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मंगलवार, 5 नवंबर 2013

अष्टलक्ष्मी

        अष्टलक्ष्मी

               आदिलक्ष्मी
सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवि चन्द्र सहोदरि हेममये।
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायिनि मज्जुलभाषिणी वेदनुते।।
पंकजवासिनी देवसुपूजित सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि सदा पालय माम्।।
माँ लक्ष्मी का आदिलक्ष्मी रूप चार भुजाधारी हैं, जिनके एक हाथ में कमल और दुसरे हाथ में झण्डा तथा अन्य दो हाथों में अभय और वरमुद्रा विद्यमान हैं। ऐसी आदिलक्ष्मी हमारा कल्याण करें।

                धान्यलक्ष्मी
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि वैदकरूपिणि वेदमये।
क्षीरसमुöव मंगलरूपिणि मंत्रनिवासिनि मंत्रनुते।।
म्ंागलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
ज्यजय हे मधुसूदन कामिनि धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम्।।
धान्यलक्ष्मी आठ हाथों वाली हैं जिन्होंने हरे वस्त्र धारण कर रखें हैं। इनके हाथोें में गदा, दलहन फसल,कमल,गन्ना,केला,अभय एवं वरमुद्रा विद्यमान हैं। यह धान्यलक्ष्मी हमारे जीवन में भरपूर धन-धान्य देते हुए हमारा पालन करें।

                       ऐश्वर्यलक्ष्मी
जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मंत्रस्वरूपिणि मंत्रमये,
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधुजनाश्रित पादुयुते,
जयजय हे मधुसूदन कामिनि ऐश्वर्यलक्ष्मि सदा पालय माम्।।
ऐश्वर्यलक्ष्मी चार भुजा वाली हैं। इनके दो हाथों में कमल पुष्प तथा अन्य दो हाथों में अभय और वरमुद्रा हैं। इन्होंने सफेद वस्त्र धारण कर रखें हें। ऐश्वर्यलक्ष्मी हमारे जीवन में निरन्तर समृद्धि प्रदान करें और हमारा पालन करें।

                     गजलक्ष्मी
जयजयदुर्गतिनाशिनि कामिनि सर्वफलप्रद शास्त्रमये।
रथगज तुरगपदादि समावृत परिजनमण्डित लोकनुते।।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित तापनिवारिणि पादयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।।
गजलक्ष्मी चार हाथों वाली हैं जिन्होंने लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। इनके पीछे दो हाथोेंजल के कलश लिये हुए वर्षा कर रहे हैं। इनके हाथों में कमल,वरमुद्रा और अभयमुद्रा विद्यमान हैं। गजलक्ष्मी हमारे जीवन में सर्वोन्नति प्रदान करते हुए हमारा पालन करें।

                    सन्तानलक्ष्मी
अहिखग वाहिनि मोहिन चक्रिणि रामविवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि स्वरसप्त भूषित गाननुते।।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि त्वं पालय माम्।।
सन्तानलक्ष्मी छह हाथों वाली हैं। इन्होंने अपने हाथों तलवार,ढाल,कलश,वरमुद्रा तथा एक हाथ में गोद में बच्चे को लिये हुए हैं तथा बच्चे के हाथ मे भी एक कमल पुष्प हैं। यह सन्तानलक्ष्मी हमें उतम संतान प्रदान कर हमारा पालन करें।




                   विजयलक्ष्मी
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये।
अनुदिनमर्चित कुंकमधूसरभूषित वासित वाद्यनुते।।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शंकर देशिक मान्य पदे।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि विजयलक्ष्मि सदा पालन माम्।।
विजय लक्ष्मी आठ हाथों वाली है और लाल वस्त्र धारण करती हैं। इनके हाथों में चक्र , तलवार, ढाल, शंख, कमल, पाश, अभयमुद्रा और वरमुद्रा हैं। यह लक्ष्मी हमें जीवन में सर्वत्र विजय प्रदान का हमारा पालन करें।

                       विद्यालक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमयभूषित कर्णविभूषण शान्तिसमावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्।।
विद्यालक्ष्मी आठ हाथों वाली हैं। इन्होंनेे लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। इनके हाथों में चक्र,धनुष-बाण,शंख,त्रिशुल,पुस्तक, अभय एवं वरमुद्रा हैं। यह हमें विद्या प्रदान कर ज्ञानवान बनाये और हमारा पालन करें।

                             धनलक्ष्मी
धिमिधिमि धिंधिमि  धिंधिमि दुन्दुभि नाद सुपूणये।
घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम  घुङ्घुम शंकनिनाद सुवाद्यनुते।।
वेदपुराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि धनलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।।
धनलक्ष्मी छह हाथों वाली है और लाल वस्त्र धारण करती हैं। इनके एक हाथ में चक्र, दूसरे में अमृतकलश, तीसरे में शंख, चैथे हाथ में कमल, पांचवे हाथ में अभयमुद्रा तथा छठे हाथ में धनुष-बाण लिए हुए हैं। ये अपने अभयमुद्रा वाले स्वरूप में निरन्तर धन बरसाती रहे और हमारा पालन करें।
    उक्त अष्टालक्ष्मी स्तोत्र में संस्कृत के साथ हिन्दी का उच्चारण करते हुए माँ लक्ष्मी के अष्टोरूपों से जीवन में भी प्रकार के सुखों की कामना करें। लक्ष्मी के ये स्वरूप दक्षिण भारत में अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। जहाँ पर इनके आठ रूपों वाले मन्दिर भी स्थित हैं। यदि आप माँ लक्ष्मी के अष्टोरूपों वाले मंदिर में जाकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते है, तो चैन्नई,हैदराबाद,मदुरै, सुगरलैण्ड, टेक्सास (अमेरिका) एवं मिशिगन (अमेरिका)में स्थित उनके मंदिरो में जा सकते हैं। दीपावली पर अष्टलक्ष्मी की साधना करने से साधकों को अवश्य लाभ होता हैं।

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