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रविवार, 12 अगस्त 2012

रोग निवारण में रत्नों का योगदान


रोग निवारण में रत्नों का योगदान---

औषधि मणि मन्त्राणां ग्रह नक्षत्र तारिका                                                                                             भाग्यकाले भवेत्सीद्वि अभाग्यं निष्फलं भवेत।। 
                                                                                                     
अर्थात औषधि रत्न एंव मंत्र चिकित्सा अनुकुल भाग्य होने पर अच्छा फल देती हैं लेकिन प्रतिकुल भाग्य होने पर इसका प्रभाव नहीं रहता। इसे दूसरे शब्दों में कहा जाये तो अनुकुल भाग्य होने पर औषधि रत्न एंव मंत्र पूर्णयता फल देने में समर्थ होते हैं लेकिन प्रतिकुल भाग्य होने पर औषधि रत्न एंव मंत्र सर्वप्रथम ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को नष्ट करने के कारण उनका फल स्पष्ट रुप से दिख नहीं पाता लेकिन फल अवश्य प्राप्त होता हैं। ग्रह प्रतिकूल होने पर औषधियां भी अनूकूल फल प्रदान नहीं कर पाती क्योंकि ग्रह औषधियों के गुण को भी नष्ट करने की सामथ्र्य रखते है। औषधि चिकित्सा प्रभावी न होने पर रत्न चिकित्सा ही कारगर मानी गई हैं । चरक संहिता में भी रोग निदान हेतु रत्नो का प्रयोग करने का निर्देंश हैं । 

आइये कौन-सा रत्न किस रोग के उपचार में प्रभावी है---
              
(1)माणिक्यः-माणिक्य को सूर्य ग्रह का रत्न माना जाता है। सूर्य को हृदय का कारक ग्रह माना जाता है इसलिये हृदय रोग से पीडित व्यक्तियों हेतु माणिक्य रत्न परम उपयोगी हैं। रक्त संचरण सम्बंधी रोग नैत्र रोगो अर्थात रतौंधी आत्मविश्वास ज्वर आदि रोगो के उपचार में परम उपयोगी हें।                                                                                         (2)मोतीः-मोती को चंद्र रत्न माना जाता हैं चंद्र को मन का कारक माना जाता है। इसलिये मानसिक तनाव पागलपन उच्च रक्तचाप निद्रां क्षय रोग जीर्णता खाँसी आदि रोगों के उपचार हेतु मोती धारण करना ही समझदारी हैं।                                                                                                                                                  (3)मूँगाः-मूँगा को मंगल का रत्न माना जाता है। आलस्य तेज ज्वर अग्नि मंदता रक्तस्त्राव चेचक फोडे-फुंसियाँ अग्नि दुर्घटना अण्डवृ़़़द्वि अण्डकोष में पानी उतरना आदि रोगो में मूँगा धारण करना चाहिए।                            (4)पन्नाः-पन्ना को बुध का रत्न माना जाता हैं इसलिये मानसिक रोग बु़द्धि ज्वर त्वचा रोग सफेद दाग-धब्बे बदहजमी कुष्ठ रोग बावासीर स्नासुविकार हकलाहट आंत्र रोग त्रिदोषज रोगो में पन्ना धारण करना चाहिये ।  
(5)पुखराजः-पुखराज को बृहस्पति का रत्न माना जाता हैं। इसलिये पित्त विकार तिल्ली वृद्वि एपेन्डिसाइटिस यकृत रोग आंत्र विकार चक्कर आना हरनिया कर्ण विहार गर्भपात एसिडिटी आदि में पुखराज धारण करने से लाभ प्राप्त होता हैं। 
(6)हीराः- हीरा को शुक्र का रत्न माना जाता हैं। सभी प्रकार के मूत्र संस्थान सम्बंधी रतिक्रिया सम्बंधी रोग मधुमेह शोथ विकार शुक्राणुओं एवं अण्डाणुओं की कमी प्रमेह आदि रोगो में हीरा धारण करने से लाभ होता हैं। 
(7)नीलमः-नीलम को शनि का रत्न माना जाता है। इसलिये लकवा गठिया यकृत वृ़़द्वि जोडों के रोग मानसिक असंतुलन दमा कब्ज किसी भी प्रकार का वायु विकार हिचकी आदि में नीलम धारण करना लाभप्रद हैं। 
(8)गोमेदः-गोमेद को राहु का रत्न माना जाता है। इसलिये मिर्गी चेचक भुत-प्रेत बाधा मिचली क्षयरोग हिचकी वमन पागलपन भ्रमरोग भय विष विकार कुष्ट रोग तत्रं बाधा एंव किसी भी प्रकार की आक्समिक व्याधि होने पर गोमेद धारण करना चाहिये । 
(9)लहसूनियाः-लहसूनिया केतु का रत्न माना जाता हैं। इसलिये खुजली खसरा कुष्ट रोग रक्त विकार आदि में लहसुनिया धारण करना उत्तम रहता हैं। पथरी कब्जियत नींद न आना बुरे-बुरे स्वप्न एंव विचार नींद न आने पर भी धारण करें। इसके अतिरिक्त हकलाहट हेतु हरि तुरमली स्वप्नदोष हेतु ओपल मनःस्ताप हेतु चन्द्रकांत मणि श्वेत तुरमली पाण्डु उदर रोग क्षय प्रमेह वीर्य विकार किडनी स्टोन गुर्दे सम्बंधित किसी भी प्रकार की परेशानी हेतु पित्तोनिया पित्त विकार हेतु क्रिसोप्रेज वृक्क मूत्राशय नजर दोष जोडो का दर्द व शोथ हेतु संगें यशब धारण, हृदय कम्पन, तंत्र ्िरकया व नजर दोस हेतु, मानसिक रोगों व अपस्मार मे जद्द, पित्त रोगो मे मरगज, रात्रि ज्वर होने पर शताश्यक धारण करना चाहिए। रत्न धारण करते समय वह अवश्य ध्यान रखे कि रत्न किसी भी प्रकार के दोष से युक्त न हो। षष्ठेश, अष्ठमेश,व द्वादशेश होने पर सम्बंधित रत्न धारण नहीं करे। इसके अलावा द्वितीयेश, तृतीयेश सप्तमेश व एकादशेश का रत्न भी धारण करते समय विशेष सावधानी बरते। जहा तक हो सके संम्बधित ग्रह के मंत्र से रत्न को पूरित अवश्य करे...

                                         

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