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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

त्रिदोष.

त्रिदोष.
पितं पग्ङुः कफः पग्ङुः पग्ङःवो मलधातवः।
वायुना यत्र नीयन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत्।।
अर्थात् पित पंगु ;परतन्त्रद्ध हैए कफ पंगु हैंए मल और धातु भी पंगु हैं। इनकोे वायु जहाँ ले जाता हैए वहीं यें बादल के समान चले जाते हैं। ये वायु के अधीन हैं।
तीनों दोषों में वात ;वायुद्ध ही बलवान् हैए क्योकि वह शरीर के सभी अवयवों का विभाग करता है। वह रजोगुण.युक्त हैए सूक्ष्मएशीतएरूक्षएलघु ;हल्काद्ध है और चल ;गतिशीलद्ध है। वह मलाशयए अग्न्याशयएहदयएकण्ठ ;निकटता होने से फुफफुसतकमेंद्ध तथा समस्त शरीर में विचरता रहता है। अतएव वायु के पाँच भेद माने जाते है और इन स्थानो में विचरण करने वाले होने के कारण वायु के क्रमशः पाँच नाम है. 1 प्राण 2 अपान 3 समान 4 उदान और 5 व्यान। यदि ये पाँचों वायु अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहें और अपने.अपने स्थान में वर्तमान रहें तो अपने.अपने कार्यों को सम्पन्न करते हैं और इन पाँचों के द्वारा रोग रहितए इस शरीर का धारण होता है।