुख की प्राप्ति होती है। जातक को गण्डमूल दोश का प्रभाव नगण्य रहता है।
      तृतीय चरण में जन्म होने पर जातक को राज्य स्तर पर अच्छे पद की प्राप्ति होती है। जातक का जीवन सुखमय व्यतीत होता है।

       चतुर्थ चरण में जन्म होने पर जातक को राजकीय मान-सम्मान की प्राप्ति होती रहती है। जीवन समृद्ध रहता है।

         अर्थात् अष्विनी के प्रथम चरण में उत्पन्न जातक को गण्ड का प्रभाव अधिक रहता है। विषेशतया अष्विनी नक्षत्र प्रारम्भ के अर्थात् प्रथम चरण के प्रथम 48 मिनिट का समय विषेश कश्टदायक माना गया है। अष्विनी नक्षत्र यदि रविवार के दिन पड रहा हो तो गण्ड देाश कम हो जाता है।
2 आष्लेशा:- आष्लेशा नक्षत्र में उत्पन्न जातक अपनी सास के लिये कश्टदायक होता है, विषेश रूप से जब प्रथम चरण में जन्म नहीं हो। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक मानसिक रूप से कमजोर रहते है। इनको व्यावहारिक ज्ञान का अभाव होता है। यदि चन्द्रमा पर पापग्रहों का प्रभाव हो तो पागलपन, उन्माद की सम्भावना बढ जाती है।

      आष्लेशा नक्षत्र के प्रथम चरण में उत्पन्न जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न होता हैं। जीवन में धन सम्बन्धी समस्या कम ही रहती है।
      द्वितीय चरण में उत्पन्न जातक को आर्थिक हानि की सम्भावना अधिक रहती है। ऐसे जातकों को किसी प्रकार की जोखिम नहीं उठानी चाहिये। षेयर बाजार, लाॅटरी या अन्य में निवेष करते समय किसी विद्वान ज्योतिशी द्वारा परामर्ष अवष्य लें अन्यथा धन डूबने की आषंका बनती है।

      आष्लेशा के तृतीय चरण में उत्पन्न जातक माता के लिये कश्टकारी होता है। जातक के जन्म के पष्चात् माता का स्वास्थ्य कमजोर बना रहता है।

     चतुर्थ चरण में उत्पन्न जातक पिता के लिये कश्टकारक होते हैं। इसके कारण पिता को जीवन में अनेक परेषानियां उठानी पडती हैं।

      आष्लेशा नक्षत्र की औसत मान 60 घडी के अनुसार किस घडी में जन्म होने पर किस फल की सम्भावना अधिक रहती है, इसका विचार किया गया है। आष्लेशा नक्षत्र के प्रथम पांच घडी में जन्म होने पर उसे उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है। यहाँ एक घडी या घटी का मान 24 मिनट का समझें। छः से बारह घटी में जन्म होने पर पिता को कश्ट, तेरह से चैदह में मातृ कश्ट, पन्द्रह से सत्रह में जन्म होने पर धूर्त व लम्पट, अठटारह से इक्कीस घटी में जन्म होने पर बलवान, तीस से चालीस घटी में जन्म होने पर आत्महत्या करने वाला, इकतालिस से छियालिस घटी में जन्म होने पर बिना किसी प्रयोजन के भागदौड करने वाला, सैतालिस से पचपन में जन्म होने पर तपस्वी व अन्तिम पांच घटी में जन्म होने पर धननाषक होता है।

3 मघा:- मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक की माता को कश्ट रहता है। जन्म के पष्चात् माता का स्वास्थ्य कमजोर रहता हैं।

       द्वितीय चरण में जन्म होने पर पिता को कश्ट रहता है। जातक के कारण उसके पिता को हर समय कुछ न कुछ परेषानी बनी रहती है।

      तृतीय चरण में जन्म होने पर जातक का जीवन सुखमय व्यतीत होता है। जातक को जीवन में आवष्यकतानुसार धन प्राप्त होता रहता है।

      चतुर्थ चरण में जन्म होने पर जातक को धन लाभ की सम्भावना अच्छी रहती है। ऐसा जातक उच्च षिक्षा प्राप्त करता है। अपनी बुद्धि एवं विद्या के कारण मान-सम्मान भी प्राप्त होता है।

4 ज्येश्ठा:- ज्येश्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक के बडे भाई को कश्ट होता है।

       द्वितीय चरण में जन्म होने पर छोटे भाई को कश्ट होता है।

       ज्येश्ठ नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्म होने पर माता को एवं चतुर्थ चरण में जन्म होने पर स्वयं को कश्ट होता है।

        यदि रविवार या बुधवार के दिन पडने वाले ज्येश्ठा नक्षत्र को जन्म हो तो कश्ट की सम्भावना कम हो जाती है।

5 मूल:- मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक के पिता को कश्ट होता है। कन्या जातक को चैपाये जानवरों, किसी वाहन से दुर्घटना की सम्भावना रहती है।

         द्वितीय चरण में जातक की माता को कश्ट रहता है। कन्या का जन्म होने पर वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करती है।

       तृतीय चरण में जन्म होने पर जातक को आर्थिक रूप से परेषानी उठानी पडती है। कन्या का जन्म होने पर वह पिता के लिये कश्टकारी होती है।

        चतुर्थ चरण में जन्म होने पर जातक सुखी रहता है लेकिन कन्या का जन्म हो तो माता के लिये कश्टकारक हेाती है। चतुर्थ चरण में उत्पन्न जातक या जातिका अपने ससुर के लिये कश्टकारक होती हैं।
     
  मूल नक्षत्र में उत्पन्न बालक एवं कन्या का घटी अनुसार षुभाषुभ

प्रथम 5 घटी 5 घटी 8 घटी 8 घटी 2 घटी 8 घटी 2 घटी 10 घटी 6 घटी 6 घटी
राज्य प्राप्ति पितृ कश्ट धन हानि कामचोर घात राज्य लाभ अल्पायु सुख व्यर्थ भ्रमण अल्पायु

6  रेवती नक्षत्र:- रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर राज्य की तरफ से मान-सम्मान एवं धन-लाभ की प्राप्ति, द्वितीय चरण जन्म होने पर राजकीय सेवा , सुख-षांति, तृतीय चरण में जन्म होने पर धन लाभ, सुख-षांति एवं चतुर्थ चरण में जन्म होने पर अत्यन्त कश्टमय जीवन व्यतीत होता है।

    रेवती नक्षत्र यदि बुधवार या रविवार के दिन पडे एवं उस दिन जन्म हो तो गण्डदोश कम हो जाता है। गण्ड नक्षत्रों में जन्म होने पर कब दोश का प्रभाव रहता है। इसके बारे मे आप इस प्रकार जान सकते हैं:-

1 अष्विनी नक्षत्र रविवार के दिन पडे एवं ज्येश्ठा व रेवती षनिवार या बुधवार को पडे तो गण्डदोश कम होता है।

2 गण्ड नक्षत्र में चन्द्रमा का लग्नेष या षुभग्रह से सम्बन्ध हो।

3 गण्ड नक्षत्र होने पर चन्द्रमा किसी षुभ भाव में हो।

 गण्ड नक्षत्र की षांति सूतक समाप्त होने पर करें।
यदि उस समय सम्भव न हो तो पुनः जब नक्षत्र आये तब षांति करें।
इसके अतिरिक्त जब सम्भव हो तब षीघ्र ही षांति कर लेनी चाहिये अन्यथा विवाह से पूर्व षांति अवष्य करें।
       जिस गण्ड नक्षत्र में जन्म हो उसके स्वामी ग्रह के मंत्र का जाप करना गण्डदोश षांति में सहायक होता है। बुध एवं केतु के नक्षत्र में जन्म लेने पर गण्डदोश बनता है। इसलिये जीवन में गण्डमूल प्रभाव कम हो, इसके निवारणार्थ गणपति उपासना करनी चाहिये। जातक स्वयं बुध एवं केतु के मंत्रों का जाप कर सकता हैं। इसकी विषिश्ट षांति हेतु किसी कर्मकाण्डी से परामर्ष कर सकते हैं। ब्राह्मण भोजन, गाय का दान, वस्त्र दान आदि जन्म नक्षत्र वाले दिन अपनी सामथ्र्य अनुसार करने पर भी गण्ड प्रभाव कम होता हैं।
                                                                                     ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
                                                                                      परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
                                                                                     मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
                                                                                     जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766
                                 

 

1 टिप्पणी:

  1. Pandit Ji,

    DOB: 13 June 1981 , 9:30 p.m. at Delhi

    Male boy.

    Kirpya is jatak ki Shadi ke baare mein Vistar se battayein. Zindgi mei shaddi ke alawa sab kuchh theek hai.

    जवाब देंहटाएं