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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयोगी मंत्र

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       हमारे धर्मशास्त्रो मे स्वास्थ्य रक्षा हेतु विशष सिद्धांत एवं मंत्र दिए गए है जिनका नियमानुसार पालन एवं जाप करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है इन मंत्रो का जाप करने से हमे आत्मिक मानसिक एवं शारीरिक शांति प्राप्त होती है मंत्र जाप का प्रारंभ आप किसी शुक्ल पक्ष के अपनी राशि के अनुसार अनुकुल दिवस को प्रारंभ करे यहां पर विभिन्न  रोगो के निवारण के लिए कुछ उपयोगी मंत्र दिए जा रहे है इन मंत्रो को आप पूरक रूप मे प्रयोग कर अवश्य लाभ प्राप्त कर सकते है

1. यत्सर्वं प्रकाशयति तेन सर्वान् प्राणान् रश्मिषु संनिधते।
    अर्थात् जब आदित्रू प्रकाशमान होता है, तब वह समस्त प्राणों को अपनी किरणों में रखता है। इसमें भी एक रहस्य है। वह यह कि प्रातःकाल की सूर्य-किरणों में अस्वस्थता का नाश करने की जो अदभुत शक्ति है, वह मध्यान्ह तथा सायाह्न की सूर्य-रश्मियों में नहीं है।
           उद्यन्नादित्य रश्मिभिः शीष्र्णो रोगमनीनशः0।
     वेदभगवान् कहते हैं कि प्रातःकाल की आदित्य-किरणों से अनेक व्याधियों का नाश होता है। सूर्य-रश्मियों में विष दूर करने की भी शक्ति है। स्वस्थ शरीर से ही धर्म,अर्थ,काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है, अन्यथा नहीं ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’। एतदर्थ आरोग्य के इच्छुक साधकों को भगवान् सूर्य की शरण में रहना अत्यावश्यक है। सूर्य की किरणों में व्याप्त प्राणों को पोषण प्रदान करने वाली महती शक्ति का निम्नलिखित सहज साधन से आकर्षण करके साधक स्वस्थ,नीरोग और दीर्घजीवी होकर अन्त में दिव्य प्रकाश को प्राप्त करके परमपद को भी प्राप्त कर सकता है। आलस्य या अविश्वासवश इस साधन को न करना एक प्रकार से आत्मान्नति से विमुख रहना है।
     साधन- प्रातःकाल संध्या-वन्दनादि से निवृत होकर प्रथम प्रहर में, जब तक सूर्य की धूप विशेष तेज न हो, तब तक एकान्त में केवल एक वस्त्र पहनकर और मस्तक, हृदय,उदर आदि प्रायः सभी अंग खुले रखकर पूर्वाभिमुख भगवान् सूर्य के प्रकाश में खडा हो जाय। तदनन्तर हाथ-जोड, नेत्र बंद करके जगच्चक्ष्ज्ञु भगवान् भास्कर का ध्यान इस प्रकार करे-
            पùासनः पùकरो द्विबाहुः पùùुतिः सप्ततुरग्ङवाहनः।
            दिवाकरो लोकगुरूः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः।।    
यदि किसी साधक को नेत्रमान्द्यादि दोष हो तो वह ध्यान के बाद नेत्रोपनिषद् का पाठ भी कर ले। तदनन्तर वाल्मीकिरामायणोक्त आर्ष आदित्यहृदय का पाठ तथा ‘ ओम ह्नीं हंसः0’ इस बीजसमन्वित मंत्र का कम-से-कम पाँच माला जप करके मन में दृढ धारणा करे कि जो सूर्य-किरणे हमारे शरीर पर पड रही हैं और जो हमारे चारों ओर फैल रही हैं, उन सब में रहनेवाली आरोग्यदा प्राणशक्ति मेरे शरीर के रोम-रोम में प्रवेश कर रही है। नित्य नियमपूर्वक दस मिनट से बीस मिनट तक इस प्रकार करे। ऐसा करने से आपके अधिकांश रोगो का शमन हो जाता है
 2.             सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्।
              शान्तिदं सर्वरिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम्।।
हरिनाम संकीर्तन सभी रोगों का उपशमन करने वाला, सभी उपद्रवों का नाश करनेवाला और समस्त अरिष्टों की शान्ति करने वाला है।
3. नित्य अभिवादन- घर में माता-पिता, गुरू, बडे भाई आदि जो भी अपने से बडे हों, उनको नित्य नियमपूर्वक प्रणाम करे। नित्य बडों को प्रणाम करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है-
                      अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
                      चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
4. वेदवेताओं का कहना है कि गोविन्द, दामोदर और माधव- ये नाम मनुष्यों के समस्त रोगों को समूल उन्मूलन करनेवाले भेषज हैं और संसार के आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक इन विविध तापों का नाश करने के लिये बीज मन्त्र के समान है। वेदो मे कहा भी गया है .
                आत्यन्तिकं व्याधिहरं जनानां चिकित्सिकं वेदविदोे वदन्ति।
               संसारतापत्रयनाशबीजं गोविन्द दामोदर माधवेति।।


  5. ऋग्वेद के निम्न मंत्र का जाप भी रोग शांति मे सहायक होता है
              अपामीवामप स्त्रिधमप सेधत दुर्मतिम्।
               आदित्यासो युयोतना नो अंहसः।।
                                   
‘ हे दृढव्रती देवगणो आदित्यासः! हमारे रोगों का निवारण कीजिये। हमारी दुर्मति तथा पापों को दूर हटा दीजिये।’
  6. अथर्ववेद के निम्न मंत्र का जाप भी रोग शांति मे सहायक होता है
            त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्तां मरूतां गणाः।
              त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत्।।
 ‘हे देवो! इस रोगी की रक्षा कीजिये। हे मरूतों के समूहो! रक्षा करो। सब प्राणी रक्षा करें। जिससे यह रोगी नीरोग हो जाय।’
7. वेद में भी दीर्घ जीवन की प्राप्ति के लिये वेदमाता गायत्री की स्तुति करने के लिए बार-बार कहा गया है-
         स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
         आयुः प्राणं प्रजां पशंु कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। 
         महृं दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्।। 
   ‘ब्राह्मणों को पवित्र करने वाली, वरदान देनेवाली वेदमाता गायत्री की हम स्तुति करते हैं। वे हमें आयु,प्राण,प्रजा,पशु,कीर्ति,धन और ब्रह्मतेज प्रदान करके ब्रह्मलोक में जायें।’
      इस मंत्र में सबसे प्रथम आयु का उल्लेख किया गया है। आयु के बिना प्रजा, कीर्ति, धन आदि का कुछ भी मूल्य नहीं हैं। आत्मा के बिना देह का कोई मूल्य नहीं।
8. किसी भी प्रकार की ग्रह पीडा ज्वर एवं भूत प्रेतादि बाधा के निवारण के लिए अपराजिता मंत्र का जाप उपयोगी माना गया है अपराजिता मंत्र.
             ओम नमो भगवती वज्रश्रृंखले हन हन ओम भक्ष भक्ष ओम खाद ओम अरे रक्तम पिब कपालेन रक्ताक्षि रक्तपटे भस्मांगि भस्मलिप्तशरीरे वज्रायुधे वज्रप्राकारनिचिते पूर्वां दिशं बन्ध बन्ध ओम दक्षिणां दिशं बन्ध बन्ध ओम पश्चिमां दिशं बन्ध बन्ध ओम उत्तरां दिशं बन्ध बन्ध नागान बन्ध बन्ध नागपत्नीर्बन्ध बन्ध ओम असूरान बन्ध बन्ध ओम यक्षराक्षसपिशाचान बन्ध बन्ध ओम प्रेत भूतगन्धर्वादयो ये केचिदुपद्रवास्तेभ्यो रक्ष रक्ष ओम उध्र्वं रक्ष रक्ष ओम अधो रक्ष रक्ष ओम क्षुरिकं बन्ध बन्ध ओम ज्वल महाबले घटि घटि ओम मोटि मोटि सटावलिवज्राग्नि वज्रप्राकारे हुं फट ही्रं हु्रं श्रीं फट ही्रं हः फूं फें फःसर्वग्रहेभ्य सर्वव्याधिभ्य सर्वदुष्टोपद्रवेभ्यो ही्रं अशेषेभ्यो रक्ष रक्ष

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