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शनिवार, 20 जुलाई 2013

आखिर कैसे ज्ञात होता है राष्ट्रों का भविष्य


सम्पूर्ण भुमण्डल के बारे में भविष्य की जानकारी प्राप्त कराने वाली विद्या को मेदिनीय ज्योतिस कहते है। यह संहिता के अन्तर्गत आता है। ब्रह्यगुप्त, भट्टोत्पल, गर्ग, भास्कराचार्य, आर्यभट्ट, वराहमिहिर आदि विद्वोनो ने अपने ग्रन्थों में संहिता का वर्णन किया है। देश कि प्रभावी राशि के अनुसार ही पंचांगों में उस देश का भविष्य कथन होता है। हमारे देश की राशि कुछ विद्वान मकर मानते हैं तो कुछ कन्या। कुर्म चक्र में विश्व का जो भाग जिस नक्षत्र में पडे उसके अनुसार ही उस क्षेत्र की राशि तय की जाती हैं कूर्म चक्र में हमारा देश दक्षिण दिशा के कुक्षि नक्षत्रों में पडने से राशि कन्या मानी जाती हैं लेकिन हमारे देश की अधिकांश विशेषताएं मकर राशि स्वामी शनि के अनुकूल पडने से मकर राशि ही उपयुक्त हैं। राशि विभिन्नता की स्थिति में विभिन्न चक्रों एवं नामाक्षर से राशि निर्णय कर फलादेश करने में फल कथन सटीक रहता है। जैसे किसी व्यक्ति की कुण्डली के बाहर भाव उसके जीवन के विविध पक्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैसे ही किसी देश के विविध पक्षों का प्रभार भी कुण्डली के बाहर भावों में से प्रत्येक को दिया गया हैं। नीचे दी गई कुण्डली में भावों के प्रमुख प्रभार दिये गये हैं

विभिन्न क्षेत्रों का शुभाशुभ जानने हेतु आकाशीय सभा मे प्रतिवर्ष ग्रहो को पद दिए जाते है। इन पदो के स्वामी ग्रह का शुभ होना शभता का प्रतीक तो उनका अशुभ होना कार्य की अशुभता का प्रतीक है।

राजा- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जिस ग्रह का वार हो, उस ग्रह को उस वर्ष विशेष का राजा माना जाता है। वह ग्रह प्रधानमंत्री या राष्टपति की हैसियल से प्रभाव डालता है। शुभ ग्रह होने पर प्रजा मे शिष्टाचार, संतोष, कार्य व्यवसाय मे शुभता तथा अशुभ ग्रह होने पर भ्रष्टाचार, पाखण्ड, भुखमरी फैलती है।

मंत्री- मेष संक्रांति (सूर्य के मेष राशि मे प्रवेश ) के दिनो जो वार हो उसका स्वामी मंत्री होता है।

सस्येश- कर्क संक्रांति के दिन जो वार हो उसका स्वामी सस्येश होता है। इससे उस वर्ष की फसल का विचार किया जाता है।

मेघेश-सूय के आर्द्रा नक्षत्र मे प्रवेश (20 जुन के आस-पास) के समय जो वार हो वह मेघेष कहलाता है। यदि जलीय ग्रह आए तो वर्षा की अधिकता, सम से समान, निर्जन ग्रह से अल्प वृष्टि होती है। सूर्य के आर्द्रा मे प्रवेश कालीन समय कुण्ड़ली मे यदि केद्र मे जलीय ग्रह हो तो वर्षा अच्छी होती है। व निर्जल ग्रह से सुखा पडता हैं चन्द्र व शुक्र जलीय ग्रह तथा कर्क, मकर व मीन जलीय राशि है। वृष, धनु व कंुभ अर्धजल राशि हैं। सूर्य, मंगल व शनि निर्जल ग्रह, बुध व गुरू सम ग्रह हैं।

दुगेंश- सिंह सक्रांति के दिन वार का स्वामी दुगेंश होता है। जिससे देश की सुरक्षा का विचार करते है।

धनेश- कन्या सक्राति के दिन जो वार हो वह धनेश होता । इससे आर्थिक स्थिति का विचार करतेे है।

रसेश- तुला संकं्राति के दिन जो वार हो उसका स्वामी रसेश होता है एवं उस ग्रह के अनुसार रस सम्बंधी वस्तुओ जैसे गन्ना, गुड़ आदि का विचार करते है।

धान्येश- धनु संक्रंाति के दिन जो वार हो उसका स्वामी ग्रह धान्येश होता है। धान्येश से शीतकालीन फसलो का विचार करते है। वृषभ राशि में सूर्य प्रवेश कालिन कुण्डली मे यदि केन्द्र मे शुभ ग्रह अधिक हों  तो शीतकालीन फसल अच्छी होती है व पापग्रहो के होने पर फसल कम होती है।

नीरसेश- मकर संकंाति के दिन जो वार हो उसे निरसेश  कहते है। वार के स्वामी ग्रह से धातु, खनिज आदि की जानकारी प्राप्त करते है।

फलेश- मीन सेक्रंाति के दिन जो वार हो उसका अधिपति ग्रह-फलेश होता है। इससे फल-फूल, सब्जी आदि का विचार करते है।
           द्वादश भावों के विचारणीय विषय
कुण्डली में भावों के मुख्य प्रभार इंगित किये गये हैं। विस्तार से सभी भावों का कारकत्व इस प्रकार हैं
(1)प्रथम स्थान- देश की आरोग्यता,स्वास्थ्य,प्रजा और सामान्य जनता,देश की सामान्य स्थिति,देश का राज-काज और आंतरिक व्यवस्था, देश की साधारण स्थिति, राष्ट्र की उन्नति, देश के नेताओं की सफलता।
(2)द्वितीय स्थान- देश की साम्पतिक स्थिति, देश के बैंक, पैसे का लेन-देन, व्यापार, कारोबार, सरकारी जमा, रेवेन्यू, सरकारी वसूली औंर कर का विचार, अन्य भण्डार।
(3)तृतीय स्थान- रेल विभाग, सडक यातायात, डाक औंर तार विभाग, स्टाक औंर शेयर, देश के ग्रंथकार, लेखक वर्ग, साहित्य, समाचार पत्र तथा पत्रिकाएँ, फसल को हानि पहुँचाने वाले टिडडी, चुहे आदि।
 (4)चतुर्थ स्थान- खेती, फसल, मौसम, खनिज, सार्वजनिक भवन, भुमि सम्बन्धी बातें, लोक निर्माण विभाग, जहाजरानी, विरोधी दल।
(5)पंचम स्थान- सर्कस, थियेटर, सिनेमा, गायन-वादन आदि सिखाने वाले विधालय, अन्य विधालय, विधाथी वर्ग, शिक्षा विभाग, देश के बालक, जन्म-मरण का हिसाब, शेयर मार्केट का आकलन।
(6)षष्ठ स्थान- अस्पताल, बीमारियाँ, छुत की बीमारी, जनता का स्वास्थ्य, सेना के शस्त्र, जल सेना, जंगी जहाज, साधारण मजदूर वर्ग, श्रम करने वाले लोग, राष्ट्रीय सेवा, कर्ज, विदेशी सहायता।
(7)सप्तम भाव- देश का पर-राष्ट्रीय सम्बन्ध, व्यापार, यु़़द्ध, शांति-भंग, सुलह, परराष्ट्रीय विवाद, विवाह औंर तलाक, राजनैतिक एवं पुलिस कार्रवाई, सामाजिक समरसता।
(8)अष्टम भाव- देश में होने वाली मृत्युदर, आत्महत्या, उच्च परिषदें, खतरा, आपदायें, कठिनाइयाँ, कर्ज,से मुक्ति।
(9)नवम भाव- न्याय की अदालतें, न्यायाधीश, धर्म उपदेशक, धर्म सम्बन्धी व्यवहार, विज्ञान, वैज्ञानिक शोध, समुद्री व्यापार, व्यापारिक शक्ति, देश की बौद्धिक प्रगति, हवाई यात्रा, विदेशी व्यापार, मंत्री, मंत्रिमंडल।
(10)दशम भाव- देश की सरकार, सतारूढ पक्ष, अधिकारी, राजपुरूष, मध्यम नेता, मान प्राप्त, देश की प्रतिष्ठा, संस्थायें, प्रजा, देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रेवेन्यू, बैंक की स्थिति।
(11)एकादश भाव- संसद, विधान सभायें, बहस, कायदे-कानून, मित्रता, देश, सहायता।
(12 द्वादश भाव- जेल, अस्पताल, आश्रम, लोक उपयोगी संस्थायें, अपराधी, टैक्स की चोरी करने वाले, सरकार के विरूद्ध काम करने वाले, सरकार से कर्ज लेना, कर्ज की अदायगी।
    ग्रहो के प्रभाव क्षेत्र
 स्ंहिता या मेदिनी ज्योतिस मे भी आगामी घटनाओ के विश्लेषण की पद्धति लगभग वही है जो व्यक्तियो के विश्लेषण की पद्धति लगभग वही है जो व्यक्तियां के फल-कथन में प्रयुक्त होती है। नये वर्ष का प्रारम्भ मेष-संक्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रांति (सूर्य के मेष राशि में प्रवेश) तथा चैत्र शुल्क प्रतिपदा से मानकर दोनों की कुण्डली बनाई जाती है तथा उससे पूरे वर्ष की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है। जिस देश के बारे में विचार हो उसकी राजधानी  अक्षांश, रेखांश तथा स्थानीय मध्यमान समय के अनुसार कुण्डली बनाई जाती है। घटनाओं के सटीक अनुमान के लिये सूर्य की कर्क तुला तथा मकर संक्रांति के समय की भी कूण्डलीयाँ बनाई जाती है। घटनाओं का अनुमान ग्रहों के गोचर से भी लगाया जाता है। जैसे भारत की राशि मकर है, तो लग्न में मकर राशि को स्थिति कर, उस समय की ग्रह-स्थिति को कुण्डली में दिखा कर भविष्य का आकलन किया जाता हैं।
यहाँ एक अन्तर है। मेदिनी ज्योतिष में राहु-केतु के प्रभाव का अध्ययन नहीं  किया जाता। इन दोनोेेेेेेें ग्रहों के स्थान पर यूरेनस तथा नेपच्यून के प्रभाव का पश्चिमी और भारत के ज्योतिस-विज्ञानी अध्ययन करते है। उक्त दोनों ग्रह पृथ्वी से काफी हैं तथा उनकी गति भी अत्यंत मंद है, अतः युरेसन (हर्शल)और नेपच्युन के स्थान पर संहिता (मेदिनी ज्योतिस) मे भी राहु-केतु के प्रभाव को ही ध्यान मे रखा जाना चाहिये। भास्करार्चाय, वरामिहिर, ब्रहागुप्त जैसे विद्वानो ेन राहु-केतु को ही मेदिनी ज्योतिस मे प्रभावोत्पादक माना है। फिर भी आधुनिक पद्धति के अनुसार सूर्य, चद्र आदि सात ग्रहों तथा हर्शल और नेपच्युन के कारकत्वों का उल्लेख यहाँ समीचीन होगा ।
सूर्य- देश के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री, अधिकारी, मंत्रीमण्डल, सत्तासीन, तथा विपक्षी दलों के अध्यक्ष, न्यायाधीश ।
चन्द्र- प्रजा, जन सामान्य और देश की स्त्रियाँ ।
मंगल- सेनाध्यक्ष, सभी सेनायंे, डाक्टर, सर्जन, युद्ध, युद्ध के प्रभारी अधिकारी, मारपीट, अग्रि प्रकोप और असंतोष ।
बुध- लेखक, देश के ग्रंथकार, ग्रथप्रकाशक, समाचार पत्रों के सम्पादक, राजदुत, बौद्धिक परिश्रम करने वाले और व्यापार ।
गुरू- वकील, न्यायाधीश, मजहब से जुडे लोग, बैंकों के प्रमुख, उद्योगपति, बडे व्यापारी ।
                                                                                       ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
                                                                                      परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
                                                                                      मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई                                    
                                                                                जिला- सिरोही (राज.) 307512            
             मो. 9001742766


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