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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

कालसर्प दोष वाले जातको के लक्षण: -


कालसर्प दोष वाले जातको के लक्षण
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 09001742766,09001846274  
1. जिस जातक को स्वप्र मे साप दिखता हो एवं उससे डर लगता है                                      
  2. प्रत्येक कार्य को उत्साह पुर्वक शुरू करने पर भी निराशा एवं परिश्रम पुर्ण करने पर भी सफलता आकस्मिक असफलता मे बदल जाए                
3.घर मे आए दिनसर्प का दिखाई देना या घर के आस पास बांबी हो विषेश परिस्थितीयो को छोडकर                                           4.स्वप्र मे साप शरिर पर लिपटा दिखाई दे लाख प्रयत्न के उपरान्त भी दुर न हो                                                               5.बहुत पतला या बहुत मोटे आदमी से स्वप्र मे भय रहता हो                
 6.स्वप्र मे सॅंाप ही साॅंॅप दिखाई दे एवं उनके द्वारा डस लेने का डर बना रहे इस प्रकार आकस्मिक रूकावट एवं सर्प दिखना जातक के दोष ग्रस्त होने के लक्षण है

नजर दोष कि पहचान एवं उपचार:-


नजर दोष कि पहचान एवं उपचार:-
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 09001742766,09001846274  
नजर दोष अर्थात नजर लगना एक बहुप्रचलित शब्द है हमारे धार्मिक ग्रंथो मे भी नजर लगने के बारे मे जानकारी दि हुई है वर्तमान मे आप लोगो मे भी नजर लगने का कहते हुए सुना जा सकता है । विषेशकर जब कोई बच्चा बिना किसी कारण रोना प्रारभ कर दे ,बच्चा दुध नही पी रहा हो ,दुध पन उचित समय पर कराने के उपरोत भी शारिरीक विकास नही हो पर रहा या दवाईया देने उपचार करवाने पर भी उमके स्वास्थ मे सुधार नही हो पा रहा हो तो नजर लगना कहते है । एवं इसका आमजन विशिष्ट उपाय भी समय विशेष पर करते है जिससे राहत भी मिल जाति है ।
नजर लगने का अर्थ इससे भी कही आर्थिक व्यापक है नजर लगने के कारण बच्चे तो क्या बडे भी प्रभीवित हो जाते है जिसके कारण उनका काम मे मन नही लगता ,हमेशा बुझे बुझे एवं शिथिल रहना कही भी सुख चैन प्राप्त नही होता मन उदास रहना ,बात बात पर बिना किसी वजह के क्रोधित हो जाना ,हमेशा चिेता ग्रस्त रहना , खान पान के प्रति अरूचि सोचने विचारने कि शक्ति कम हो जाना एवं किसी किसी कि अच्छी बात को भी स्वीकार नही करना नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति चाहते हुए भी अपनी अच्छाईयो को व्यक्त नही कर पाते है अर्थात कहा जाए कि नजर दोष के कारण किसी व्यक्ति का सर्वागीण विकास रूक गया है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी

नजर दोष से बचाव के उपाय:-नजर दोष से बचाव के लिए अपने ईष्ट पर पुर्ण श्रद्वा एवं विश्वास रखे यदि कभी अनजाने  मे आपसे कोई गलती हो जाए तो क्षमा माग ले यदि ईष्ट देव की नियमित अराधना न कर सके तो क्षमा माग ले यदि ईष्ट देव की नियमित अराधना न कर सके तो उनके दिवस पर धुप दीप जलाकर प्रसाद अवश्य चढाए
अपने घर मे पोछा लगाने के पानी मे थोडा नमक अवश्य डाले पुजा स्थल मे गंगाजल रखे माह के किसी एक दिन घर सभी कोनो मे पंचामृत से शुद्विकरण कर गंगाजल का छिडकाव करे
दिन मे एक बार जब भी पुजा करे तब गुग्गुल कि धुनी देनी चाहिए महिने मे एक बार गुग्गल कि धुनी को घर के सभी कोनो मे अवश्य घुमाए
अपने सिर पर से सात बार नमक को उतारकर अग्नि मे न डाल सके तो शैचालय मे डालकर फ्लश चला दे
नजर दोष से प्रभावित व्यक्ति सिर पर से सात बार नमक ,मिर्च व राई उतारकर अग्नि मे डाल देवे ऐसा करने पर नजर अवश्य दुर हो जाती है
किसी काम मे मन नही लगता हो स्वास्थय मे सुधार न हो तो रविवार के दिन भैरव मंदिर मे मदिरा चढाए आपकि परेशनिया दुर हो जाएगी
यदि दवाईया काम नही कर रही हो तो शुक्रवार कि शाम को अपने सिरहाने एक सिक्का रख दे शनिवार के दिन उसे श्मशान मे जाकर फेक दे फिर बिना बोले बिना पीछे देखे घर पर आकर स्नान कर ले उसके स्वास्थ मे अवश्य सुधार होने लगेगा
नजर दोष लगने पर मोतीचुर के साथ लड्ड अपने सिर पर से सात बार उतारकर कुत्ते को खिला दे यदि हाथी मिल जाए तो हाथी  को खिलाना भी नजर दोष को दुर करता है
जिन्हे बार बार नजर लग जाती हो नजर लग जाने के कारण उन्हे अनेकानेक परेशानियो का सामना करना पडे तो उसे पगतिदिन धुप दिप जलाकर गायत्री माता का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करना चाहीए  यदि संभव हो तो अपने कार्यस्थल पर घर पर गायत्री मंत्र का अनंष्ठान अवश्य कराये
ऊ भूभुर्व स्वः तत्सवितुर्वरेण्य भर्गो दवस्य धीमहिे धीयो योन नः प्रचोदयात ।
अपने घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाए इससे नजर दोष का बचाव होता है
घर से बाहर नितलते कुल्ला करके निकला करे कभी भी अपवित्र अवस्था दुध ,दही खाकर, गुड खाकर, स्त्री को रजस्वला होने की स्थिती मे ,बिना स्नान किये ,सुगंधित वस्तुओ का प्रयोग कर नही जाना चाहीए विशेषकर पुर्णिमा व अमावस्या के दिन इन दोनो दिन इस प्रकार के प्रयोगो से बचना चगहीए।
कार्य व्यवसाय पर नजर लगने पर मुख्य द्वार पर एक काले धागे मेेेेेे सात लाल मिर्च एवं बीच मे एक निबंु बंाधकर लटका दे तो नजर दोष से बचाव हो सकता है काले घोडे की नाल प्राप्त कर शनिवार के दिन कार्यस्थल या घर के मुख्य द्वार पर लगा ले काले घोडे कि नाल का बना छल्ला दाए हाथ कि मध्यमा अंगुली मे धारण करे े
बच्चो को नजर दोष से बचाव हेतु चंादी का चंद्रमा या चंाद मोती लाॅकेट अभिमंत्रित करवाकर धारण करे
पांचमुखी रूद्राक्ष माला मे एक सात मुखी रूद्रक्ष ,एक आठ मुखी रूद्राक्ष व एक पारद गोली डालकर धारण करे
जब कोई व्यक्ति नजर दोष के कारण आर्थिक रूप से परेशान हो जाए धन आता हो लेकिन खर्च होता चला जाए अंत्यत परिश्रम के प्श्चात भी आर्थिक लाभ कि स्थिती न बने ,आक्समिक खर्च कि स्थिती बन जाए तो शुक्रवार के दिन एक शहद कि शीशी मे ग्यारह सफेद ग्ंुाजा के दाने डालकर धुप दीप जलाकर इसके सामने श्री सुक्त के ग्यारह पाठ करे इससे अपनी आथिक समस्या कम होने लगती है  ।
नजर दोष से ग्रसित जातक किसे भी प्रकार कि परेशानी अनुभव करे तो आप अभिमंत्रीत त्रिशक्ति लाकेट किसी विद्वान ज्यािितषी कि सलाह अनुसार धारण करे
नजर दोष के कारण वाहन दुर्घटना की स्थिती बने ,वाहन बार बार खराब होने लगे बीच सडक मे ही वाहन मे पक्चर ,डीजल की कमी या अन्य प्रकार की कोइ शिकायत आए तो एक लाल कपडे मे आठ छुआरे लेकर किसी शुभ समय पर धुप दीप जलाकर ऊ हं हनुमते नमः का 108 बार जाप कर वाहन पर बाध दे वाहन के सामने हैडिल पर अभिमंत्रीत त्रिकोन मंगल यत्रं लगाए तो वाहन संबधित परेशानी दुर हो जाती है
नजर दोष के कारण आपका कार्य अवरूद्व हो तो मंगलवार से प्रारभ कर प्रतिदीन सरसो के तेल का दीपक जलाकर हनुमान चालिसा का पाच बार जाप करे ध्यान रखे आप मांस मंदिरा के सेवन से दुर रहे
नजर दोष के निवारण के लिए शनिवार के दिन काले या हरे कपडे मे एक सुखा जटा वाला नारियल कच्चे कोयले ,लोहे कि किल 124 ग्राम बादाम सिर पर से सात बार उतारकर बहते जल मे प्रवाहित करे ,ऐसे आप करेगे तो नजर दोष से मुक्ति मिल जायेगी ।              
   

ऩजर दोष की पहचान और उपचार


नजर दोष कि पहचान एवं उपचार:-
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार 09001742766,09001846274
नजर दोष अर्थात नजर लगना एक बहुप्रचलित शब्द है हमारे धार्मिक ग्रंथो मे भी नजर लगने के बारे मे जानकारी दि हुई है वर्तमान मे आप लोगो मे भी नजर लगने का कहते हुए सुना जा सकता है । विषेशकर जब कोई बच्चा बिना किसी कारण रोना प्रारभ कर दे ,बच्चा दुध नही पी रहा हो ,दुध पन उचित समय पर कराने के उपरोत भी शारिरीक विकास नही हो पर रहा या दवाईया देने उपचार करवाने पर भी उमके स्वास्थ मे सुधार नही हो पा रहा हो तो नजर लगना कहते है । एवं इसका आमजन विशिष्ट उपाय भी समय विशेष पर करते है जिससे राहत भी मिल जाति है ।
नजर लगने का अर्थ इससे भी कही आर्थिक व्यापक है नजर लगने के कारण बच्चे तो क्या बडे भी प्रभीवित हो जाते है जिसके कारण उनका काम मे मन नही लगता ,हमेशा बुझे बुझे एवं शिथिल रहना कही भी सुख चैन प्राप्त नही होता मन उदास रहना ,बात बात पर बिना किसी वजह के क्रोधित हो जाना ,हमेशा चिेता ग्रस्त रहना , खान पान के प्रति अरूचि सोचने विचारने कि शक्ति कम हो जाना एवं किसी किसी कि अच्छी बात को भी स्वीकार नही करना नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति चाहते हुए भी अपनी अच्छाईयो को व्यक्त नही कर पाते है अर्थात कहा जाए कि नजर दोष के कारण किसी व्यक्ति का सर्वागीण विकास रूक गया है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी

नजर दोष से बचाव के उपाय:-नजर दोष से बचाव के लिए अपने ईष्ट पर पुर्ण श्रद्वा एवं विश्वास रखे यदि कभी अनजाने  मे आपसे कोई गलती हो जाए तो क्षमा माग ले यदि ईष्ट देव की नियमित अराधना न कर सके तो क्षमा माग ले यदि ईष्ट देव की नियमित अराधना न कर सके तो उनके दिवस पर धुप दीप जलाकर प्रसाद अवश्य चढाए
अपने घर मे पोछा लगाने के पानी मे थोडा नमक अवश्य डाले पुजा स्थल मे गंगाजल रखे माह के किसी एक दिन घर सभी कोनो मे पंचामृत से शुद्विकरण कर गंगाजल का छिडकाव करे
दिन मे एक बार जब भी पुजा करे तब गुग्गुल कि धुनी देनी चाहिए महिने मे एक बार गुग्गल कि धुनी को घर के सभी कोनो मे अवश्य घुमाए
अपने सिर पर से सात बार नमक को उतारकर अग्नि मे न डाल सके तो शैचालय मे डालकर फ्लश चला दे
नजर दोष से प्रभावित व्यक्ति सिर पर से सात बार नमक ,मिर्च व राई उतारकर अग्नि मे डाल देवे ऐसा करने पर नजर अवश्य दुर हो जाती है
किसी काम मे मन नही लगता हो स्वास्थय मे सुधार न हो तो रविवार के दिन भैरव मंदिर मे मदिरा चढाए आपकि परेशनिया दुर हो जाएगी
यदि दवाईया काम नही कर रही हो तो शुक्रवार कि शाम को अपने सिरहाने एक सिक्का रख दे शनिवार के दिन उसे श्मशान मे जाकर फेक दे फिर बिना बोले बिना पीछे देखे घर पर आकर स्नान कर ले उसके स्वास्थ मे अवश्य सुधार होने लगेगा
नजर दोष लगने पर मोतीचुर के साथ लड्ड अपने सिर पर से सात बार उतारकर कुत्ते को खिला दे यदि हाथी मिल जाए तो हाथी  को खिलाना भी नजर दोष को दुर करता है
जिन्हे बार बार नजर लग जाती हो नजर लग जाने के कारण उन्हे अनेकानेक परेशानियो का सामना करना पडे तो उसे पगतिदिन धुप दिप जलाकर गायत्री माता का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करना चाहीए  यदि संभव हो तो अपने कार्यस्थल पर घर पर गायत्री मंत्र का अनंष्ठान अवश्य कराये
ऊ भूभुर्व स्वः तत्सवितुर्वरेण्य भर्गो दवस्य धीमहिे धीयो योन नः प्रचोदयात ।
अपने घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाए इससे नजर दोष का बचाव होता है
घर से बाहर नितलते कुल्ला करके निकला करे कभी भी अपवित्र अवस्था दुध ,दही खाकर, गुड खाकर, स्त्री को रजस्वला होने की स्थिती मे ,बिना स्नान किये ,सुगंधित वस्तुओ का प्रयोग कर नही जाना चाहीए विशेषकर पुर्णिमा व अमावस्या के दिन इन दोनो दिन इस प्रकार के प्रयोगो से बचना चगहीए।
कार्य व्यवसाय पर नजर लगने पर मुख्य द्वार पर एक काले धागे मेेेेेे सात लाल मिर्च एवं बीच मे एक निबंु बंाधकर लटका दे तो नजर दोष से बचाव हो सकता है काले घोडे की नाल प्राप्त कर शनिवार के दिन कार्यस्थल या घर के मुख्य द्वार पर लगा ले काले घोडे कि नाल का बना छल्ला दाए हाथ कि मध्यमा अंगुली मे धारण करे े
बच्चो को नजर दोष से बचाव हेतु चंादी का चंद्रमा या चंाद मोती लाॅकेट अभिमंत्रित करवाकर धारण करे
पांचमुखी रूद्राक्ष माला मे एक सात मुखी रूद्रक्ष ,एक आठ मुखी रूद्राक्ष व एक पारद गोली डालकर धारण करे
जब कोई व्यक्ति नजर दोष के कारण आर्थिक रूप से परेशान हो जाए धन आता हो लेकिन खर्च होता चला जाए अंत्यत परिश्रम के प्श्चात भी आर्थिक लाभ कि स्थिती न बने ,आक्समिक खर्च कि स्थिती बन जाए तो शुक्रवार के दिन एक शहद कि शीशी मे ग्यारह सफेद ग्ंुाजा के दाने डालकर धुप दीप जलाकर इसके सामने श्री सुक्त के ग्यारह पाठ करे इससे अपनी आथिक समस्या कम होने लगती है  ।
नजर दोष से ग्रसित जातक किसे भी प्रकार कि परेशानी अनुभव करे तो आप अभिमंत्रीत त्रिशक्ति लाकेट किसी विद्वान ज्यािितषी कि सलाह अनुसार धारण करे
नजर दोष के कारण वाहन दुर्घटना की स्थिती बने ,वाहन बार बार खराब होने लगे बीच सडक मे ही वाहन मे पक्चर ,डीजल की कमी या अन्य प्रकार की कोइ शिकायत आए तो एक लाल कपडे मे आठ छुआरे लेकर किसी शुभ समय पर धुप दीप जलाकर ऊ हं हनुमते नमः का 108 बार जाप कर वाहन पर बाध दे वाहन के सामने हैडिल पर अभिमंत्रीत त्रिकोन मंगल यत्रं लगाए तो वाहन संबधित परेशानी दुर हो जाती है
नजर दोष के कारण आपका कार्य अवरूद्व हो तो मंगलवार से प्रारभ कर प्रतिदीन सरसो के तेल का दीपक जलाकर हनुमान चालिसा का पाच बार जाप करे ध्यान रखे आप मांस मंदिरा के सेवन से दुर रहे
नजर दोष के निवारण के लिए शनिवार के दिन काले या हरे कपडे मे एक सुखा जटा वाला नारियल कच्चे कोयले ,लोहे कि किल 124 ग्राम बादाम सिर पर से सात बार उतारकर बहते जल मे प्रवाहित करे ,ऐसे आप करेगे तो नजर दोष से मुक्ति मिल जायेगी ।              
   


सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

कालसर्प दोष की शांति के उपाय


कालसर्प दोष की शांति के उपाय
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार मोबाइल -09001742766,09001846274
कालसर्प के कारण किसी जातक को जब परेशानियो का सामना करना पडता है तो उसे कालसर्प कि शांति करना समझदारी है ।  इसके दोषो को दुर करने हेतु  कुछ विशेष रूप से करना करना पडता है कालसर्प के दोषो को दुर करने हेतु कुछ सामान्य उपाय दिण् ज रहे है जिसके करने पर जातक को अवश्य राहत प्राप्त होती है सामान्य परंतु प्रभावशाली उपाय:-
1.मोरपंख को अपने शयनकक्ष व कार्यालय मे रखे हो सके तो पर्स मे रखे
2.सुर्य ग्रहण ,चन्द्र ग्रहण ,अमावस्या अथवा नागपंचमी के दिन एक तांबे का बडा सर्प सुबह सुर्योदय से पहले शिवलिगं पर गुप्त रूप् से चढाए उसके पश्चात चांदी का रेगता हुआ सर्प बनाकर उसके मुख पर गोमेद व पुछ पर लहसुनिया जडवाकर रि पर से सात बार उतारकर बहते पवित्र ज लमे प्रवाहीत करे
3.तांबे के कलश मे काले तिल व सर्प सर्पीणी का जोडा रखकर कुछ जल भरकर अमावस्याा के दिन शिवलिग पर अर्पित करे
4.वर्ष मे एक बार बुधवारी अमावस्या या नागपंचमी के दिन व्रत रखकर राहु के मंत्रो का चतुर्गुणित जाप कराकर दशांश हवन करे
5.चतुर्गुणित जप करने मे असमर्थ हो तो दस माला राहु के मंत्रो का जाप कर 108 बार आहुति देवे इसके लिये दुर्वा को घी मे डुबोकर काले तिल व कपुर के साथ अर्पित करे
6. नवनाग स्त्रोत व सर्प सुक्त का प्रतिदिन चंदन कि अगतबत्ती जलाकर नौ बार पाठ करे
                       नवनाग स्त्रोत
अनंतं वासुकि शेषे पदमनाभे च कंबलम ।
शंखपाल धार्तराष्टंªª तंक्षक कालियं तथा ।ं।
एतानि नव नामानि नागानाम् च महात्मनाम ।
सायं काले पठेत्रित्यं प्रात: काले विशेषत:।।
तस्मै विषभय नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत ।
7-सर्प सुक्त
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पाः शेषनाग पुरोगमाः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पाः वासुकि प्रमुखादयाः ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
कद्रवेचाश्च ये सर्पा मातृभक्ति परायण ।
 नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पाः तक्षका प्रमुखादयाः ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
सत्यलोकेषु ये सर्पाः ककोटक प्रमुखादयाः ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा साकेत वासिताः ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
सर्वग्रोमेषु ये सर्पा वसंतिषु सच्छिता ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
ग्रामे वा यदी वारण्ये ये सर्पापुचरन्ति च ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
समुद्रतीरे यो सर्पाये सर्पाजल वासिनः ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।
रसातलेषु ये सर्पाः अनन्तादि महाबला ।
नमोस्तुतंभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ।।

8.गोमुत्र से दातँ साफ रखने एवं ताजा मुली का दान करने से भी शाति मिलती है
9.पाच सुखे जटा वाले नारियल सिर पर से सत बार उतारकर जल प्रवाह करने से राहत मिलती है
10.नागपेचमी के दिन वगत रखकर उसी दिन नाग प्रतीमा की अनुठी पुजा कर धारण करे
11. वर्ष मे एक बार रूद्राभिषेक करने से राहत प्रप्त होती है
12.घर के दरवाजे पर स्वास्तिक लगाए
13.शिव चरणामृत  का पान सोमवार को करने से राहत मिलती है
14. प्रतिदिन स्नान के उपरान्त धुप दिप जलाकर नवनाग गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करने से भी राहत प्राप्त हो ती है ।
मंत्र:-नवकुल नागाय विद्य्म्हे  विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात ।
14. यदि स्वप्र मे साप दिखाई देता हो एवं उससे भय बना रहता हो तो निम्र मंत्र का संध्याकाल मे 21 या 108 बार जाप दीप जलाकर करे ।
:-नर्मदाये नमः प्रातर्नदाये नमो निशि ।
नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं ़त्राहि मा विष सर्पतः ।।
15.भवन के मुख्यद्वार के नीचे चादी का पत्र दबने पर ही राहत मिलती है ।
16. चादी की दो कटोरी लेकर उसमे गंगाजल भरकर एक कटोरी को किसी शिव मंदिर या नाग देवता के मंदिर मे चढाए एवं दुसरी कटोरी अपने पुजा स्थल पर रखे इसमेज ल को सुखने नही दे ऐसा करने पर भी राहत मिलती है
17.पेतिदिन स्नान करने के उपरान्त भगवान शिव का ध्यान करते हुए शिव चालिसा का पाठ करे तो कालसर्प दोष से राहत प्राप्त होती है ।
18. कालसर्प दोष होने पर जातक को किसी शुभ दिवस से प्रारंभ कर प्रतिदिन नहा धोकर पवित्र होकर दुध मिश्रित जल शिवलिंग पर चढाते हुए निम्र का इक्कीस बार जाप करना चाहिए ।
मंत्र:- नागेंद्रहराय त्रिलोचनाय भस्मांगराय महेश्वराय ।
 नित्याय शुद्वाय दिगंबराय तस्मै व काराय नमः शिवाय ।।
इसके प्रभाव मे कालसर्प दोष का अशुभ प्रभाव कम होने लगता है ।

कालसर्प दोष के प्रकार


कालसर्प दोष के प्रकार
ज्योतिषाचार्य वागा राम परिहार मोबाइल -09001742766,09001846274
प्रंाचिन विद्वानो ने कालसर्प के बारे मे कोई विषेश अधिकारीक जानकारी नही दी है ।  लेकिन राहु का विषेश भावो मे स्थिति वश अनिष्ट प्रभाव भी बताया है जिसमे निरन्तर शोध का नतीजा कालसर्प है। इसकि विशद व्याख्या तो विशद व्याख्या ताक वही कर सकता है । जिसने इन दुर्योगो का फल भुगता है   राहु केतु के मध्य समस्त ग्रहो के आ जाने से कालसर्प योग बनता है जो संतान एवं यश का नाश करता है समस्त दुखो एवं रोग का कारण बनता है जातक एक ऐसे चक्रव्युह मे फस जाता है कि उसे पता ही नही चल पाता ऐसी स्थिती मे डाक्टर भी गच्चा खाकर रोगी का इलाज नही कर पाता जब रोग के बारे मे डाक्टर निश्चित नही कर पाये व्याधि का शमन दवाईयो से नही हो पाये तो समझ लेना चाहीए कि कर्म दोषज है जिसकी शांती या उपाय कर लेने  पर ही राहत मिलती है कालसर्प दोष मे भी जब राहु किसी एसी राशि मे स्थित हो जिसका स्वामि जंन्मंाग मे नीचे राशि का हो एवं केतु अधिष्टित राशि भी निर्बल हो तो कालसर्प कष्ट कारक बनता है ।ेेेेेेेेेकुंडली मे अन्य सातो ग्रह किसी एक भाव मे स्थित हो सकते है परतु राहु केतु हमेशा एक दुसरे से समसप्तक स्थिति अर्थात 180 डिग्री की दुरी पर स्थ्ति होते है  इस प्रकार राहु केतु कि विभ्भिलन भावो मे स्थिती के आधार पर बाहर प्रकार के कालसर्प का निर्माण होता है प्रत्येक कालसर्प दोष के अशुभ होने पर स्थिति अनुसार अशुभ फल ।
1. अनंत कालसर्प:- लग्न मे राहु एवं सप्तम मे केतु स्थित होने पर अनंत कालसर्प का निर्माण होता है इसके अशुभ होने पर जातक का व्यक्तित्व प्रभावी नही होता उसे शारीरिक एवं मानीसक पीडा बनी रहती है जातक द्वारा लाख समझदारी कम उपरानंत भी उसकि बातो पर विश्वास नही होता उसका जीवन तनावमय एवं संघर्ष शील रहता है। जातक शारीरिक घात भी संभव है । जातक को जीवन साथी का सुख प्राप्त नही होता वह जीवनसाथी के लिए हमेशा तरसता रहता है  उसं समझदार विश्वास पात्र नही मिलता संतान सुख एवं यश मे कमी रहती है
2. कुलिक कालसर्प योग:- जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे ीस्थत राहु एवं अष्टम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो कुलिक कालसर्प योग बनता है इसके कारण जातक को पारीवारिक विवाद के कारण समस्या रहती है । जातक कि आर्थीक स्थिति कमजोर रहती है इनकी वाणी मे कोई विकार भी संभव है इनकी वाणी कठोर एवं अच्छी नही रहती ।नैत्र रोन कम कारण भी परेशान रहते है इन्हे जीवन मे आकस्मिक दुर्घटना का सामना करना पडता है कार्य व्यवसाय मे उतार चढाव बना रहता है । माता पिता के कमजोर स्वास्थ के कारण भी परेशानी उठानी पडती हैे।
3. वासुकि कालसर्प:- जन्म कुंडली मे तृतीय भाव मे स्थित राहु उवं नवम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है इसके कारण जातक को अपने अनुजो एवं िमत्र वर्ग कि ओर से परेशानी उठानी पढती है ।जातक को लेखन एवं प्रकाशन कार्यो से विशेष लाभ कि प्राप्ति नही होती है एंेसे जातक अपने भाग्योदय के लिए तरसते रहते है इन्हे कार्य व्यवसाय मे भी अकारणपरेशानीयो का सामना करना पढता है जातक के विवाह मे विलंब होकर द्विविवाह कि स्थिती बनती है कार्य व्यवसाय से प्राप्त होने वाले लाभ मे आकस्मिक रूकावट एवं कमी आती रहती है
4. शंखपाल कालसर्प:- चतुर्थ भाव राहु एवं दशम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो शंखपाल कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को लोगो कि ओर से परेशानी उठानी पढती है जातक कोेअचल समंत्ति के विवाद के कारण कोर्ट कचहरी जाना पड सकता है इनकी शिक्षा मे भी व्यवधान आते रहते है माता पिता से वैचारीक मतभेद रहता है जातक कि आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है उसके नैत्रो मे विकार कि संभावना रहती है शयन सुख मे बाधा एवं अनिद्रा कि स्थिती रहती है
5. पदम कालसर्प:- जंन्माक मे पंचम भाव मे स्थिती राहु एवं एकादश भाव मे स्थित केतु के संतान सुख मे कमी रहती है जातक को संतान की ओर से परेशानी उठानी पडती है इन्हे शेयर बाजार , लाटरी आदी मे भी आकस्मिक नुकसान की स्थिती बनती है जातक की अपनी इष्ट देव के प्रति श्रद्वा एवं असस्था नही होती इनकी उच्च शिक्षा मे व्याधान आते रहते है जातक कि पाचन शक्ति कमजोर रहती है प्रेम प्रसंग के कारण जातक को बद नामी  का सामना करना पडता है
6. महापदम कालसर्प:- जन्माक मे छठे भाव मे स्थित राहु एवं द्वाद्वश मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो महापदम कालसर्प का निर्माण होता है ऐसे जातक को गुप्त शत्रुओ के कारण परेशानी उठानी पढती है जातक को मुत्र मे सक्रमण या किडनी विकार के कारण पीडा रहती है ।  जातक को आकस्मिक दुर्घटनाओ का सेमना करना पडता है  इन्हे कार्य व्यवसाय मे उतार चढाव का सामना करना पढता है जातक को शयन सुख मे कमी रहती है भुमि भवन विवाद के कारण कोर्ट कचहरी जाना पड सकता है उनकी आर्थिक कमजोर रहती है                                                                                                    

                                                                         
 7.तक्षक कालसर्प:- जन्माक मे सप्तम भ्सव मे स्थित राहु एवं लग्नस्थ केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो तक्षक कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को विवाह मे परेशानी बनी रहती है जातक को जीवन साथी का सुख कमजोर रहता है इन्हे विश्वास पात्र साझेदार नही मिलते जातक को गुप्त रोगो के कारण परेशानी उठानी पढती है इन्हे भाईयो एवं मित्रो का सुख कमजोर रहता है जातक को धन प्राप्ति मे आकस्मिक रूकावट बनने से निराश होना पडता है अपने अहम एवं जिद्दि स्वभाव के कारण व्यक्तिमत्व मे निखार नही हो पाता।
8.कर्कोटक कालसर्प:- जन्माक मे स्थित राहु एवं द्वितीय भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो कर्कोटक कालसर्प का निर्माण होता है इसके होने पर जातक को गुप्त रोग होने के कारण परेशानी उठानी पढती है जातक के रोग संबधित सही निर्णय एवं उपचार नही हो पाता इन्हे जीवन साथी का सुख कमजोर रहता है आर्थिक स्थिती भी कमजोर होती रहती है पारिवारीक विवाद के कारण भी परेशानी रहती है इन्हे भवन एवं वाहन का सुख कमजोर रहता है पररवारजनो एवं अन्य लोगो से भी वैचारिक मतभेद बना रहता है शिक्षा प्राप्ति का योग कमजोर रहता है

9. शंखनाद कालसर्प:- जन्माक मे नवमभाव मे स्थित राहु एवं तृतीय भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो शंखनाद कालसर्प का निर्माण होता है ऐसे जातक अपने भाग्योदय के कारण परेशान होते रहते है इनकि धर्म एवं पुण्य कार्यो कमे श्रद्वा एवं आस्था नही रहता संतान सुख के कारण परेशानि उठानि पडती है जातक को लेखन एवं प्रकाशन कार्यो से लाभ कि प्राप्ति नही रहती इष्ट मित्रो एवं भाईयो का अपेक्षित सहयोग प्राप्त नही हो पाता ऐसे जातक व्यर्थ यात्राए करते रहते है जातक के व्यक्तिमत्व मे आकर्षण नही रहता इन्हे भ्रम एवं भय की स्थिति बनी रहती है
10.पातक कालसर्प -ः जन्माक मे दशम भाव मे स्थित राहु एवं चतुर्थ भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो पातक कालसर्प का निर्माण ऐसे जातक को अपने कार्य व्यवसाय मे आकस्मिक हानि का सामना करना पढता है जातक के कार्य मे वृद्वि नही रहती उसे नोकरी एवं  प्रतिष्ठा कि प्राप्ति नहि होती है सरकारी अधिकारीयो संे अनबन के कारण परेशानी रहती है । इनकी आर्थिक स्थिती कमजोर होती जाती है जातक का अपने पिता से वैचारीक मतभेद बना रहता है आकस्मिक दुर्घटनाओ के कारण परेशानी उठानी पढती है अपने स्वय के भवन के लिये परेशान होते रहते है

11. विषाक्त कालसर्प:- जन्मंाक मे एकादश भाव मे स्थित राहु एवं पंचम भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह हो तो विषाक्त कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को धन प्राप्ति मे आकस्मिक अवरोध सहना पडता है जातक को अपने भाइ एवं बहिनो का सुख कमजोर रहता है जातक को प्रेम के कारण बदनामी का सामना करना पढता है इन्हे संतान सुख मे गर्भपात के कारण परेशानि रहति है । इन्हे उच्च शिक्षा मे भी व्यधान आते रहते है ऐसे जातक को जीवन साथी का सुख कमजोर रहता है । साझेदार के कारण इन्हे परेशानि उठानी पडती है । शेयर बाजार मे शुभ नही रहता
12.शेषनाग कालसर्प:- जन्माक मे द्वाद्वश भाव मे स्थित राहु एवं छठे भाव मे स्थित केतु के मध्य सभी ग्रह स्थित होतो शेषनाग कालसर्प का निर्माण होता है इसके कारण जातक को दांपत्य जीवन मे परेशानी रहती है इन्हे अनिद्रा के कारण परेशानि उठानी पडती है जातक को गुप्त रोगो के कारण समस्या रहती है धन का अकारण व्यय होता रहता है इनकि चल अचल संपत्ति के कारण परेशानि रहती है शिक्षा मे इन्हे परेशानियो का सामना करना पडता है इन्हे नैत्र रोगो के कारण रपेशानि उठानी पडती है
कालसर्प के कारण किसी जातक को जब परेशानियो का सामना करना पडता है तो उसे कालसर्प कि शांति करना समझदारी है ।
               


कालसर्प दोष का प्रभाव कब तक



कालसर्प दोष  का  प्रभाव कब तक
पुर्व जन्म के शुभाशभु कार्यो के अनुसार ही जातक का वर्तमान जीवन निर्भर करना है । इस आधार  पर ही किसी जातक का जन्म निश्चित योगों मे होता है इसकि जानकारी प्राप्त करते हुए वर्तमान मे अनेक विधाए प्रचलन मे है जिसमे ज्योतिष विज्ञान भी एक है इसमे जातक के जन्म कालीन समय एवं स्थान के आधार पर जन्म कुंडली का निर्माण करते है इसमे जन्म कालीन समय और स्थान के आधार पर जन्म कुंडली का निर्माण करते है । इसमे जन्म कालिन ग्रहो कि राशि एवं भावस्थ स्थ्तिि के आधार पर अनेक प्रकार के योगो एवं कु योगो का निर्माण होता है इन्ही मे से कालसर्प भी एक है जो कभी योग बनकर जातक  को खुशहाल   करता है तो कभी दोष बनकर जातक को बरबाद करता है इस कालसर्प के बारे मे विद्वानो मे मतभेद है तो कुछ विद्वान इसकु दोषो को बताकर इसकी सत्यता का ज्ञान भी कराते है । ज्योतिश मे पाप कर्तरी  के बारे मे जानकारी मिलती है । लग्न के दोनो ओर द्वितीय व द्वाद्वश भाव मे पापग्रह स्थिति होने पर लग्न कर्तरी दोष बनता है । जो जातक के समस्त प्रकार के सुखो का नाश करता है क्योकि लग्न को संपुण व्यक्तित्व का कारक माना जाता है । इसी को विस्तारीत कर किसी भाव पर आधारीत करे तो यह दोष उस भाव संबधित कारको को सुख नष्ट करता है ंपापकर्तरी मे भी जब कर्तरी दोष कारक ग्रह शुभ भावेश होकर बलवान होतो अशुभता कम हो जाती हैॅ इसी आधार पर ही यदी कालसर्प का आकलन करे तो स्थिती स्पष्ट हो जाती है ।

वेदो के अनुसार आत्मा अमर है अर्थात उसका नाश  नही होता आत्मा का कालातंर मे आवरण बदलता रहता है जो कर्मो के अनादि प्रवाह का कारण है श्री कृष्ण ने कहा है कि वासना के कारण विभिन्न योनियो मे जन्म होता है जबवासना पुण नही होती तो उसकि बुद्वि और विवके खो जाता है और सर्प योनि को प्राप्त करता है यह भी कर्म का हेतु है । जातक द्वारा वर्तमान काल तक किया गया कर्म संचित है इस संचित कर्म को किसी एक काल मे भोगना असंभव है । अतः इस काल मे जो कर्म फल भोगने को निश्चित है वही प्रारब्ध है एवं वर्तमान मे जो कर्म हम निरन्तर कर रहे है वह क्रियमाण है जब जातक का अशुभ प्रारब्ध पुरा हो जाता है अर्थात शुभ प्रारब्ध का मिलना शुरू हो जाता है तो उस स्थिती मे जातक कि निश्चितय ही प्रगति शुरू हो जाती है यही पर भ्रम कि स्थिति पैदा होती है
प्रंाचिन विद्वानो ने कालसर्प के बारे मे कोई विषेश अधिकारीक जानकारी नही दी है ।  लेकिन राहु का विषेश भावो मे स्थिति वश अनिष्ट प्रभाव भी बताया है जिसमे निरन्तर शोध का नतीजा कालसर्प है। इसकि विशद व्याख्या तो विशद व्याख्या ताक वही कर सकता है । जिसने इन दुर्योगो का फल भुगता है   राहु केतु के मध्य समस्त ग्रहो के आ जाने से कालसर्प योग बनता है जो संतान एवं यश का नाश करता है समस्त दुखो एवं रोग का कारण बनता है जातक एक ऐसे चक्रव्युह मे फस जाता है कि उसे पता ही नही चल पाता ऐसी स्थिती मे डाक्टर भी गच्चा खाकर रोगी का इलाज नही कर पाता जब रोग के बारे मे डाक्टर निश्चित नही कर पाये व्याधि का शमन दवाईयो से नही हो पाये तो समझ लेना चाहीए कि कर्म दोषज है जिसकी शांती या उपाय कर लेने  पर ही राहत मिलती है कालसर्प दोष मे भी जब राहु किसी एसी राशि मे स्थित हो जिसका स्वामि जंन्मंाग मे नीचे राशि का हो एवं केतु अधिष्टित राशि भी निर्बल हो तो कालसर्प कष्ट कारक बनता है ।
कालसर्प दोष का प्रभाव कब एवं कब तक:-
1. जातक को जन्म  से लेकर 42 वर्ष कि अवस्था तक विषेश अशुभ प्रभाव
 राहु कि महादशा या अंतर्दशा काल मे भावस्थ एवं राशि अनुसार अशुभ प्रभाव मिलता है
2. राहु कि महादशा मे सुर्य या चंद्र कि अंतर्दशा हो
3. राहु अधिष्टित राशिश की दशान्तर्दशा हो
4. राहु का अशुभ गोचर बन रहा हो
5. राहु मे केतु या केतु मे राहु कि दशन्तर्दशा हो                                7. राहु केतु से योग करने वाले ग्रह कि दशान्तर्दशा हो

पुर्व जन्म के शुभाशभु कार्यो के अनुसार ही जातक का वर्तमान जीवन निर्भर करना है । इस आधार  पर ही किसी जातक का जन्म निश्चित योगों मे होता है इसकि जानकारी प्राप्त करते हुए वर्तमान मे अनेक विधाए प्रचलन मे है जिसमे ज्योतिष विज्ञान भी एक है इसमे जातक के जन्म कालीन समय एवं स्थान के आधार पर जन्म कुंडली का निर्माण करते है इसमे जन्म कालीन समय और स्थान के आधार पर जन्म कुंडली का निर्माण करते है । इसमे जन्म कालिन ग्रहो कि राशि एवं भावस्थ स्थ्तिि के आधार पर अनेक प्रकार के योगो एवं कु योगो का निर्माण होता है इन्ही मे से कालसर्प भी एक है जो कभी योग बनकर जातक  को खुशहाल   करता है तो कभी दोष बनकर जातक को बरबाद करता है इस कालसर्प के बारे मे विद्वानो मे मतभेद है तो कुछ विद्वान इसकु दोषो को बताकर इसकी सत्यता का ज्ञान भी कराते है । ज्योतिश मे पाप कर्तरी  के बारे मे जानकारी मिलती है । लग्न के दोनो ओर द्वितीय व द्वाद्वश भाव मे पापग्रह स्थिति होने पर लग्न कर्तरी दोष बनता है । जो जातक के समस्त प्रकार के सुखो का नाश करता है क्योकि लग्न को संपुण व्यक्तित्व का कारक माना जाता है । इसी को विस्तारीत कर किसी भाव पर आधारीत करे तो यह दोष उस भाव संबधित कारको को सुख नष्ट करता है ंपापकर्तरी मे भी जब कर्तरी दोष कारक ग्रह शुभ भावेश होकर बलवान होतो अशुभता कम हो जाती हैॅ इसी आधार पर ही यदी कालसर्प का आकलन करे तो स्थिती स्पष्ट हो जाती है ।

वेदो के अनुसार आत्मा अमर है अर्थात उसका नाश  नही होता आत्मा का कालातंर मे आवरण बदलता रहता है जो कर्मो के अनादि प्रवाह का कारण है श्री कृष्ण ने कहा है कि वासना के कारण विभिन्न योनियो मे जन्म होता है जबवासना पुण नही होती तो उसकि बुद्वि और विवके खो जाता है और सर्प योनि को प्राप्त करता है यह भी कर्म का हेतु है । जातक द्वारा वर्तमान काल तक किया गया कर्म संचित है इस संचित कर्म को किसी एक काल मे भोगना असंभव है । अतः इस काल मे जो कर्म फल भोगने को निश्चित है वही प्रारब्ध है एवं वर्तमान मे जो कर्म हम निरन्तर कर रहे है वह क्रियमाण है जब जातक का अशुभ प्रारब्ध पुरा हो जाता है अर्थात शुभ प्रारब्ध का मिलना शुरू हो जाता है तो उस स्थिती मे जातक कि निश्चितय ही प्रगति शुरू हो जाती है यही पर भ्रम कि स्थिति पैदा होती है
प्रंाचिन विद्वानो ने कालसर्प के बारे मे कोई विषेश अधिकारीक जानकारी नही दी है ।  लेकिन राहु का विषेश भावो मे स्थिति वश अनिष्ट प्रभाव भी बताया है जिसमे निरन्तर शोध का नतीजा कालसर्प है। इसकि विशद व्याख्या तो विशद व्याख्या ताक वही कर सकता है । जिसने इन दुर्योगो का फल भुगता है   राहु केतु के मध्य समस्त ग्रहो के आ जाने से कालसर्प योग बनता है जो संतान एवं यश का नाश करता है समस्त दुखो एवं रोग का कारण बनता है जातक एक ऐसे चक्रव्युह मे फस जाता है कि उसे पता ही नही चल पाता ऐसी स्थिती मे डाक्टर भी गच्चा खाकर रोगी का इलाज नही कर पाता जब रोग के बारे मे डाक्टर निश्चित नही कर पाये व्याधि का शमन दवाईयो से नही हो पाये तो समझ लेना चाहीए कि कर्म दोषज है जिसकी शांती या उपाय कर लेने  पर ही राहत मिलती है कालसर्प दोष मे भी जब राहु किसी एसी राशि मे स्थित हो जिसका स्वामि जंन्मंाग मे नीचे राशि का हो एवं केतु अधिष्टित राशि भी निर्बल हो तो कालसर्प कष्ट कारक बनता है ।
कालसर्प दोष का प्रभाव कब एवं कब तक:-
1. जातक को जन्म  से लेकर 42 वर्ष कि अवस्था तक विषेश अशुभ प्रभाव
 राहु कि महादशा या अंतर्दशा काल मे भावस्थ एवं राशि अनुसार अशुभ प्रभाव मिलता है
2. राहु कि महादशा मे सुर्य या चंद्र कि अंतर्दशा हो
3. राहु अधिष्टित राशिश की दशान्तर्दशा हो
4. राहु का अशुभ गोचर बन रहा हो
5. राहु मे केतु या केतु मे राहु कि दशन्तर्दशा हो                                7. राहु केतु से योग करने वाले ग्रह कि दशान्तर्दशा हो