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सोमवार, 22 जुलाई 2013

श्रावण मास के सोमवार व्रत

श्रावण मास में भगवान शिवशंकर की पूजा अर्चना का बहुत अधिक महत्व है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए श्रावण मास में भक्त लोग उनका अनेकों प्रकार से पूजन अभिषेक करते हैं। भगवान भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होने वाले देव हैं। वह प्रसन्न होकर भक्तों की इच्छा पूर्ण करते हैं।

श्रावण मास में पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है। इसमें कोई शंका नही हैं। श्रावण मासारंभ से मासांत तक शिव के दर्शन हेतु श्रद्धालु शिवालय अवश्य जाते है। श्रद्धालुओं में भक्ति भावना भी इसी मास में विशेष जागृत होती हैं। इस शिव पूजन के साथ.साथ उनकी कथा अर्थात् शिव पुराण का भी श्रवण करना चहिए। कई श्रद्धालु इस मास में व्रत रखते है उन्हें व्रत के साथ.साथ अपनी वाणी पर संयमए ब्रह्मचर्य का पालनए सत्य वचन एवं अनैतिक कार्यो से दूर रहना चाहिए। धर्मएकर्म एवं दान के प्रति भी लोगों का विशेष रूझान देख जा सकता हैं।

बारह मासों का नामाकरण शुक्ल पूर्णिमा के दिन चंद्र की नक्षत्रगत स्थिति को ध्यान में रखकर किया गया है। श्रावण मास का नामकरण भी श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के कारण किया गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चंद्र है। वारों में में सोमवार भी इसी आधार पर शिवपूजन हेतु उपयुक्त माना है। श्रद्धालु पूरे मास नही ंतो सोमवार के दिन शिवालय इसी आस्था के कारण जाता है। सावन मास में रूद्राभिषेक करनाए रूद्राक्ष माला धारण करना एवं ओम नमः शिवाय का जाप करना अत्यन्त लाभकारी बनता है। इस मास में सोमवार व्रत तो अधिकांशतया करते है लेकिन अन्य वारों का व्रत भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

इस मास के रविवार का व्रत सूर्य व्रतए सोमवार का रोटकए मंगल का मंगलागौरीए बुधवार का बुध व्रतए गुरूवार का बृहण् व्रतए शुक्रवार का जींवतिका व्रत व शनिवार का व्रत हनुमान व्रत कहलाता है। इस प्रकार मास के प्रत्येक वार का व्रत अत्यन्त शुभदायक बनता है। इस मास में स्त्रियां तिथि एवं वारानुसार अलग.अलग व्रत रखती है एवं मासांत में रक्षाबंधन के दिन स्त्रियां अपने भाई को रक्षासुत्र बांधकर अपने जीवन की रक्षा हेतु वचन भी प्राप्त करती हैं। प्रत्येक तिथि के व्रत अनुसार तिथि विशेष के देवता का पूजन भी किया जाता है।
श्रावण मास के समस्त सोमवारों के दिन व्रत लेने से पूरे साल भर के सोमवार व्रत का पुण्य मिलता है। सोमवार के व्रत के दिन प्रातः काल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव पार्वती और नंदी बैल की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल, दूध, दही, शहद, घी,चीनी बनाकर भगवान का पूजन किया जाता है।

रात्रिकाल में घी और कपूर सहित धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।

सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य ऐवम पति पुत्र का सुख मिलता है। विद्यार्थियों को सोमवार का व्रत रखने से और शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती हैएपरीक्षा परिणाम अछा रहता है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार मिलने से मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी को श्रावण के सोमवार व्रत करने से धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है। प्रौढ़ तथा वृद्ध जातक अगर सोमवार का व्रत रख सकते हैं तो उन्हें इस लोक और परलोक में सुख सुविधा और आराम मिलता है। सोमवार के व्रत के दिन गंगाजल से स्नान करना और देवालय तथा शिव मंदिर में जल चढ़ाना आज भी उत्तर भारत में कांवड़ परंपरा का सूत्रपात करती हैं।
अविवाहित महिलाएं अनुकूल वर के लिए श्रावण के सोमवार का व्रत धारण कर सकती हैं। सुहागन महिला अपने पति एवं पुत्र की रक्षा के लिएए कुंवारी कन्या इच्छित वर प्राप्ति के लिए एवं अपने भाईए पिता की उन्नति के लिए पूरी श्रद्धा के साथ व्रत धारण करती हैं। श्रावण व्रत कुल वृद्धि के लिएए लक्ष्मी प्राप्ति के लिएए सम्मान के लिए भी किया जाता है।

इस व्रत में माता पार्वती और शिवजी का पूजन किया जाता है। शिवजी की पूजाण्अराधना में गंगाजल से स्नान और भस्म अर्पण का विशेष महत्त्व है। पूजा में धतूरे के फूलोंए बेलपत्रए धतूरे के फलए सफेद चन्दनए भस्म आदि का प्रयोग अनिवार्य है।

सुबह स्नान कर सफेद वस्त्र धारण कर काम क्रोध आदि का त्याग करें। सुगंधित श्वेत पुष्प लाकर भगवान का पूजन करें। नैवेद्य में अभिष्ट अन्न के बने हुए पदार्थ अर्पण करें।

निम्न मंत्र से संकल्प लें.
   मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्येश्

शिव का ध्यान मंत्र .
श्ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥
इन मंत्रो से पूजा व हवन करें। ऐसा करने से सम्पूर्ण कार्य सिद्ध होते हैं।

1 ऊँ नमः शिवाय
2  ओम नमो दशभुजाय त्रिनेत्राय पन्चवदनाय शूलिने। श्वेतवृषभारुढ़ाय सर्वाभरणभूषिताय। उमादेहार्धस्थाय नमस्ते सर्वमूर्तयेनमः 





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