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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

सूर्योपासना का महान पर्व हैं मकर संक्रांति

 परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512
मो. 9001742766,9001846274,02972-276626
Email-pariharastro444@gmail.com ..
सूर्य प्रत्येक माह में एक राशी पर भ्रमण  कर एक वर्ष में बारह राशियों पर अपना भ्रमण  पूरा कर लेता हैं इस प्रकार सूर्य प्रत्येक माह में एक राशी से दूसरी राशी में प्रवेश कर लेता हैं |इस एक राशी से दूसरी राशी में प्रवेश का नाम ही संक्रांति हैं | जब सूर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश करता हैंतो इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं क्योंकि इस दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना  शुरू कर देता हैं जिससे दिन बड़े और राते छोटी होने लगती हैं | इस दिन से देवताओ के दिन प्रारम्भ होते हैं जिससे इस दिन का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता हैं |उत्तरायण काल को ही हमारे ऋषि मुनियों ने साधना का सिद्धिकाल माना हैं | ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति   के दिन सूर्य की पूजा उपासना करना परम फलदायक माना हैं | पुराणो के अनुसार  "सर्व  रोगात समुच्यते" अर्थात सूर्य उपासना से समस्त रोगों का नाश हो जाता हैं|  ग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्प्त हैं इसलिए भी सूर्य की उपासना करना हमारे लिए महत्व पूर्ण  हैं | सूर्य कृपा प्राप्त करने के लिए मकर संक्रांति पर किये जाने वाले प्रयोग ..........
१.मकर संक्रांति के दिन प्रात काल नहा धोकर पवित्र होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठकर भगवान सूर्य की पूजा करने हेतु एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर सूर्य देव की तस्वीर रखकर उसे पंचामृत स्नान कराकर धुप दीप जलाकर लाल रंग के पुष्प फल अर्पित कर लाल रंग की मिठाई अथवा गुड का भोग लगाये | सूर्य मन्त्र का २८००० जप करे इतना संभव नही हो तो ७००० जप अवश्य करे इससे आपको सूर्य देव की कृपा साल भर तक प्राप्त होती रहेगी |
मन्त्र ....ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः 
ॐ घृणी  सूर्याय नमः 
२.....मकर संक्रांति के दिन प्रात काल जल्दी उठकर नहा धोकर पवित्र होकर एक कलश में स्वच्छ जल भरकर उसमे थोडा सा गुड रोली लाल चन्दन अक्षत लाल फुल डालकर दोनों हाथो को ऊँचा कर सूर्य भगवान को प्रणाम कर निम्न मन्त्र बोलते हुए अर्ध्य प्रदान करे 
एही  सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते 
अनुकम्पयमाम    भक्तयम गृहाणअर्ध्य  दिवाकर 
इसके पश्चात् लाल रंग की वस्तुओ का दान तिल और गुड का दान करे तो आपको सूर्य देव की कृपा प्राप्त होने लगती हैं 
३...मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान को अर्ध्य देकर आदित्य हृदय स्तोत्र के १०८ पाठ किये जाये तो वर्ष भर शांति रहती हैं 
४..मकर संक्रांति के दिन सिद्ध सूर्य यंत्र प्राप्त कर उसे पंचामृत स्नान कराकर धुप दीप दिखाकर ॐ घृणी सूर्याय नमः का जप कर गले में धारण करे तो सूर्य कृपा प्राप्त होने लगती हैं 
५..यदि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ण पोलिश युक्त सूर्य यंत्र प्राप्त कर एक बाजोट पर लाल कपडा बिछाकर उसे  पंचामृत स्नान कराकर सूर्य यंत्र को स्थापित करे फिर धुप दीप दिखाकर लाल फुल फल गुड अर्पित कर लाल चन्दन का टिका लगाकर ॐ घृणी सूर्याय नमः के सात हजार जप करे | फिर प्रतिदिन धुप दीप दिखाने और इस मन्त्र का एक माला जप करने से राजकीय सेवा का अवसर बनने लगता हैं |आप भी मकर संक्रांति के दिन सूर्योपासना का लाभ अवश्य उठाये  |
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मकर संक्रांति का महत्त्व

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सूर्य को जगत की आत्मा माना गया हैं | सूर्य का इसी कारण एक राशी से दूसरी राशी में प्रवेश महत्वपूर्ण  माना हैं | इस एक राशी से दूसरी राशी में किसी ग्रह का प्रवेश संक्रांति मानते हैं | सूर्य का धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश का नाम ही मकर संक्रांति हैं | धनु राशी वृहस्पति की राशी हैं | इसमे सूर्य रहने पर मल मास होता हैं | इस राशी से मकर राशी में प्रवेश करते ही मल मास समाप्त होता हैं और शुभ मांगलिक कार्य हम प्रारंभ करते हैं | मकर संक्रांति का दूसरा नाम उत्तरायण भी हैं क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना प्रारम्भ करता हैं | उत्तरायण के इन छः महीनो में सूर्य मकर से मिथुन  राशी में भ्रमण करने पर दिन बड़े होने लगते हैं और राते छोटी होने लगती हैं  |
मकर संक्रांति के दिन पूर्वजो को तर्पण और तीर्थ स्नान का अपना विशेष महत्त्व हैं | इससे देव और पितृ सभी संतुष्ट रहते हैं  | सूर्य पूजा से और दान से सूर्य देव की रश्मियों का शुभ प्रभाव मिलता हैं और अशुभ प्रभाव नष्ट होता हैं इस दिन स्नान करते समय स्नान के जल में तिल, आवला ,गंगा जल डालकर स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता हैं | इस दिन विशेषत तिल और गुड का दान किया जाता हैं |इसके आलावा खिचड़ी ,तेल से बने भोज्य पदार्थ भी किसी गरीब ब्राह्मण को खिलाना चाहिए | छाता, कम्बल ,जूता ,चप्पल ,वस्त्र अदि का दान भी किसी असहाय या जरुरत मंद व्यक्ति को करना चाहिए |
राजा सगर के ६०,००० पुत्रो को कपिल मुनि ने किसी बात पर क्रोधित होकर भस्म कर दिया था | इसके पश्चात् इन्हे मुक्ति दिलाने के लिए गंगा अवतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ | इसी क्रम में राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर लाया | स्वर्ग से उतरने में गंगा का वेग अतितीव्र था इसीलिए शिवजी ने इन्हे अपनी जटाओ में धारण किया | फिर शिव ने अपनी जटा में से एक धारा को मुक्त किया | अब भागीरथ उनके आगे आगे और गंगा उनके पीछे पीछे चलने लगी | इस प्रकार गंगा गंगोत्री से प्रारंभ होकर हरिद्वार ,प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के  आश्रम पहुंची यहाँ आकर सगर पुत्रो का उद्दार किया | यही आश्रम अब गंगा सागर तीर्थ के नाम से जाना जाता हैं मकर संक्रांति के दिन ही राजा भागीरथ ने अपने पुरखो का तर्पण कर तीर्थ स्नान किया था | इसी कारण गंगा सागर में मकर संक्रांति के दिन स्नान और दर्शन को मोक्ष दायक माना हैं |
भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था इसीलिए उन्होंने शर शैय्या पर लेटे हुए दक्षिणायन के बीतने का इंतजार किया और उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया | उत्तरायण कल में ही सभी देवी देवताओ की प्राण प्रतिष्ठा शुभ मानी जाती हैं |
धर्म सिन्धु के अनुसार -मकर संक्रांति का पुण्य काल संक्रांति समय से १६ घटी पहले और ४० घटी बाद तक माना गया हैं | मुहूर्त चिंतामणि ने पूर्व और पश्चात् की १६ घाटियों का ही पुण्य काल माना हैं |यदि संक्रांति अर्धरात्रि के पूर्व हो तो दिन का उत्तरार्द्ध  पुण्य काल होता हैं | अर्ध रात्रि के पश्चात् संक्रांति हो तो दुसरे दिन का पूर्वार्द्ध पुण्य काल होता हैं | यदि संक्रांति अर्द्ध रात्रि को हो तो दोनों दिन पुण्य काल होता हैं | देवी पुराण में संक्रांति के सम्बन्ध में कहा गया हैं की मनुष्य की एक बार पलक झपकने में लगने वाले समय का तीसवा भाग तत्पर कहलाता हैं | तत्पर का सौवा भाग त्रुटी कहलाता हैं और त्रुटी के सौवे भाग में संक्रांति होती है | इतने सूक्ष्म काल में संक्रांति कर्म को संपन्न करना संभव नहीं हैं इसीलिए ही उसके आसपास का काल शुभ माना जाता हैं | इनमे भी ३,४,५,७,८,९ और १२ घटी का समय पुण्य काल हेतु श्रेष्ठ माना हैं | मकर संक्रांति पर भगवान शिव की पूजा अर्चना भी शुभ मानी गयी हैं | इस दिन काले तिल मिलाकर स्नान करना और शिव मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाकर भगवान शिव का गंध , पुष्प, फल ,आक ,धतुरा ,बिल्व पत्र चढ़ाना शुभफल दायक हैं | कहा भी गया हैं की इस दिन घी और कम्बल का दान मोक्ष दायक हैं इस दिन ताम्बुल का दान करना भी श्रेष्ठ माना गया   हैं |
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महाशिवरात्रि व्रत एवम पूजा का महत्त्व

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चतुर्दश्याम  तू कृष्णाय फाल्गुने शिवपुजनम
 तामुपोश्य प्रयत्नेन विषयां परिवर्जयेत 
 शिवरात्रि व्रतं नाम सर्व पाप प्रनाशनम 
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिव रात्रि का व्रत किया जाता हैं | यह व्रत सभी प्रकार के पापो का नाश करता हैं| इसी दिन भगवन शिव अर्धरात्रि के समय परम ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे | इशान संहिता के अनुसार ...
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशी 
शिवालिंग्त्योद्भुतः   कोटि सूर्य समप्रभः 
भगवन शिव की उत्त्पति के विषय में इशान संहिता में बताया गया हैं की एक बार ब्रह्मा और विष्णु को अपने कर्मो का अभिमान हो गया | जिससे वे अपने आप को एक दुसरे से श्रेष्ठ मानने  लगे | दोनों अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने का प्रयास करने लगे | तब शिव ने इन्हे विश्वास दिलाने के लिए की जीवन भौतिक आकार प्रकार से कही अधिक हैं |एक ज्योतिर्मय अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए इस स्तम्भ का आदि और अंत दिखाई नही दे रहा था | तब ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने इसके ओर-छोर   को जानने  का  निश्चय किया |  विष्णु निचे पाताल की और पता  लगाने  गए और ब्रह्मा  ऊपर  आकाश  की तरफ  छोर का पता लगाने गए | जब कई  वर्षो  के बाद  भी  पता नही लगा सके तो वे वापस  आ गए तब तक इनका  अहंकार और क्रोध नष्ट हो चूका था | तब भगवान् शिव ने प्रकट होकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया यह दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का था इसलिए इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता हैं | 
महाशिवरात्रि का व्रत जिस दिन अर्धरात्रि के समय चतुर्दशी तिथि हो उस दिन किया जाता हैं | इस दिन प्रात काल नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर शुभ मुहूर्त में व्रत का संकल्प करे और हाथ में जल चावल और फुल लेकर शिवलिंग पर अर्पित कर शिव को प्रणाम करे| इस दिन चारो प्रहरों  में शिव की पूजा करने से चारो पुरुषार्थो की प्राप्ति होती हैं | शिव पूजन करने से पूर्व निम्न प्रकार से संकल्प ले ...
ममखिल पाप क्षय  पूर्वक सकला भिष्ट सिध्ये शिव प्रीत्यर्थ च शिवपूजन महम करिष्ये 
प्रथम प्रहर में दुग्धाभिषेक कर ह्रीं ईशाने  नमः मन्त्र का जप कर संगीत और नृत्य का आयोजन करे | द्वितीय प्रहर में दही से अभिषेक कर ह्रीं अघोराय नमः से पूजा करे | तीसरे प्रहर में घृत से अभिषेक कर ह्रीं वामदेवाय नमः से पूजा करे | चतुर्थ प्रहर में मधु से अभिषेक कर ह्रीं   संजोजाताय नमः जप     कर कथा का वाचन और श्रवण करे | फिर आरती और परिक्रमा  कर इस प्रकार प्रार्थना करे 
नियमो यो महादेव क्रित्श्चैव त्व्दाज्ञा   
विसृत्यते मया स्वामिन व्रतं जातमनुत्त्मम    
व्रतोनानें देवेश यथाशक्ति कृतेन च 
संतुष्टो भव सर्वाध्य कृपाम कुरु ममोपरी 
फिर सूर्योदय के पश्चात् स्नान  कर भगवन शिव का पूजन और ॐ नमः शिवाय का जप कर व्रत खोल दे 
महाशिवरात्रि व्रत कथा .........
प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश के राजा चित्रभानु थे जिनका सम्पूर्ण  जम्बू द्वीप  पर राज था | इन्होने महाशिवरात्रि को पत्नी के साथ मिलकर उपवास किया | इस दिन   ऋषि अष्टावक्र इनके दरबार में आये इन्होने राजा से कहा की आपने आज क्यों व्रत किया हैं |तब राजा ने ऋषि से कहा ....मैं पूर्व जन्म में एक शिकारी था | मै वाराणसी में रहता था | मेरा नाम सुस्वर था | उस जन्म में मैं   बचपन से ही शिकार करता रहता था | उस जन्म में एक बार जंगल में शिकार के लिए घूमते घूमते बहुत देर हो गयी | मैंने मृग का शिकार कर लिया था परन्तु घना अंधकार हो जाने से और थका होने से शिकार को बांधकर जंगल में ही रात गुजरना उचित समझा | इस पर में एक बिल्व पत्र पर चढ़ गया | पूरा दिन भूखा और थका होने के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी | मैं बार बार अपने बच्चो और अपनी पत्नी का स्मरण कर रहा था जो मेरी वापसी का उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे | ऐसा सोचकर मेरी आँखे भर आई और मेरी आँखों से अक्षु बहने लगे |  दुखी  होने  और समय व्यतीत करने के उद्देश्य से में बिल्व पत्र निचे तोड़कर फेंकता रहा | संयोग से उस बिल्व वृक्ष के निचे शिवलिंग था | आंसुओ के द्वारा अभिषेक होता रहा और बिल्व पात्र शिवलिंग पर चढ़ते रहे  | संयोगवशत उस दिन महाशिवरात्रि का पर्व था  | सूर्योदय होते ही में शिकार लेकर घर आ गया | शिकार को बेचकर अपने परिवार जनों के लिए भोजन सामग्री लेकर आया | भोजन करने से पूर्व एक अजनबी आया और भोजन की मांग करने लगा उसे भोजन देकर हमने भोजन किया |
जब मृत्यु का समय नजदीक आया तो उस समय मेरी आत्मा को लेने के लिए भगवान् शिव के दो संदेशवाहक आये और मुझे उस शिवरात्रि व्रत और पूजन के बारे में सम्पूर्ण   घटना चक्र बताकार मुझे शिव लोक ले गए | वहा में लम्बे समय तक सुख शांति पूर्वक रहा और इस जन्म में मुझे ये जीवन मिला हैं अर्थात जब एक शिवरात्रि के व्रत से भगवन शिव इतने प्रसन्न हो गए तो मैंने हर शिवरात्रि का व्रत करने का निश्चय किया इसलिए महाशिवरात्रि का व्रत सभी लोगो को अवश्य करना चाहिए |
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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

महाशिवरात्रि पर करे अपनी मनोकामनाओ की पूर्ति

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फाल्गुन कृष्ण  पक्ष की चतुर्दशी को महा शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता हैं |इस दिन  शिव की पूजा करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर साधक की वांछित मनोकामना की पूर्ति करते हैं |इस दिन किये जाने वाले प्रयोग शीघ्र फलदायी होकर साधक को धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं |इसलिए महा रात्रियो में भी इसका विशिष्ट स्थान हैं |इस दिन यदि आप भी किसी समस्या का समाधान प्राप्त करना चाहते हैं अथवा अपनी किसी मनोकामना की पूर्ति करना चाहते हैं तो इस दिन आपको सर्व प्रथम नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए |अब अपने पूजा घर में जाकर एक बाजोट पर भगवन शिव की तस्वीर को लाल कपडे के ऊपर स्थापित करे |एक थाली बाजोट के सामने रखे उसमे शिव का कोई यंत्र या शिवलिंग को स्थापित करे| इन पर पुष्प ,चन्दन, अक्षत, मोली अर्पित करे|   फिर  धुप  दीप जलाकर मन्त्र का जप करे जहा तक संभव हो मन्त्र का अधिकाधिक जप करने चाहिए जिससे फल की प्राप्ति भी शीघ्र  हो सके 
१...रोग निवारण प्रयोग 
महा मृत्युंजय यंत्र की पूजा कर इस मन्त्र का अधिकाधिक जप करना चाहिए 
ॐ जूं सः 
पारद शिवलिंग को स्थापित कर इस दिन उसका पूजन करने से जातक को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता हैं शिवलिंग पर इस दिन दूर्वा  अर्पण करने से आरोग्य की प्राप्ति होती हैं 
ॐ त्रय्म्बक्म यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम |
उर्वारुक मिव बन्धनात मृत्योर्मुक्षीय  मामृतात ||    
गुड से बने शिवलिंग की पूजा भी आरोग्य दायक हैं 
२..आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने हेतु 
महा शिवरात्रि को प्रदोष कल में स्फटिक शिवलिंग को स्थापित कर गंगा जल से स्नान कराये फिर पंचामृत से स्नान कराये फिर बिल्व पत्र चढ़ाये और धुप दीप जलाकर ॐ नमः शिवाय का जप करे फिर प्रतिदिन पूजन करने से आर्थिक समृद्धि में वृद्धि होती हैं |
इस पर दुपहरिया के पुष्प अर्पित करने से अचल संपत्ति की प्राप्ति होती हैं 
ॐ श्रीम ऐं  ॐ मन्त्र का जप कर अभिषेक करने से आर्थिक विकास होता हैं 
३..शीघ्र   विवाह के लिए 
जिस कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो उन्हें इस दिन एक बजोट पर लाल कपडा बिछाकर शिव पार्वती अथवा माता पार्वती की तस्वीर   को स्थान दे फिर धुप दीप जलाकर पुष्प चढाकर निम्न मन्त्र का अधिकाधिक जप करे यदि किसी प्रिय से विवाह करना चाहती हो तो भगवन शिव पार्वती से शीघ्र विवाह की कामना कर कात्यायनी यंत्र का पूजन करे इसके प्रभाव से शीघ्र   विवाह होता हैं 
हे गौरी शंकर अर्धांगिनी यथा त्वं शंकर प्रिया 
तथा माँ कुरु कल्याणी कान्त कांता  सुदुर्लभं   
पुरुष जातक इस मन्त्र का जप करे 
ॐ गौरी आवे शिवजी ब्याहे अमुक का विवाह तुरंत सिद्ध करे देर न करे जो देर होए शिव का त्रिशूल पड़े गुरु गोरखनाथ की दुहाई फिरे 
४...संतान सुख प्राप्ति के लिए 
महा शिवरात्रि के दिन शिवलिंग को शुद्ध जल से स्नान कराकर धतूरे के फुल चढाने से पुत्र की प्राप्ति होती हैं फल से बने शिवलिंग की पूजा करने से भी संतान की प्राप्ति होती हैं 
संतान प्राप्ति की कामना कर निम्न मन्त्र का जप भगवन शिव ध्यान करते हुए करना चाहिए 
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र प्रचोदयात |
५...पारिवारिक गृह क्लेश निवारण हेतु 
शिवरात्रि को दुग्धाभिषेक करके बिल्व पत्र चढ़ाये भगवन शिव से गृहस्थ सुख की कामना करते हुए ॐ नमः शिवाय का जप करे 
६..व्यापर वृद्धि के लिए 
पारद शिवलिंग की पूजा करे 
७  राजकीय सेवा प्राप्ति के लिए फुल से बने शिवलिंग की पूजा करना चाहिए 
इस प्रकार आप भी इस शिवरात्रि को अपनी इच्छा नुसार प्रयोग कर लाभ उठाये |
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बसंत पंचमी का महत्त्व और सरस्वती उपासना

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भारतीय धर्मं शास्त्रों के अनुसार भगवन विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी   ने सृष्टि की रचना की |जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की और देखा तो चारो तरफ मौन देखकर उन्हें उदासी प्रतीत हुई |उन्हें लगा जैसे किसी के कोई वाणी ही नहीं हैं ,इसी उदासी को दूर करने के लिए कमंडल से जल लेकर छिड़का उन जल कणों के छिड़कने से एक दैवीय शक्ति उत्त्पन्न   हुई | जिसके एक हाथ में विणा और दूसरा   हाथ वरद  मुद्रा में था |अन्य दो हाथो में से एक में पुस्तक और एक  में माला थी |ब्रह्माजी ने तब देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया| इस पर देवी ने जैसे ही वीणा बजाना प्रारम्भ किया वैसे ही संसार  के समस्त जीव जन्तुओ को वाणी प्राप्त हो गयी| जिससे चारो तरफ आनंद का वातावरण   छा   गया  | तब ब्रह्माजी ने उसे  वाणी की देवी सरस्वती कहा|  इस दिन बसंत पंचमी अर्थात माघ   मास की शुक्ल पक्ष  की पंचमी थी तभी  से इसे सरस्वती जयंती  के रूप में मनाया  जाने लगा |
बसंत ऋतू  का प्रारम्भ इसी दिन होता  हैं इसके  प्रारंभ  होते  ही चारो तरफ  वृक्षों पर नई  कोपले  आना  प्रारंभ हो जाती  हैं प्रकृति  का नजारा  सुन्दर  लगने   लगता हैं भगवान्  श्री कृष्ण  ने इसी कारण   इसे ऋतुओ  का रजा कहा हैं इस उत्सव  के अधिदेवता  श्री कृष्ण हैं इसी कारण इस दिन राधा  कृष्ण    की पूजा की जाती हैं| बसंत पंचमी के दिन सरस्वती और विष्णु का पंचोपचार पूजन कर पितृ  तर्पण  और ब्राह्मण  भोजन  करना शुभ माना  जाता हैं| बसंत ऋतू कामोद्दीपक    होती  हैं |इसके प्रमुख  देवता  काम  और रति  हैं| इसलिए इनकी  पूजा करना  भी शुभ रहता  हैं विशेषतया  ऐसे जातक जिनके  विवाह  में विलम्ब  चल रहा हो दांपत्य  जीवन अच्छा  नही  हो उन्हें इस दिन का लाभ  अवश्य  उठाना  चाहिए |तंत्र  शास्त्रों के अनुसार इस ऋतू में वशीकरण,  मोहन  और आकर्षण कर्म सम्बंधित प्रयोगों  में सिद्धि मिलती  हैं| इसलिए ऐसे मंत्रो  की सिद्धि बसंत ऋतू में अवश्य करनी चाहिए ताकि  जन कल्याण में इनको  उपयोग  में लिया  जा सके |
 वाल्मीकि  रामायण  के उत्तर  कांड  के अनुसार कुम्भ  कर्ण  ने वर  प्राप्त करने के लिए गोवर्ण  में दस  हजार  वर्षो  तक  घोर  तपस्या की उसकी  तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी वर देने  को तैयार हुए | उस  समय  सभी देवो  को चिंता  होने लगी तब देवो ने ब्रह्माजी से कहा की यह  राक्षस  तो पहले  से ही हैं वर प्राप्त करने के पश्चात् तो और अधिक  उन्मत  हो जायेगा  |इस समस्या  से समाधान  पाने  हेतु ब्रह्माजी ने सरस्वती का स्मरण  किया जब कुम्भ कर्ण ने वर माँगा  उस समय सरस्वती उसकी जिह्वा  पर सवार  थी जिससे कुम्भ कर्ण   ने कहा " स्वपन  वर्षा व्यनेकानी  देव देव ममाप्सिंम"   तब ब्रह्माजी ने तथास्तु  कहा |इस प्रकार कुम्भ कर्ण को कई  वर्षो तक सोने  का वरदान  प्राप्त हुआ  और देवो की चिंता भी दूर हो गयी इसी कारण भी   इस दिन सरस्वती पूजा विशेषतया की जाती हैं |
इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी माना हैं |लोक व्यव्हार में भी इस दिन किसी भी कार्य को करना शुभ माना जाता हैं |सरस्वती कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन सरस्वती का पंचोपचार पूजन कर मन्त्र जप करना चाहिए| इस दिन सरस्वती कृपा प्राप्त करने हेतु कुछ विशेष प्रयोग .....
१...प्रातकाल  नहा धोकर पवित्र होकर सफ़ेद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजाघर में जाकर एक बाजोट पर हरा वस्त्र बिछाकर उस पर सरस्वती की तस्वीर को स्थापित कर धुप दीप जलाये मौसमी फल चढ़ाये और सफ़ेद मिष्ठान्न का भोग लगाकर निम्न मन्त्र का पञ्च माला जप करे इसके पश्चात् प्रतिदिन एक माला जप करे तो आप पर देवी सरस्वती की कृपा होने लगती हैं 
मन्त्र ...ॐ ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा 
२..देवी सरस्वती के चतुर्भुज रूप का ध्यान करते हुए इस मन्त्र का एक माला जप करे तो आप पर देवी की कृपा होने लगती हैं 
ॐ   ऐं महा सरस्वत्ये नमः 
३... सरस्वती जयंती के दिन माता सरस्वती को प्रसन्न करने हेतु धुप दीप जलाकर निम्न प्रार्थना मन्त्र का जितना संभव हो उतना जप करे फिर प्रतिदिन ११ ,२१ या ५१ बार इसका जप करे तो माता सरस्वती की कृपा होने लगती हैं 
सरस्वती महामाये विद्ये कमल लोचने |
विद्या रुपे विशालाक्षी विद्या देहि नमोस्तुते ||
४ अन्य मंत्र ...ॐ    ऐं  ह्रीं श्रीं वागदेव्ये नमः 
इस प्रकार बसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए बहुत महत्व रखता हैं
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मंगला गौरी व्रत


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Email-pariharastro444@gmail.coयुवावस्था में प्रवेश  करते ही अभिभावक उसके विवाह के प्रति चिंतित होने लगते है।कुछ जातको का विवाह समय पर संपन्न   हो जाता है।तो कुछ जातको का विवाह अत्यंत विलंब से होता है।इसी प्रकार दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने के पश्चात कुछ समय तक तो दाम्पत्य जीवन अच्छा रहता है।परंतु कुछ समयावधि पश्चात उनमें वैचारिक मतभेद उत्पन्न होने लगता है।ज्योतिष में किसी जातक के जीवन में सबसे अधिक अशुभ प्रभाव आमजन शनि के तो दाम्पत्य जीवन में अशुभ प्रभाव के लिए मंगल को कारण मानते है। मंगल रक्त काम वासना का कारक होकर अपने अष्टक में शनि जितनी शुभ रेखा ही प्राप्त करता है। इसलिए दाम्पत्य जीपन में परेशानी होने पर दम्पति द्वारा जब जन्मकुण्डली का विश्लेशण कराया जाता है।तब मंगल दोष कंे कारण समस्या आने पर वे आशंकित हो जाते है।ऐसे दम्पति मंगल का सटीक उपाय करते नजर आते है।इसलिए दाम्पत्य जीवन में मंगल यदि बाधाकारक बने तो स्त्रियो को मंगला  गौरी व्रत करना चाहिए।मंगला  गौरी व्रत के कारण उसका दम्पतय जीवन सुखद बनता है।कहा भी है
विवाहात प्रथम वर्षमारभ्य पंचवत्सरम
श्रावणे मासे भौमेषु चतुत्र्रुव्रतमाचरेत
प्रथमें वत्सरे मातुग्र्रहे कर्तव्यमेंव
ततौ मर्तृगृहे कार्यमवंष्यं स्त्रीभिराददात
अर्थात मंगला गौरी व्रत विवाह के प्रथम श्रावण के प्रथम मंगलवार सें प्रारंभ कर पांच वर्ष तक इस मास में करना चाहिए प्रथम श्रावण मास में यह व्रत नवविवाहिता को अपने मातृ गृह अथवा पीहर एंव इसके पश्चात चार वर्ष तक यह पति गृह में  व्रत किया जाता हैं इस व्रत को करने से स्त्री का दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है।इसलिए सभी स्त्रियो को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
जिस दिन व्रत प्रारंभ करे उस दिन प्रातकाल नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारणकरे ।इसके पश्चात अपने पुजा धर में जाए।वहां जाकर लालरंग के उनी आसन पर बैठे।अपने सामने एक बाजोट रखे ।फिर रोली का तिलक लगाए अपना मुहं पुजा करते समय ईशान दिशा या पूर्व दिशा की तरफ हो फिर एक ताम्र पात्र से जल अपने हाथ मे लेकर संकल्प करे एवं संकल्प के पश्चात जल को जमीन पर छोडे।
संकल्प मंत्र
मम पुत्र पौत्र सौभाग्य वृद्धये श्री मंगला गौरी प्रीत्यर्थ पंचवर्ष पर्यत मंगला गौरी व्रतमहं करिष्ये।
संकल्प करने के पश्चात एक बाजोट पर लाल वस्त्र विछाकर मंगलागौरी की मुर्ति को स्थापित करे  मुर्ति को  स्थापित करने के पश्चात उसके सामने सोलह मुख वाला  आटे का दीपक बनाकर उसमें बतिया बनाकर धी से दीपक को प्रज्वलित करें।दीपक जलाने के पश्चात गौरी का ध्यान कर पवित्रिकरण करे पवित्रिकरन के समय निम्न मंत्र का ग्यारह बार जाप करना चाहिए      मंत्र
      ऊॅ अपवित्रं पवित्रो र्वा सर्वावस्था गतोपि वा
य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः  बा्रहयभ्यन्तर शुचिः
मंत्र पढने के पष्चात जल को अपने आसन स्वंम के उपर एवं आसपास  छिडके ।इसके पश्चात स्वास्तिवाचन कर गणेश पुजन करे । गणेश जी को दुर्वा चढाए एवं मानसिक रूप से ऊँ गणपते नमः का 108 बार जाप करे । फिर कलश स्थापित कर वरूण स्थापित करे। इसके पश्चात नवग्रह पुजन करे । नवग्रह पूजन में नवग्रह प्रतिमा या प्रतिक रूप का पुजन एवं मंत्रोच्चार करे। फिर षोडश मातृका पुजन करे । इसके पश्चात मंगला गौरी का ध्यान कर निम्न मंत्र का 108 बार जाप करे । मंत्र ’’ श्रीमंगलागौर्ये नमः’’ जाप करने के पश्चात सोलह फुल, सोलह दुर्वा, सोलह धतुरे के पत्ते, सोलह माला,  सोलह प्रकार के अनाज, सोलह वृक्ष के पत्ते, सोलह इलायची, सोलह सुपारी, जीरा एवं धनिया मंगला गौरी को अर्पित करे । अब मंगला गौरी ध्यान मंत्र !!बार जप करे-
           कुंकुमा गुरूलिप्तांगा सर्वाभरणभूषितां।
           नीलकंठ प्रियां गौरी वन्देअहं मंगलाद्वयाम !!
इस ध्यान मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात अपनी कामना करे एवं फिर तांबे के कलश में जल, फल, फुल, गंध, अक्षत, सवा रुपया, नारियल, रोली डालकर अध्र्य दे। अध्र्य देते समय निम्न मंत्र का ग्यारह बार जाप करे-
       पूजा सम्पूर्णतार्थ तु गंधपुष्पाक्षतैः सह।
  विशेषाध्र्यमभ्या दतो मम सौभाग्य हेतवे श्री मंगलागौर्ये नमः।।    
इसके पश्चात बांस की टोकरी में वस्त्र, मेहंदी, काजल, चुडिया, बिंदिया, इत्र एवं अन्य सौभाग्य सामग्री के साथ फल फूल मिठाई रखकर टोकरी को हाथ में लेकर इसका एक बार जाप कर किसी बा्रह्मण को दान करे।

        अन्न कंचुकिसंयुक्तम् सवस्त्र फलपुष्प दक्षिणाम्।
        वायनं गौरि विप्राय ददामि प्रीतये तव ।।
       सौभाग्य आरोग्य कामनां सर्वसम्पत्समृद्धये।
      गौरी गिरिश तृष्टयर्थम् वायनं ते ददाम्यहम्।।
ब्राह्मण को दान करने के पष्चात व्रती महिला अपनी सास के चरण स्पर्श कर सोलह लड्डुओ का वामन दे। इसके पश्चात सास की सोलह मुख्वाले दीपक से पुजा करे । व्रत वाले दिन नमक का सेवन नही करे एवं रात्रि जागरण कर प्रातः काल किसी पवित्र जल में गौरी प्रतिमा का विसर्जन करे । जब इसी प्रकार श्रावण मास के मंगलवार का व्रत करते हुए बीस मंगलवार पुरे हो जाए तब अंतिम मंगलवार को व्रत का उद्यापन करे । इस दिन पूर्व की भांति मंगलगौरी, एवं सास का पुजन करे। इसके पश्चात सोलह ब्राह्मणों को सपत्नीक भोजन कराकर उन्हे पूर्ववत सौभाग्य सामग्री का दान करे । इस  प्रकार मंगला गौरी का व्रत करने से मंगल दोष समाप्त होकर दाम्पत्य जीवन सुखद होने लगता है। व्रत वाले दिन पुजन समय मंगला गौरी व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए । व्रत कथा-
प्राचीन काल कुण्डिन नामक नगर में धर्मपाल नाम का एक धनवान सेठ रहता था। धर्मपाल की पत्नी भी धार्मिक प्रवृति थी एवं सती सध्वी थी । परन्तु सेठ दंपति के कोई संतान नही थी। इसके कारण दंपति दुःखी रहा करते थे। उनके घर एक भिक्षुक प्रतिदिन आया करता था। सेठ की पत्नी से सेठ से विचार  विमर्श कर भिक्षुक को स्वर्णदान देने का निष्चय किया। इसलिए सेठानी ने एक दिन भिक्षुक की झोली मे स्वर्ण डाल दिया लेकिन अपरिग्रही भिक्षुक ने अपना व्रत भंग जानकर उसे संतानहीनता का शाप दे दिया परन्तु सेठ दंपति को अंत में गौरी की कृपा से एक संतान की प्राप्ति हुइ। परन्तु संतान अल्पायु  थी एंव उसे सोलहवे वंर्ष में सर्पदश का शाप प्राप्त था। इस   शापग्रस्त अल्पायु बालक का विवाह एक ऐसी कन्या से हुआ जिसकी माता ने भी मंगला गौरी का व्रत किया था। इस कारण वह वधवा का दुःख नही झेल सकती थी इस कारण बालक अल्पायु होकर भी शतायु हो गया । उसे न तो सर्प डस सकता था एंव न ही उसे सोलहवे वर्ष मे यम
प्राण हरण कर सकते थे । इसी कारण उसे शतायु प्राप्त हुई। इसलिए यह व्रत प्रत्येक नवविवाहिता को अवश्य करना चाहिए।
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शरद पूर्णिमा की खीर और आरोग्य


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अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा ,कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहते हैं |शरद पूर्णिमा मध्य रात्रि व्यापिनी ली जाती हैं |इस दिन भगवन श्री कृष्ण  ने गोपियों के साथ महारास रचा था |शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओ से परिपूर्ण  होता हैं और उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती हैं |इन अमृत किरणों का लाभ प्राप्त करने के लिए खीर को चन्द्रमा की रौशनी में रात बाहर रखकर फिर सेवन करना चाहिए |
इस दिन चंद्रोदय से पूर्व खीर बनाकर रखते हैं ,फिर चंद्रोदय होने  पर  चन्द्र देव  को अधर्य देकर  चन्द्र देव और माता  लक्ष्मी  को नैवैध्य  चढाते  हैंनैवैध्य रूप  में    इसी  खीर का प्रयोग  करते  हैं चन्द्र देव और लक्ष्मी को खुश  रखने  हेतु  घी  के दीपक  जलाये  जाते  हैं फिर खीर को चन्द्रमा की रौशनी में रात भर  के लिए रखा जाता  हैं सुबह  उठकर  इसमे  से कुछ  खीर का भाग  ब्राह्मण  को देकर   खीर का सेवन परिवार  के सभी  लोगो  को करना चाहिए इस  खीर का सेवन करने से स्वास्थ्य  लाभ प्राप्त होता हैं अमृत किरणों  की वर्षा होने के कारन  खीर में अमृत तत्व  अर्थात जीवन  पोषक  तत्वों  की वृद्धि  हो  जाती हैं जिससे  खीर आरोग्य  वृद्धि  करक  बनती  हैं इसलिए आप  सभी  इस दिन फलाहार  करके  खीर बनाकर खाए  आपको  अवश्य  लाभ प्राप्त होगा  ऐसे  जातक  जिनका  लग्नेश  चन्द्र हो  उनको  अवश्य  ही  इस प्रकार  चन्द्र पूजन  कर  खीर का सेवन करना चाहिए 
धन प्राप्ति के लिए करे शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजा 
शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु भी व्रत किया जाता हैं |इस व्रत   को कोजागर व्रत भी कहा जाता हैं| सर्व प्रथम इस दिन नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे फिर अभिजित मुहुर्त में माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करे |इसकी पंचोपचार पूजा करे फिर चंद्रोदय होने से पूर्व गाय के दूध से खीर बनाये| चंद्रोदय हो जाने के पश्चात् अधर्य देकर चन्द्र देव की पूजा करे| चन्द्र और माता लक्ष्मी को अलग अलग खीर का भोग लगाये|घी का दीपक जलाये, घी का दीपक जलाकर माता लक्ष्मी से धन प्राप्ति की कामना करते हुए निम्न में से किसी मंत्र का अधिकाधिक जप करे| फिर रात्रि बारह बजे के पश्चात् या सूर्योदय के पश्चात् खीर को प्रसाद रूप में ब्राह्मण को देकर स्वयं भी खाए |सुबह मूर्ति को जल प्रवाह करे 
मंत्र ...
१...ॐ श्रीम श्रिये नमः  
२..ॐ महा लक्ष्म्ये नमः 
३..ॐ श्री शुक्ले महा शुक्ले कमल दल निवासे श्री महा लक्ष्मी नमो नमः लक्ष्मी माई सत की सवाई आओ सेतो करो भलाई भलाई न करो तो सात समुद्रो की दुहाई रिद्धि सिद्धि उखगे तो नो नाथ चौरासी सिद्धो गुरु गोरखनाथ की दुहाई 
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