1. चंद्र या सुर्य से राहु आठवे भाव मे हो ।
2. जन्मकुडंली मे जातक की योनी सर्प हो
3. चंद्र ग्रहण एवं सुर्य ग्रहण जन्ंमाक मे हो
4. कालसर्प योग मे राहु आठवे या बारहवे भाव मे हो
5. ग्रहण योग मे चंद्र ग्रहण होने पर चंद्र मन एवं कल्पना का कारण होकर जब जातक का मन किसी कार्य मे नही लगेगा तो पतन निश्चित है । सुर्य ग्रहण होने पर जातक को आत्मिक रूप् से परेशानी अवश्य रहती है
6 कालसर्प मे मंगल राहु का योग होने पर जातक कि तर्क शक्ति एवं निर्णय शक्ति प्रभावित होती है जातक मे आलस्य की भावना रहने से भी सुख प्राप्त नही हो पाता ।
7. कालसर्प मे बुध राहु के योग से जडत्व योग का निर्माण होता है । बुध कमजोर भी हो तो जातक कि बौद्विक शक्ति कमजोर होगी बुद्विमान लोग ही जीवन मे सफलता प्राप्त कर पाते है बुद्विहीनता के कारण जातक पैतृक प्रभाव सम आर्थिक रूप से मजबुत होगा तो भी राहु काल या बुध दशा मे अपनाा सर्वस्व गवाा देगा ।
8. कालसर्प मे वृह - राहु से चाडाल योग का लिर्माण होता है वृह ज्ञान एवं पुण्य का कारक है यदि जातक अपने शुभ प्रारब्ध के कारण सक्षम होगा तो अज्ञान एवं पाप प्रभाव के कारण शुभ प्रारब्ध को स्थिर नही रख पायेगा अर्थात अपने शुभ कर्माे मे कमी से जातक का विनाश निश्चित है
9. कालसर्प मे शुक्र राहु योग से अमोत्वक योग का निर्माण होता है । इसके कारण जो शुक्र एवं लक्ष्मी का कारक है पे्रम मे कमी एवं लक्ष्मी ,भार्या का अनादर सभी विफलताओ का मुल है
10. कालसर्प मे शनि राहु योग से नंदि योग का निर्माण होता है शनि राहु दोनो पृथक्कताजनक एवं विच्छेदकारी ग्रह है इसलिए इनका प्रभाव जातक को निराशा कि ओर ले जायेगा
11. कालसर्प योग की स्थिति मे केन्द्र त्रिकोण मे पाप ग्रह स्थित हो
12.कालसर्प योग वाले जातक का जन्म गंडमुल नक्षत्र मे हो
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