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बुधवार, 6 नवंबर 2013

कमला स्तोत्र

लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं कमला स्तोत्र पाठ से
ऋषि अगस्त्यकृत माँ कमला स्तोत्र अत्यधिक चामत्कारिक हैं। इसमें माँ लक्ष्मी की विशेष उपासना की गयी हैं। प्रस्तुत लेख में इसे संस्कृत और हिन्दी दोनों रूपों में दिया जा रहा हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से लक्ष्मीजी की विशेष कृपा प्राप्त होगी। कमला स्तोत्र इस प्रकार है:-
    मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि
   श्रीविष्णुहत्कमलवासिनि विश्वमात्ः।
   क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भगौरि
   लक्ष्मी प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।
श्री अगस्त्य ऋषि बोले कि कमल के समान विशाल नेत्रों वाली माता लक्ष्मी! मै आपको प्रणाम करता हूँ। आप भगवान विष्णु के हदय कमल में निवास करने वाली तथा समस्त संसार की जननी हैं। कमल के कोमल गर्भ के सदृश गौर वर्ण वाली क्षीरसागर की पुत्री महालक्ष्मी! आप अपनी शरण में आये हुए भक्तजनों का पालन करने वाली हैं। आप सदा मुझ पर प्रसन्न हों।।1।।
      त्वं श्रीरूपेप्द्रसदने मदनैकमात-
      ज्र्योत्स्नासि चन्द्रमसि चन्द्रमनोहरास्ये।
     सूर्ये प्रभासि च जगत्रितयें प्रभासि
     लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।2।।
प्रद्युम्न की एकमात्र जननी रूक्मिणीरूपधारिणी माता! आप भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में ‘श्री’ नाम से प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा के समान मनोहर मुख वाली देवी! आप ही चन्द्रमा में चाँदनी हैं,सूर्य में प्रभा हैं और तीनों लोकों में आप ही प्रभावित होती हैं। भक्तजनों को आश्रय देने वाली माता लक्ष्मी! आप सदा मुझ पर प्रसन्न हों।।2।।
        त्वं जातवेदसि सदा दहनात्मशक्ति-
       वेंधास्त्वया जगदिंदं विविधं विदध्यात्।
       विश्वम्भरोपि बिभृयादखिलं भवत्या
       लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।3।।
आप ही अग्नि में दाहिका शक्ति हैं। ब्रह्माजी आपकी ही सहायता से विविध प्रकार के जगत् की रचना करते हैं। सम्पूर्ण संसार का भरण-पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी आपके ही भरोसे सबका पालन करते हैं। शरण में आकर चरण में मस्तक झुकाने वाले पुरूषों की निरन्तर रक्षा करने वाली माता महालक्ष्मी! आप मुझ पर प्रसन्न हों।।3।।
       त्वत्यक्तमेतदमले हरते हरोपि
      त्वं पासि हंसि विदधासि परावरासि।
     ईढयों बभूव हरिरप्यमले त्व्दाप्त्या
    लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।।4।।
निर्मल स्वरूपवाली देवी! जिनको आपने त्याग दिया हैं, उन्ही का भगवान् रूद्र संहार करते हैं। आप ही जगत् का पालन, संहार और सुष्टि करने वाली हैं। आप ही कार्य-कारण रूप जगत् हैं। निर्मल स्वरूपा लक्ष्मी! आपको प्राप्त करके ही भगवान श्रीहरि सबके पूज्य बन गये। माँ! आप भक्तजनों का हमेशा पालन करने वाली हैं,मुझ पर प्रसन्न हों।।4।।
        शूरः स एव स गुणी स बुधः स धन्यो
        मान्यः स एव कुलशीलकमलाकलापैः।
        एकः शुचिः स हि पुमान् सकलेपि लोके
        यत्रापतेत्व शुभे करूणाकटाक्षः।।5।।
 शुभे! जिस पुरूष पर आपका करूणापूर्ण कटाक्षपात होता है, संसार में एकमात्र वही शूरवीर,गुणवान,विद्वान,धन्य,मान्य,कुलीन,शीलवान,अनेक कलाओं का ज्ञाता और परम पवित्र माना जाता हैं।।5।।
         यस्मिन्वसेः क्षणमहो पुरूषे गजेश्वचे
        स्त्रैणे तुणे सरसि देवकले गृहेत्रे।
        रत्ने पतत्रिणि पशौ शयने धरायां।
       सश्रीकमेव सकले तदिहास्ति नान्यत्।।6।।
देवि! आप जिस किसी पुरूष,हाथी,घोडा,स्त्रैण,तृण,सरोवर,देव,मंदिर,गृह,अन्न,रंज,पशु-पक्षी,शयया अथवा भूमि में क्षण भर भी निवास करती हैं,समस्त संसार में केवल वही शोभा सम्पन्न होता हैं,दूसरा नहीं।।6।।
          त्व्त्स्पृष्टेमेव सकलं शुचितां लभेत
         त्वत्यक्तमेव सकलं त्वशुचीह लक्ष्मि।
         त्वन्नाम यत्र च सुमंगलमेव तत्र
         श्रीविष्णुपत्नि कमले कमलालयेपि।।7।।
हे श्रीविष्णुपत्नि! हे कमले! ळे कमलालये!हे माता लक्ष्मी! आपने जिसका स्पर्श किया है,वह पवित्र हो जाता है और आपने जिसे त्याग दिया हैं, वही सब इस जगत् में अपवित्र हैं। जहाँ आपका नाम हैं, वहीं उतम मंगल हैं।।7।।
            लक्ष्मीं श्रियं च कमलां कमलालयां च
           पद्यां रमां नलिनयुग्मकरां च मां च।
              क्षीरोदजाममृतकुम्भकरामिरां च
          विष्णुप्रियामिति सदा जपतां क्व दुःखम्।।8।।
जो लक्ष्मी, श्री, कमला,कमलालया, पद्या,रमा, दोनो हाथों में कमल धारण करने वाली,माँ क्षीरोदजा,हाथों में अमृत का कलश धारण करने वाली,इरा और विष्णुप्रिया,इन नामों का सदा जप करते हैं, उनके लिये कहीं दुःख नहीं हैं।।8।।
          ये पठिष्यन्ति च स्तोत्रं त्वद्धक्त्या मत्कृतं सदा
         तेषां कदाचित् संतापों मास्तु मास्तु दरिद्रता।।9।।
         मास्तु चेष्टज्ञवियोगश्वच मास्तु सम्पतिसंक्षयः।
         सर्वत्र विजयश्चातस्तु विच्छेदों मास्तु सन्ततेः।।10।।
इस स्तुति से प्रसन्न हो देवी के द्वारा वर मांगने के लिये कहने पर अगस्त्य मुनि बोले हे देवी! मेरे द्वारा की गयी इस स्तुति का जो भक्तिपूर्वक पाठ करेंगे,उन्हें कभी संताप न हो और न कभी दरिद्रता हो, अपने इष्ट से कभी उनका वियोग न हो और न कभी धन का नाश ही हो। उन्हें सर्वत्र विजय प्राप्त हो और उनकी संतान का कभी विच्छेद न हो।।9.10।।
                                     श्रीरूवाच
             एवमस्तु मुने सर्व यत्वया परिभाषितम्।
            एतत् स्तोत्रस्य पठनं मम सांनिध्यकारणम्।।11।।
श्री लक्ष्मी जी बोलीं- हे मुने! जैसा आपने कहा है, वैसा ही होगा। इस स्तोत्र का पाठ मेरी संनिधि प्राप्त कराने वाला हैं।।11।।
                     ।।इति श्रीस्कंदमहापुराणे काशीखंडे अगस्तिकृपा महालक्ष्मीस्तुतिः संपूर्णा।।
   उपरोक्त स्तोत्र पाठ करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर साधक को धन-धान्य से पूरित कर देती हैं,साधक का जीवन धन्य हो जाता हैं। इसके बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता का अनुभव नहीं होता हैं।









आपकी राशि, नक्षत्र और रोगोपचार

आपकी राशि, नक्षत्र और रोगोपचार

          भारतीय ज्योतिश में राशि एवं नक्षत्र का अपना विषेश महत्त्व है। किसी  राशि एवं नक्षत्र के आधार पर रोगों का वर्णन प्राचीन आचार्यो ने किया है। बारह  राशियों अर्थात् सत्ताईष नक्षत्रों को अंगों में स्थापित करने पर मानव  शरीर की आकृति बनती है। नवग्रहों में चन्द्र सर्वाधिक गतिशिल ग्रह है, इसलिये इसका मानव षरीर पर भी सर्वाधिक प्रभाव मान सकते हैं। हमारे षरीर का लगभग 70 प्रतिषत भाग जल है। ज्योतिश में जल का स्वामी चन्द्र को ही माना है, इसलिये भारतीय ज्योतिश में चन्द्र को महत्वपूर्ण स्थान देकर उसका जन्म समय जिस राशि या नक्षत्र में गोचर होता है, वही हमारी जन्म राशि या जन्म नक्षत्र माना जाता है। इस राषि या नक्षत्र के आधार पर जातक को कौन रोग हो सकता है एवं इस रोग से बचाव का सुलभ उपाय क्या होगा, इसकी जानकारी इस अध्याय में दी जा रही है। नक्षत्र के आराध्य अथवा उसके प्रतिनिधि वृक्ष की जडी धारण करके भी रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है:-
      1 अष्विनी:- वराह ने अष्विनी नक्ष्त्र का घुटने पर अधिकार माना है।  इसके पीडित होने पर बुखार भी   रहता है। यदि आपको घुटने से सम्बन्धित पीडा हो, बुखार आ रहा हो तो आप अपामार्ग की जड धारण करें। इससे आपको रोग की पीडा कम होगी।
      2   भरणी:- भरणी नक्षत्र का अधिकार सिर पर माना गया है। इसके पीडित होने पर पेचिष रोग होता        है। इस प्रकार की पीडा पर अगस्त्य की जड धारण करें।
3 कृतिका:- कृतिका नक्षत्र का अधिकार कमर पर है। इसके पीडित होने पर कब्ज एवं अपच की समस्या होती है। आपका जन्म नक्षत्र यदि कृतिका हो तथा कमर दर्द, कब्ज, अपच की षिकायत हो तो कपास की जड धारण करें।
4 रोहिणी:- रोहिणी नक्षत्र का अधिकार टांगों पर होता है। इसके पीडित होने पर सिरदर्द, प्रलाप, बवासीर जैसे रोग होते है। इस प्रकार की पीडा होने पर अपामार्ग या आंवले की जड धारण करें।
5 मृगशिरा:- मृगशिरा नक्षत्र का अधिकार आँखों पर है। इसके पीडित होने पर रक्त विकार, अपच,एलर्जी जैसे रोग होते है। ऐसी स्थिति में खैर की जड धारण करें।
6 आद्र्रा:- आद्र्रा नक्षत्र का अधिकार बालों पर है। इसके पीडित होने पर मंदाग्नि, वायु विकार तथा आकस्मिक रोग होते हैं। इससे प्रभावित जातकों को ष्यामा तुलसी या पीपल की जड धारण करनी चाहिये।
7 पुनर्वसु:- पुनर्वसु नक्षत्र का अधिकार अंगुलियों पर है। इसके पीडित होने पर हैंजा, सिरदर्द, यकृत रोग होते है। इन जातकों को आक की जड धारण करनी चाहिये। ष्वेतार्क जडी मिले तो सर्वोत्तम हैं।
8 पुश्य:- पुश्य नक्षत्र का अधिकार मुख पर है। स्वादहीनता, उन्माद, ज्वर इसके कारण होते है। इनसे पीडित जातकों को कुषा अथवा बिछुआ की जड धारण करनी चाहिये।
9 आष्लेशा:- आष्लेशा नक्षत्र का अधिकार नाखून पर है। इसके कारण रक्ताल्पता एवं चर्म रोग होते है। इनसे पीडित जातको को पटोल की जड धारण करनी चाहिये।
10 मघा:- मघा नक्षत्र का अधिकार वाणी पर है। वाणी सम्बन्धित दोश, दमा आदि होने पर जातक भृगराज या वट वृक्ष की जड धारण करें।
11 पूर्वाफाल्गुनी:- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का अधिकार गुप्तांग पर है। गुप्त रोग, आँतों में सूजन, कब्ज, षरीर दर्द होने पर कटेली की जड धारण करें।
12 उत्तराफाल्गुनी:- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का अधिकार गुदा, लिंग, गर्भाषय पर होता है। इसलिये इनसे सम्बन्धित रोग मधुमेह होने पर पटोल जड धारण करें।
13 हस्त:- हस्त नक्षत्र का अधिकार हाथ पर होता है। हाथ में पीडा होने या षरीर में जलदोश अर्थात् जल की कमी, अतिसार होने पर चमेली या जावित्री मूल धारण करें।
14 चित्रा:- चित्रा नक्षत्र का अधिकार माथे पर होता है। सिर सम्बन्धित पीडा, गुर्दे में विकार, दुर्घटना होने पर अनंतमूल या बेल धारण करें।
15 स्वाति:- स्वाति नक्षत्र का अधिकार दाँतों पर है, इसलिये दंत रोग, नेत्र पीडा तथा दीर्घकालीन रोग होने पर अर्जुन  मूल धारण करें।
16 विषाखा:- विषाखा नक्षत्र का अधिकार भुजा पर है। भुजा में विकार, कर्ण पीडा, एपेण्डिसाइटिस होने पर गुंजा मूल धारण करें।
17 अनुराधा:- अनुराधा नक्षत्र का अधिकार हृदय पर है। हृदय पीडा, नाक के रोग, षरीर दर्द होने पर नागकेषर की जड धारण करें।
18 ज्येश्ठा:- ज्येश्ठा नक्षत्र का अधिकार जीभ व दाँतों पर होता है। इसलिये इनसे सम्बन्धित पीडा होने पर अपामार्ग की जड धारण करें।
19 मूल:- मूल नक्षत्र का अधिकार पैर पर है। इसलिये पैरों में पीडा, टी.बी. होने पर मदार की जड धारण करें।
20 पूर्वाशाढा:- पूर्वाशाढा नक्षत्र का अधिकार जांघ, कूल्हों पर होता है। जाँघ एवं कूल्हों में पीडा,  कार्टिलेज की समस्या, पथरी रोग होने पर कपास की जड धारण करें।
21 उतराशाढा:-उतराशाढा नक्षत्र का अधिकार भी जाँघ एवं कूल्हो पर माना है। हड्डी में दर्द, फे्रक्चर होने, वमन आदि होने पर कपास या कटहल की जड धारण करें।
22 श्रवण:- श्रवण नक्षत्र का अधिकार कान पर होता है। इसलिये कर्ण रोग, स्वादहीनता होने पर अपामार्ग की जड धारण करें।
23 धनिश्ठा:- धनिश्ठा नक्षत्र का अधिकार कमर तथा रीढ की हड्डी पर होता है। कमर दर्द, गठिया आदि होने पर भृंगराज की जड धारण करें।
24 षतभिशा:- षतभिशा नक्षत्र का अधिकार ठोडी पर होता है। पित्ताधिक्य, गठिया रोग होने पर कलंब की जड धारण करें।
25 पूर्वाभाद्रपद:- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का अधिकार छाती, फेफडों पर होता हैं। ष्वास सम्बन्धी रोग होने पर आम की जड धारण करें।
26 उतराभाद्रपद:- उतराभाद्रपद नक्षत्र का अधिकार अस्थि पिंजर पर होता है। हांफने की समस्या होने पर पीपल की जड धारण करें।
27 रेवती:- रेवती नक्षत्र का अधिकार बगल पर होता है। बगल में फोडे-फुंसी या अन्य विकार होने पर महुवे की जड धारण करें।
          जब किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य पीडा हो तो आपको अपने जन्म नक्षत्र के प्रतिनिधि वृक्ष की जडी धारण करनी चाहिये। यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता नहीं है तो आपको किस प्रकार की स्वास्थ्य पीडा है तथा वह षरीर के किस अंग से सम्बन्धित है अथवा वह रोग किसके अन्तर्गत आ रहा है, उससे सम्बन्धित वृक्ष की जडी ऊपर बताये अनुसार धारण करें तो आपको अवष्य अनुकूल फल की प्राप्ति होगी।
      आपकी राषि के अनुसार जडी धारण करके भी रोग के प्रकोप को कम कर सकते हैं। आप अपनी राषि अपने नाम के प्रथम अक्षर से जान सकते हैं। इस आधार पर:-
मेश राषि वालों को पित्त विकार, खाज-खुजली, दुर्घटना, मूत्रकृच्छ की समस्या होती है। मेश राषि का स्वामी ग्रह मंगल है। इन्हें अनंतमूल की जड धारण करनी चाहिये।
व्ृाष्चिक  राषि वालों को भी उपरोक्त रोगों की ही समस्या होती हैं। इन्हें भी अनंतमूल की जड धारण करनी चाहिये
व्ृाशभ एवं तुला राषि वालों को गुप्त रोग, धातु रोग, षोथ आदि होते हैं। यदि आपकी राषि वृशभ अथवा तुला हो तो आपको सरपोंखा की जड धारण करनी चाहिये।
मिथुन एवं कन्या राषि वालों को चर्म विकार, इंसुलिन की कमी, भ्रांति, स्मुति ह्नास, निमोनिया, त्रिदोश ज्वर होता है। इन्हें विधारा की जड धारण करनी चाहिये।
कर्क राषि वालों को सर्दी-जुकाम, जलोदर, निद्रा, टी.बी. आदि होते हैं। इन्हें खिरनी की जड धारण करनी चाहिये।
सिंह राषि वालों को उदर रोग, हृदय रोग, ज्वर, पित्त सम्बन्धित विकार होते हैं। इन्हें अर्क मूल धारण करनी चाहिये। बेल की जड भी धारण कर सकते हैं।
धनु एवं मीन राषि वालों को अस्थमा, एपेण्डिसाइटिस, यकृत रोग, स्थूलता आदि रोग होते हैं। इन्हें केले की जड धारण करनी चाहिये।
मकर एवं कुंभ राषि वालों को वायु विकार, आंत्र वक्रता, पक्षाघात, दुर्बलता आदि रोग होते हैं। इन्हें बिछुआ की जड धारण करनी चाहिये।
  चन्द्र का कारकत्व जल हैं। इसलिये चन्द्र निर्बल होने पर जल चिकित्सा लाभप्रद सिद्ध होती हैं। हमारे षरीर में लगभग 70 प्रतिषत जल होता है। इसलिये षरीर की अधिकांष क्रियाओं में जल की सहभागिता होती है। जल चिकित्सा से जो वास्तविक रोग है, उसका उपचार तो होता ही है इसके साथ अन्य अंगों की षुद्धि भी होती है। इस कारण षरीर में भविश्य में रोग होने की सम्भावना भी कम होती है। जल एक अच्छा विलायक है। इसमें विभिन्न तत्त्व एवं पदार्थ आसानी से घुल जाते हैं जिससे रोग का उपचार आसानी से हो जाता है। जल चिकित्सा में वाश्प् स्नान, वमन,एनीमा, गीली पट्टी, तैरना, उशाःपान एवं अनेक प्रकार की चिकित्सायें हैं। दैनिक क्रियाओं में भी हम जल का उपयोग करते रहते हैं। लेकिन जब चन्द्र कमजोर एवं पीडित होकर उसकी दषा आये तभी जल के अनुपात में षारीरिक असंतुलन बनता है। हमारे षरीर में स्थित गुर्दे जल तत्त्वों का षुद्धिकरण करते हैं। जल की अधिकता होने पर पसीने के रूप में जल बाहर निकलता है जिससे षरीर का तापमान कम हो जाता है। इसलिये जल सेवन अधिक करने पर जोर दिया जाता है ताकि षरीर स्वस्थ रहे अर्थात् चन्द्र की कमजोरी स्वास्थ्य में बाधक न बने। इस प्रकार हमारे लिये चन्द्र महत्त्वपूर्ण ग्रह बन जाता है।          
                                                                                      ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार
                                                                                      परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
                                                                                    मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
                                                                                    जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766
                                 

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

अष्टलक्ष्मी

        अष्टलक्ष्मी

               आदिलक्ष्मी
सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवि चन्द्र सहोदरि हेममये।
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायिनि मज्जुलभाषिणी वेदनुते।।
पंकजवासिनी देवसुपूजित सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि सदा पालय माम्।।
माँ लक्ष्मी का आदिलक्ष्मी रूप चार भुजाधारी हैं, जिनके एक हाथ में कमल और दुसरे हाथ में झण्डा तथा अन्य दो हाथों में अभय और वरमुद्रा विद्यमान हैं। ऐसी आदिलक्ष्मी हमारा कल्याण करें।

                धान्यलक्ष्मी
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि वैदकरूपिणि वेदमये।
क्षीरसमुöव मंगलरूपिणि मंत्रनिवासिनि मंत्रनुते।।
म्ंागलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
ज्यजय हे मधुसूदन कामिनि धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम्।।
धान्यलक्ष्मी आठ हाथों वाली हैं जिन्होंने हरे वस्त्र धारण कर रखें हैं। इनके हाथोें में गदा, दलहन फसल,कमल,गन्ना,केला,अभय एवं वरमुद्रा विद्यमान हैं। यह धान्यलक्ष्मी हमारे जीवन में भरपूर धन-धान्य देते हुए हमारा पालन करें।

                       ऐश्वर्यलक्ष्मी
जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मंत्रस्वरूपिणि मंत्रमये,
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधुजनाश्रित पादुयुते,
जयजय हे मधुसूदन कामिनि ऐश्वर्यलक्ष्मि सदा पालय माम्।।
ऐश्वर्यलक्ष्मी चार भुजा वाली हैं। इनके दो हाथों में कमल पुष्प तथा अन्य दो हाथों में अभय और वरमुद्रा हैं। इन्होंने सफेद वस्त्र धारण कर रखें हें। ऐश्वर्यलक्ष्मी हमारे जीवन में निरन्तर समृद्धि प्रदान करें और हमारा पालन करें।

                     गजलक्ष्मी
जयजयदुर्गतिनाशिनि कामिनि सर्वफलप्रद शास्त्रमये।
रथगज तुरगपदादि समावृत परिजनमण्डित लोकनुते।।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित तापनिवारिणि पादयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।।
गजलक्ष्मी चार हाथों वाली हैं जिन्होंने लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। इनके पीछे दो हाथोेंजल के कलश लिये हुए वर्षा कर रहे हैं। इनके हाथों में कमल,वरमुद्रा और अभयमुद्रा विद्यमान हैं। गजलक्ष्मी हमारे जीवन में सर्वोन्नति प्रदान करते हुए हमारा पालन करें।

                    सन्तानलक्ष्मी
अहिखग वाहिनि मोहिन चक्रिणि रामविवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि स्वरसप्त भूषित गाननुते।।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि त्वं पालय माम्।।
सन्तानलक्ष्मी छह हाथों वाली हैं। इन्होंने अपने हाथों तलवार,ढाल,कलश,वरमुद्रा तथा एक हाथ में गोद में बच्चे को लिये हुए हैं तथा बच्चे के हाथ मे भी एक कमल पुष्प हैं। यह सन्तानलक्ष्मी हमें उतम संतान प्रदान कर हमारा पालन करें।




                   विजयलक्ष्मी
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये।
अनुदिनमर्चित कुंकमधूसरभूषित वासित वाद्यनुते।।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शंकर देशिक मान्य पदे।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि विजयलक्ष्मि सदा पालन माम्।।
विजय लक्ष्मी आठ हाथों वाली है और लाल वस्त्र धारण करती हैं। इनके हाथों में चक्र , तलवार, ढाल, शंख, कमल, पाश, अभयमुद्रा और वरमुद्रा हैं। यह लक्ष्मी हमें जीवन में सर्वत्र विजय प्रदान का हमारा पालन करें।

                       विद्यालक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमयभूषित कर्णविभूषण शान्तिसमावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्।।
विद्यालक्ष्मी आठ हाथों वाली हैं। इन्होंनेे लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। इनके हाथों में चक्र,धनुष-बाण,शंख,त्रिशुल,पुस्तक, अभय एवं वरमुद्रा हैं। यह हमें विद्या प्रदान कर ज्ञानवान बनाये और हमारा पालन करें।

                             धनलक्ष्मी
धिमिधिमि धिंधिमि  धिंधिमि दुन्दुभि नाद सुपूणये।
घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम  घुङ्घुम शंकनिनाद सुवाद्यनुते।।
वेदपुराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि धनलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।।
धनलक्ष्मी छह हाथों वाली है और लाल वस्त्र धारण करती हैं। इनके एक हाथ में चक्र, दूसरे में अमृतकलश, तीसरे में शंख, चैथे हाथ में कमल, पांचवे हाथ में अभयमुद्रा तथा छठे हाथ में धनुष-बाण लिए हुए हैं। ये अपने अभयमुद्रा वाले स्वरूप में निरन्तर धन बरसाती रहे और हमारा पालन करें।
    उक्त अष्टालक्ष्मी स्तोत्र में संस्कृत के साथ हिन्दी का उच्चारण करते हुए माँ लक्ष्मी के अष्टोरूपों से जीवन में भी प्रकार के सुखों की कामना करें। लक्ष्मी के ये स्वरूप दक्षिण भारत में अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। जहाँ पर इनके आठ रूपों वाले मन्दिर भी स्थित हैं। यदि आप माँ लक्ष्मी के अष्टोरूपों वाले मंदिर में जाकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते है, तो चैन्नई,हैदराबाद,मदुरै, सुगरलैण्ड, टेक्सास (अमेरिका) एवं मिशिगन (अमेरिका)में स्थित उनके मंदिरो में जा सकते हैं। दीपावली पर अष्टलक्ष्मी की साधना करने से साधकों को अवश्य लाभ होता हैं।