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रविवार, 21 जुलाई 2013

शिव को प्रिय है श्रावण मास


                                       (ज्योतिषाचार्य वागाराम परिहार)
         श्रावण मास में पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है। इसमें कोई शंका नही हैं। श्रावण मासारंभ से मासांत तक शिव के दर्शन हेतु श्रद्धालु शिवालय अवश्य जाते है। श्रद्धालुओं में भक्ति भावना भी इसी मास में विशेष जागृत होती हैं। इस शिव पूजन के साथ-साथ उनकी कथा अर्थात् शिव पुराण का भी श्रवण करना चहिए। कई श्रद्धालु इस मास में व्रत रखते है उन्हें व्रत के साथ-साथ अपनी वाणी पर संयम, ब्रह्मचर्य का पालन, सत्य वचन एवं अनैतिक कार्यो से दूर रहना चाहिए। धर्म,कर्म एवं दान के प्रति भी लोगों का विशेष रूझान देख जा सकता हैं।
           बारह मासों का नामाकरण शुक्ल पूर्णिमा के दिन चंद्र की नक्षत्रगत स्थिति को ध्यान में रखकर किया गया है। श्रावण मास का नामकरण भी श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के कारण किया गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चंद्र है। वारों में में सोमवार भी इसी आधार पर शिवपूजन हेतु उपयुक्त माना है। श्रद्धालु पूरे मास नही ंतो सोमवार के दिन शिवालय इसी आस्था के कारण जाता है। सावन मास में रूद्राभिषेक करना, रूद्राक्ष माला धारण करना एवं ओम नमः शिवाय का जाप करना अत्यन्त लाभकारी बनता है। इस मास में सोमवार व्रत तो अधिकांशतया करते है लेकिन अन्य वारों का व्रत भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस मास के रविवार का व्रत सूर्य व्रत, सोमवार का रोटक, मंगल का मंगलागौरी, बुधवार का बुध व्रत, गुरूवार का बृह. व्रत, शुक्रवार का जींवतिका व्रत व शनिवार का व्रत हनुमान व्रत कहलाता है। इस प्रकार मास के प्रत्येक वार का व्रत अत्यन्त शुभदायक बनता है। इस मास में स्त्रियां तिथि एवं वारानुसार अलग-अलग व्रत रखती है एवं मासांत में रक्षाबंधन के दिन स्त्रियां अपने भाई को रक्षासुत्र बांधकर अपने जीवन की रक्षा हेतु वचन भी प्राप्त करती हैं। प्रत्येक तिथि के व्रत अनुसार तिथि विशेष के देवता का पूजन भी किया जाता है।
           भगवान शंकर की विभिन्न फूलों से पूजन करने का भी भिन्न फल मिलता है। शिव पर कुछ पुष्प नहीं चढाने का निर्देश है-
           बन्धुकं केतकीं कुन्दं केसरं कुटजं जयाम्।
           शंकरे नार्पयेद्विद्वान्मालतीं युधिकामपि।।
       अर्थात् शंकर पर बन्धुकं, केतकी, कुन्द,मौलसरी, कोरैया, जयपर्ण, मालती तथा जुही ये पुष्प शंकर पर नहीं चढाए जाते हैं। बेलपत्र, शतपत्र एवं कमलपत्र से पूजन करने से लक्ष्मी कृपा, आक का पुष्प चढानें से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। धतुरे के पुष्प चढाने से विष भय एवं ज्वर भय मिटता है कहा भी है-
’’ आक धतुरा चबात फिरे, विष खात शिव तेरे भरोसे। ‘‘  जवा पुष्प से सावन मास में शिव का पूजन करने से शत्रु का नाश होता है तो गंगा जल से अभिषेक करना मोक्ष प्रदाता माना गया है। साधारण जल से अभिषेक भी वर्षा की प्राप्ति करवाता है। दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक करने से आत्मा को सुकुन मिलता है एवं संतान सुख प्राप्त होता है। तो लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने हेतु गन्ने के रस से या गुड मिश्रित जल अभिषेक करना शुभ माना जाता है। मधु या घी या दही से अभिषेक करने पर भी आर्थिक स्थिति मजबूत बनती है। रोगों से ग्रसित जातकों हेतु विशेष रूप से शुक्र से पीडित जातकों हेतु केवल दुध को अर्पित करना चाहिए। सूर्य एवं चंद्र कृत रोगों से मुक्ति हेतु शहद अर्पित करना विशेष विशेष लाभदायक है तो मंगल कृत रोगों से बचाव हेतु गुड मिले जल से अभिषेक करना चाहिए। बृहस्पति की कृपा हेतु हल्दी मिश्रित या दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक करना उतम लाभ की प्राप्ति करता है। आप भी जिस ग्रह की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। उसी ग्रह के अनुसार पूजन सावन मास में अवश्य करें। किसी कामना विशेष हेतु भी आप किसी विशेष प्रयोग को सावन मास में कर शिव कृपा प्राप्त कर सकते है।
         शिव रूद्री के पाठ का संकल्प लेकर शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर  ’’ ओम नमः शिवाय ‘‘ का जाप करना चाहिए। शिव रूद्री का एक पाठ करने से बाल ग्रहों की शांति होती है। तीन पाठ से उपद्रवों का शमन, पांच रूद्री पाठ से नवग्रह शांति, सात से अनिष्ट की आशंक, अनावश्यक भय नहीं रहता । नौ रूद्री पाठ करने से सर्व शांति एवं ग्यारह रूद्री पाठ से उच्चाधिकारियों के अनुकूल प्रभाव रहते हैं अर्थात् उनका वशीकरण होता है। नौ रूद्रों से एक महारूद्र तुल्य फल की प्राप्ति होती है। एक महारूद्र से जीवन में शांति, राज्य कृपा, लोगोें का मित्रवत व्यवहार , स्वास्थ्य रक्षा एवं चारों पुरूषार्थो की प्राप्ति होती है। तीन महारूद्र करने से आपकी कोई भी एक मनोकामना भगवान शिव अवश्य पूर्ण करते है। बार-बार कठिन परिश्रम करने के उपरान्त भी यदि प्रतियोगिता में सफलता नहीं मिल रहीं,सरकारी नौकरी की आस छुटती हुई दिखे तो पांच महारूद्र इस सावन मास में किसी विद्वान कर्मकाण्डी से कराए या स्वयं करे आपको शिव शंकर सफलता का द्वार अवश्य दिखाएगें। यदि आप किसी भी प्रकार की आधि-व्याधि से पीडित है तो सावन मास में नौ महारूद्र करना आपके ग्रह दोषों को शांत कर रोगों से मुक्ति की राह अवश्य दिखाएगें। शिव भक्तों एवं श्रद्धालुओं को अवश्य ही सावन मास का लाभ उठाना चाहिए। श्रावण मासांत  पूर्णिमा को उपनयन करना भी अति श्रेष्ठ माना गया है। उसी अवस्था में उपनयन का निषेध बताया गया है जब बृहस्पति या शुक्र अस्त हो। इसके अलावा पूर्णिमा में सभी वेदपाणी उपनयन कर सकते है।यदि आपकी भी कोई कामना है तो भोले के दरबार में आप भी सावन मास में दस्तक अवश्य दे। आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेगें।
                                ।। इति।।

                                                                                      परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
                                                                                      मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
                                                                                      जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766
                                 


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