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बुधवार, 24 जुलाई 2013

आपकी राषि, नक्षत्र और रोगोपचार



          भारतीय ज्योतिश में राषि एवं नक्षत्र का अपना विषेश महत्त्व है। किसी राषि एवं नक्षत्र के आधार पर रोगों का वर्णन प्राचीन आचार्यो ने किया है। बारह राषियों अर्थात् सत्ताईष नक्षत्रों को अंगों में स्थापित करने पर मानव षरीर की आकृति बनती है। नवग्रहों में चन्द्र सर्वाधिक गतिषील ग्रह है, इसलिये इसका मानव षरीर पर भी सर्वाधिक प्रभाव मान सकते हैं। हमारे षरीर का लगभग 70 प्रतिषत भाग जल है। ज्योतिश में जल का स्वामी चन्द्र को ही माना है, इसलिये भारतीय ज्योतिश में चन्द्र को महत्वपूर्ण स्थान देकर उसका जन्म समय जिस राषि या नक्षत्र में गोचर होता है, वही हमारी जन्मराषि या जन्म नक्षत्र माना जाता है। इस राषि या नक्षत्र के आधार पर जातक को कौन रोग हो सकता है एवं इस रोग से बचाव का सुलभ उपाय क्या होगा, इसकी जानकारी इस अध्याय में दी जा रही है। नक्षत्र के आराध्य अथवा उसके प्रतिनिधि वृक्ष की जडी धारण करके भी रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है:-
      1 अष्विनी:- वराह ने अष्विनी नक्ष्त्र का घुटने पर अधिकार माना है।  इसके पीडित होने पर बुखार भी   रहता है। यदि आपको घुटने से सम्बन्धित पीडा हो, बुखार आ रहा हो तो आप अपामार्ग की जड धारण करें। इससे आपको रोग की पीडा कम होगी।

      2   भरणी:- भरणी नक्षत्र का अधिकार सिर पर माना गया है। इसके पीडित होने पर पेचिष रोग होता        है। इस प्रकार की पीडा पर अगस्त्य की जड धारण करें।

3 कृतिका:- कृतिका नक्षत्र का अधिकार कमर पर है। इसके पीडित होने पर कब्ज एवं अपच की समस्या होती है। आपका जन्म नक्षत्र यदि कृतिका हो तथा कमर दर्द, कब्ज, अपच की षिकायत हो तो कपास की जड धारण करें।

4 रोहिणी:- रोहिणी नक्षत्र का अधिकार टांगों पर होता है। इसके पीडित होने पर सिरदर्द, प्रलाप, बवासीर जैसे रोग होते है। इस प्रकार की पीडा होने पर अपामार्ग या आंवले की जड धारण करें।

5 मृगषिरा:- मृगषिरा नक्षत्र का अधिकार आँखों पर है। इसके पीडित होने पर रक्त विकार, अपच,एलर्जी जैसे रोग होते है। ऐसी स्थिति में खैर की जड धारण करें।

6 आद्र्रा:- आद्र्रा नक्षत्र का अधिकार बालों पर है। इसके पीडित होने पर मंदाग्नि, वायु विकार तथा आकस्मिक रोग होते हैं। इससे प्रभावित जातकों को ष्यामा तुलसी या पीपल की जड धारण करनी चाहिये।

7 पुनर्वसु:- पुनर्वसु नक्षत्र का अधिकार अंगुलियों पर है। इसके पीडित होने पर हैंजा, सिरदर्द, यकृत रोग होते है। इन जातकों को आक की जड धारण करनी चाहिये। ष्वेतार्क जडी मिले तो सर्वोत्तम हैं।

8 पुश्य:- पुश्य नक्षत्र का अधिकार मुख पर है। स्वादहीनता, उन्माद, ज्वर इसके कारण होते है। इनसे पीडित जातकों को कुषा अथवा बिछुआ की जड धारण करनी चाहिये।

9 आष्लेशा:- आष्लेशा नक्षत्र का अधिकार नाखून पर है। इसके कारण रक्ताल्पता एवं चर्म रोग होते है। इनसे पीडित जातको को पटोल की जड धारण करनी चाहिये।

10 मघा:- मघा नक्षत्र का अधिकार वाणी पर है। वाणी सम्बन्धित दोश, दमा आदि होने पर जातक भृगराज या वट वृक्ष की जड धारण करें।

11 पूर्वाफाल्गुनी:- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का अधिकार गुप्तांग पर है। गुप्त रोग, आँतों में सूजन, कब्ज, षरीर दर्द होने पर कटेली की जड धारण करें।

12 उत्तराफाल्गुनी:- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का अधिकार गुदा, लिंग, गर्भाषय पर होता है। इसलिये इनसे सम्बन्धित रोग मधुमेह होने पर पटोल जड धारण करें।

13 हस्त:- हस्त नक्षत्र का अधिकार हाथ पर होता है। हाथ में पीडा होने या षरीर में जलदोश अर्थात् जल की कमी, अतिसार होने पर चमेली या जावित्री मूल धारण करें।

14 चित्रा:- चित्रा नक्षत्र का अधिकार माथे पर होता है। सिर सम्बन्धित पीडा, गुर्दे में विकार, दुर्घटना होने पर अनंतमूल या बेल धारण करें।

15 स्वाति:- स्वाति नक्षत्र का अधिकार दाँतों पर है, इसलिये दंत रोग, नेत्र पीडा तथा दीर्घकालीन रोग होने पर अर्जुन  मूल धारण करें।

16 विषाखा:- विषाखा नक्षत्र का अधिकार भुजा पर है। भुजा में विकार, कर्ण पीडा, एपेण्डिसाइटिस होने पर गुंजा मूल धारण करें।

17 अनुराधा नक्षत्र का अधिकार हृदय पर है। हृदय पीडा, नाक के रोग, षरीर दर्द होने पर नागकेषर की जड धारण करें।

18 ज्येश्ठा:- ज्येश्ठा नक्षत्र का अधिकार जीभ व दाँतों पर होता है। इसलिये इनसे सम्बन्धित पीडा होने पर अपामार्ग की जड धारण करें।

19 मूल:- मूल नक्षत्र का अधिकार पैर पर है। इसलिये पैरों में पीडा, टी.बी. होने पर मदार की जड धारण करें।

20 पूर्वाशाढा:- पूर्वाशाढा नक्षत्र का अधिकार जांघ, कूल्हों पर होता है। जाँघ एवं कूल्हों में पीडा,  कार्टिलेज की समस्या, पथरी रोग होने पर कपास की जड धारण करें।

21 उतराशाढा:-उतराशाढा नक्षत्र का अधिकार भी जाँघ एवं कूल्हो पर माना है। हड्डी में दर्द, फे्रक्चर होने, वमन आदि होने पर कपास या कटहल की जड धारण करें।

22 श्रवण:- श्रवण नक्षत्र का अधिकार कान पर होता है। इसलिये कर्ण रोग, स्वादहीनता होने पर अपामार्ग की जड धारण करें।

23 धनिश्ठा:- धनिश्ठा नक्षत्र का अधिकार कमर तथा रीढ की हड्डी पर होता है। कमर दर्द, गठिया आदि होने पर भृंगराज की जड धारण करें।

24 षतभिशा:- षतभिशा नक्षत्र का अधिकार ठोडी पर होता है। पित्ताधिक्य, गठिया रोग होने पर कलंब की जड धारण करें।

25 पूर्वाभाद्रपद:- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का अधिकार छाती, फेफडों पर होता हैं। ष्वास सम्बन्धी रोग होने पर आम की जड धारण करें।

26 उतराभाद्रपद:- उतराभाद्रपद नक्षत्र का अधिकार अस्थि पिंजर पर होता है। हांफने की समस्या होने पर पीपल की जड धारण करें।

27 रेवती:- रेवती नक्षत्र का अधिकार बगल पर होता है। बगल में फोडे-फुंसी या अन्य विकार होने पर महुवे की जड धारण करें।
          जब किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य पीडा हो तो आपको अपने जन्म नक्षत्र के प्रतिनिधि वृक्ष की जडी धारण करनी चाहिये। यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता नहीं है तो आपको किस प्रकार की स्वास्थ्य पीडा है तथा वह षरीर के किस अंग से सम्बन्धित है अथवा वह रोग किसके अन्तर्गत आ रहा है, उससे सम्बन्धित वृक्ष की जडी ऊपर बताये अनुसार धारण करें तो आपको अवष्य अनुकूल फल की प्राप्ति होगी।
      आपकी राषि के अनुसार जडी धारण करके भी रोग के प्रकोप को कम कर सकते हैं। आप अपनी राषि अपने नाम के प्रथम अक्षर से जान सकते हैं। इस आधार पर:-
मेश राषि वालों को पित्त विकार, खाज-खुजली, दुर्घटना, मूत्रकृच्छ की समस्या होती है। मेश राषि का स्वामी ग्रह मंगल है। इन्हें अनंतमूल की जड धारण करनी चाहिये।
व्ृाष्चिक राषि वालों को भी उपरोक्त रोगों की ही समस्या होती हैं। इन्हें भी अनंतमूल की जड धारण करनी चाहिये
व्ृाशभ एवं तुला राषि वालों को गुप्त रोग, धातु रोग, षोथ आदि होते हैं। यदि आपकी राषि वृशभ अथवा तुला हो तो आपको सरपोंखा की जड धारण करनी चाहिये।
मिथुन एवं कन्या राषि वालों को चर्म विकार, इंसुलिन की कमी, भ्रांति, स्मुति ह्नास, निमोनिया, त्रिदोश ज्वर होता है। इन्हें विधारा की जड धारण करनी चाहिये।
कर्क राषि वालों को सर्दी-जुकाम, जलोदर, निद्रा, टी.बी. आदि होते हैं। इन्हें खिरनी की जड धारण करनी चाहिये।
सिंह राषि वालों को उदर रोग, हृदय रोग, ज्वर, पित्त सम्बन्धित विकार होते हैं। इन्हें अर्क मूल धारण करनी चाहिये। बेल की जड भी धारण कर सकते हैं।
धनु एवं मीन राषि वालों को अस्थमा, एपेण्डिसाइटिस, यकृत रोग, स्थूलता आदि रोग होते हैं। इन्हें केले की जड धारण करनी चाहिये।
मकर एवं कुंभ राषि वालों को वायु विकार, आंत्र वक्रता, पक्षाघात, दुर्बलता आदि रोग होते हैं। इन्हें बिछुआ की जड धारण करनी चाहिये।
  चन्द्र का कारकत्व जल हैं। इसलिये चन्द्र निर्बल होने पर जल चिकित्सा लाभप्रद सिद्ध होती हैं। हमारे षरीर में लगभग 70 प्रतिषत जल होता है। इसलिये षरीर की अधिकांष क्रियाओं में जल की सहभागिता होती है। जल चिकित्सा से जो वास्तविक रोग है, उसका उपचार तो होता ही है इसके साथ अन्य अंगों की षुद्धि भी होती है। इस कारण षरीर में भविश्य में रोग होने की सम्भावना भी कम होती है। जल एक अच्छा विलायक है। इसमें विभिन्न तत्त्व एवं पदार्थ आसानी से घुल जाते हैं जिससे रोग का उपचार आसानी से हो जाता है। जल चिकित्सा में वाश्प् स्नान, वमन,एनीमा, गीली पट्टी, तैरना, उशाःपान एवं अनेक प्रकार की चिकित्सायें हैं। दैनिक क्रियाओं में भी हम जल का उपयोग करते रहते हैं। लेकिन जब चन्द्र कमजोर एवं पीडित होकर उसकी दषा आये तभी जल के अनुपात में षारीरिक असंतुलन बनता है। हमारे षरीर में स्थित गुर्दे जल तत्त्वों का षुद्धिकरण करते हैं। जल की अधिकता होने पर पसीने के रूप में जल बाहर निकलता है जिससे षरीर का तापमान कम हो जाता है। इसलिये जल सेवन अधिक करने पर जोर दिया जाता है ताकि षरीर स्वस्थ रहे अर्थात् चन्द्र की कमजोरी स्वास्थ्य में बाधक न बने। इस प्रकार हमारे लिये चन्द्र महत्त्वपूर्ण ग्रह बन जाता है।            
                                                                                     ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
                                                                                      परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
                                                                                      मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
                                                                                      जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766
                                  

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