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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

कालसर्प दोष के प्रकार


कालसर्प दोष के प्रकार
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार मोबाइल -09001742766,09001846274
प्रंाचिन विद्वानो ने कालसर्प के बारे मे कोई विषेश अधिकारीक जानकारी नही दी है ।  लेकिन राहु का विषेश भावो मे स्थिति वश अनिष्ट प्रभाव भी बताया है जिसमे निरन्तर शोध का नतीजा कालसर्प है। इसकि विशद व्याख्या तो विशद व्याख्या ताक वही कर सकता है । जिसने इन दुर्योगो का फल भुगता है   राहु केतु के मध्य समस्त ग्रहो के आ जाने से कालसर्प योग बनता है जो संतान एवं यश का नाश करता है समस्त दुखो एवं रोग का कारण बनता है जातक एक ऐसे चक्रव्युह मे फस जाता है कि उसे पता ही नही चल पाता ऐसी स्थिती मे डाक्टर भी गच्चा खाकर रोगी का इलाज नही कर पाता जब रोग के बारे मे डाक्टर निश्चित नही कर पाये व्याधि का शमन दवाईयो से नही हो पाये तो समझ लेना चाहीए कि कर्म दोषज है जिसकी शांती या उपाय कर लेने  पर ही राहत मिलती है कालसर्प दोष मे भी जब राहु किसी एसी राशि मे स्थित हो जिसका स्वामि जंन्मंाग मे नीचे राशि का हो एवं केतु अधिष्टित राशि भी निर्बल हो तो कालसर्प कष्ट कारक बनता है ।ेेेेेेेेेकुंडली मे अन्य सातो ग्रह किसी एक भाव मे स्थित हो सकते है परतु राहु केतु हमेशा एक दुसरे से समसप्तक स्थिति अर्थात 180 डिग्री की दुरी पर स्थ्ति होते है  इस प्रकार राहु केतु कि विभ्भिलन भावो मे स्थिती के आधार पर बाहर प्रकार के कालसर्प का निर्माण होता है प्रत्येक कालसर्प दोष के अशुभ होने पर स्थिति अनुसार अशुभ फल ।
1. अनंत कालसर्प:- लग्न मे राहु एवं सप्तम मे केतु स्थित होने पर अनंत कालसर्प का निर्माण होता है इसके अशुभ होने पर जातक का व्यक्तित्व प्रभावी नही होता उसे शारीरिक एवं मानीसक पीडा बनी रहती है जातक द्वारा लाख समझदारी कम उपरानंत भी उसकि बातो पर विश्वास नही होता उसका जीवन तनावमय एवं संघर्ष शील रहता है। जातक शारीरिक घात भी संभव है । जातक को जीवन साथी का सुख प्राप्त नही होता वह जीवनसाथी के लिए हमेशा तरसता रहता है  उसं समझदार विश्वास पात्र नही मिलता संतान सुख एवं यश मे कमी रहती है
2. कुलिक कालसर्प योग:- जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे ीस्थत राहु एवं अष्टम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो कुलिक कालसर्प योग बनता है इसके कारण जातक को पारीवारिक विवाद के कारण समस्या रहती है । जातक कि आर्थीक स्थिति कमजोर रहती है इनकी वाणी मे कोई विकार भी संभव है इनकी वाणी कठोर एवं अच्छी नही रहती ।नैत्र रोन कम कारण भी परेशान रहते है इन्हे जीवन मे आकस्मिक दुर्घटना का सामना करना पडता है कार्य व्यवसाय मे उतार चढाव बना रहता है । माता पिता के कमजोर स्वास्थ के कारण भी परेशानी उठानी पडती हैे।
3. वासुकि कालसर्प:- जन्म कुंडली मे तृतीय भाव मे स्थित राहु उवं नवम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है इसके कारण जातक को अपने अनुजो एवं िमत्र वर्ग कि ओर से परेशानी उठानी पढती है ।जातक को लेखन एवं प्रकाशन कार्यो से विशेष लाभ कि प्राप्ति नही होती है एंेसे जातक अपने भाग्योदय के लिए तरसते रहते है इन्हे कार्य व्यवसाय मे भी अकारणपरेशानीयो का सामना करना पढता है जातक के विवाह मे विलंब होकर द्विविवाह कि स्थिती बनती है कार्य व्यवसाय से प्राप्त होने वाले लाभ मे आकस्मिक रूकावट एवं कमी आती रहती है
4. शंखपाल कालसर्प:- चतुर्थ भाव राहु एवं दशम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो शंखपाल कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को लोगो कि ओर से परेशानी उठानी पढती है जातक कोेअचल समंत्ति के विवाद के कारण कोर्ट कचहरी जाना पड सकता है इनकी शिक्षा मे भी व्यवधान आते रहते है माता पिता से वैचारीक मतभेद रहता है जातक कि आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है उसके नैत्रो मे विकार कि संभावना रहती है शयन सुख मे बाधा एवं अनिद्रा कि स्थिती रहती है
5. पदम कालसर्प:- जंन्माक मे पंचम भाव मे स्थिती राहु एवं एकादश भाव मे स्थित केतु के संतान सुख मे कमी रहती है जातक को संतान की ओर से परेशानी उठानी पडती है इन्हे शेयर बाजार , लाटरी आदी मे भी आकस्मिक नुकसान की स्थिती बनती है जातक की अपनी इष्ट देव के प्रति श्रद्वा एवं असस्था नही होती इनकी उच्च शिक्षा मे व्याधान आते रहते है जातक कि पाचन शक्ति कमजोर रहती है प्रेम प्रसंग के कारण जातक को बद नामी  का सामना करना पडता है
6. महापदम कालसर्प:- जन्माक मे छठे भाव मे स्थित राहु एवं द्वाद्वश मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो महापदम कालसर्प का निर्माण होता है ऐसे जातक को गुप्त शत्रुओ के कारण परेशानी उठानी पढती है जातक को मुत्र मे सक्रमण या किडनी विकार के कारण पीडा रहती है ।  जातक को आकस्मिक दुर्घटनाओ का सेमना करना पडता है  इन्हे कार्य व्यवसाय मे उतार चढाव का सामना करना पढता है जातक को शयन सुख मे कमी रहती है भुमि भवन विवाद के कारण कोर्ट कचहरी जाना पड सकता है उनकी आर्थिक कमजोर रहती है                                                                                                    

                                                                         
 7.तक्षक कालसर्प:- जन्माक मे सप्तम भ्सव मे स्थित राहु एवं लग्नस्थ केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो तक्षक कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को विवाह मे परेशानी बनी रहती है जातक को जीवन साथी का सुख कमजोर रहता है इन्हे विश्वास पात्र साझेदार नही मिलते जातक को गुप्त रोगो के कारण परेशानी उठानी पढती है इन्हे भाईयो एवं मित्रो का सुख कमजोर रहता है जातक को धन प्राप्ति मे आकस्मिक रूकावट बनने से निराश होना पडता है अपने अहम एवं जिद्दि स्वभाव के कारण व्यक्तिमत्व मे निखार नही हो पाता।
8.कर्कोटक कालसर्प:- जन्माक मे स्थित राहु एवं द्वितीय भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो कर्कोटक कालसर्प का निर्माण होता है इसके होने पर जातक को गुप्त रोग होने के कारण परेशानी उठानी पढती है जातक के रोग संबधित सही निर्णय एवं उपचार नही हो पाता इन्हे जीवन साथी का सुख कमजोर रहता है आर्थिक स्थिती भी कमजोर होती रहती है पारिवारीक विवाद के कारण भी परेशानी रहती है इन्हे भवन एवं वाहन का सुख कमजोर रहता है पररवारजनो एवं अन्य लोगो से भी वैचारिक मतभेद बना रहता है शिक्षा प्राप्ति का योग कमजोर रहता है

9. शंखनाद कालसर्प:- जन्माक मे नवमभाव मे स्थित राहु एवं तृतीय भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो शंखनाद कालसर्प का निर्माण होता है ऐसे जातक अपने भाग्योदय के कारण परेशान होते रहते है इनकि धर्म एवं पुण्य कार्यो कमे श्रद्वा एवं आस्था नही रहता संतान सुख के कारण परेशानि उठानि पडती है जातक को लेखन एवं प्रकाशन कार्यो से लाभ कि प्राप्ति नही रहती इष्ट मित्रो एवं भाईयो का अपेक्षित सहयोग प्राप्त नही हो पाता ऐसे जातक व्यर्थ यात्राए करते रहते है जातक के व्यक्तिमत्व मे आकर्षण नही रहता इन्हे भ्रम एवं भय की स्थिति बनी रहती है
10.पातक कालसर्प -ः जन्माक मे दशम भाव मे स्थित राहु एवं चतुर्थ भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो पातक कालसर्प का निर्माण ऐसे जातक को अपने कार्य व्यवसाय मे आकस्मिक हानि का सामना करना पढता है जातक के कार्य मे वृद्वि नही रहती उसे नोकरी एवं  प्रतिष्ठा कि प्राप्ति नहि होती है सरकारी अधिकारीयो संे अनबन के कारण परेशानी रहती है । इनकी आर्थिक स्थिती कमजोर होती जाती है जातक का अपने पिता से वैचारीक मतभेद बना रहता है आकस्मिक दुर्घटनाओ के कारण परेशानी उठानी पढती है अपने स्वय के भवन के लिये परेशान होते रहते है

11. विषाक्त कालसर्प:- जन्मंाक मे एकादश भाव मे स्थित राहु एवं पंचम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह हो तो विषाक्त कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को धन प्राप्ति मे आकस्मिक अवरोध सहना पडता है जातक को अपने भाइ एवं बहिनो का सुख कमजोर रहता है जातक को प्रेम के कारण बदनामी का सामना करना पढता है इन्हे संतान सुख मे गर्भपात के कारण परेशानि रहति है । इन्हे उच्च शिक्षा मे भी व्यधान आते रहते है ऐसे जातक को जीवन साथी का सुख कमजोर रहता है । साझेदार के कारण इन्हे परेशानि उठानी पडती है । शेयर बाजार मे शुभ नही रहता
12.शेषनाग कालसर्प:- जन्माक मे द्वाद्वश भाव मे स्थित राहु एवं छठे भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो शेषनाग कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को दांपत्य जीवन मे परेशानी रहती है इन्हे अनिद्रा के कारण परेशानि उठानी पडती है जातक को गुप्त रोगो के कारण समस्या रहती है धन का अकारण व्यय होता रहता है इनकि चल अचल संपत्ति के कारण परेशानि रहती है शिक्षा मे इन्हे परेशानियो का सामना करना पडता है इन्हे नैत्र रोगो के कारण रपेशानि उठानी पडती है
कालसर्प के कारण किसी जातक को जब परेशानियो का सामना करना पडता है तो उसे कालसर्प कि शांति करना समझदारी है ।
               


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